Advertisment

सती सावित्री एक मिथक है : देवदत्त पट्टनायक

author-image
Swati Bundela
New Update
सती और सावित्री जैसी पौराणिक महिला पात्रों की कहानियाँ क्यों नहीं बता रहे हैं? उन्होंने बताया कि कैसे सती सावित्री से हमने एक बेचारी महिला की छवि को जोड़ दिया है. जब आप उनकी कहानियों को पढ़ते हैं, तो वे सीधी, घरेलू गृहिणियों के रूप में सामने नहीं आती हैं. लोकप्रिय मैथोलॉजिस्ट ने सती और सावित्री दोनों की दास्तान सुनाई. कैसे सावित्री ने यम से अपने पति का जीवन वापस ले लिया, यह भी बताया.
Advertisment


यदि आप इस दृष्टिकोण से देखें तो सती और सावित्री शांत और बोल्ड हैं. लेकिन फिर सती सावित्री ’शब्द का अर्थ पवित्र और घरेलू महिलाओं के साथ क्यों है? पट्टानिक कहते हैं, “आप खुद से पूछिए कि कोई भी आपको ये कहानियाँ क्यों नहीं सुनाता? क्यों कहानीकार केवल आपको सीता और क्रोधित द्रौपदी के रोने के बारे में बताना चाहते हैं, और शांत सती सावित्री के बारे में नहीं?"
Advertisment

हमें अपनी कहानियों की व्याख्या को फिर से देखने की जरूरत है. क्या सीता संकट में सिर्फ एक अबला महिला थी? क्या अपमान का बदला लेने के अलावा द्रौपदी के पास और कुछ नहीं था? इसके अलावा, क्या सीता और द्रौपदी ही एकमात्र महिलाएं है जिनकी कहानियां सुननी चाहिए? सती और सावित्री की कहानी भी आवश्यक है.


अगर नैरेटिव बदल जाए

Advertisment

भारतीय पौराणिक कथाएं उन महिलाओं की कहानियों से भरी हैं, जिन्हे अपने सम्मान के खातिर पुरुषों पर निर्भर रहना पड़ता है.

पौराणिक कथाओं की लोकप्रिय कहानियां, हमें बताती हैं कि पुरषों द्वारा महिलाओं के सम्मान की रक्षा के बारें में बताती है. उन्हें बुराई और अन्य पुरुषों से बचाते हैं. बहुत कम कहानियाँ है जो महिलाओं की साहसी और मजबूत इच्छाशक्ति के बारे में होती है. महिलाओं को केवल पवित्र, सम्मानित और समर्पित पत्नियों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.
Advertisment


हमें अपनी कहानियों की व्याख्या को फिर से देखने की जरूरत है. क्या सीता संकट में सिर्फ एक अबला महिला थी? क्या अपमान का बदला लेने के अलावा द्रौपदी के पास और कुछ नहीं था? इसके अलावा, क्या सीता और द्रौपदी ही एकमात्र महिलाएं है जिनकी कहानियां सुननी चाहिए? सती और सावित्री की कहानी भी आवश्यक है.
Advertisment

हमारा समाज बेटियों को पितृसत्ता को चुनौती देने से रोकना चाहता है और अपने पसंद से बस शादी करवा देना चाहता है.


यदि लड़कियां पुरुषों को चुनौती देना शुरू कर, जो करना चाहती हैं, वो करे तो काफी कुछ बदलेगा. सती सावित्री शब्द से हम लंबे समय से एक महिला को असहाय, पारंपरिक और समर्पित के रूप में चित्रित करने के लिए उपयोग कर रहे हैं. कितनी आधुनिक महिलाएं वास्तव में ऐसी बनना चाहती हैं?
Advertisment

publive-image देवदत्त पट्टनायक
Advertisment

यह समय है कि हम नैरेटिव को बदलें और सती सावित्री शब्द से जुड़े अर्थ को बदले. जिन महिलाओं के साथ हम पहचान कर सकते हैं न कि जो समाज हमें बनाना चाहता हैं. तो आइए हम इन कथाओं को फिर से जानने के लिए एक नए सिरे से और सशक्त तरीके से पढ़ते है. और सक्षम महिलाओं को असहाय और दुखद दिखने से इनकार करते है.

(यह आर्टिकल यामिनी पुस्तके भालेराव ने अंग्रेजी में लिखा है.)
#फेमिनिज्म
Advertisment