Period Poverty: जब पीरियड्स में नैपकिन न हो तो कैसे करें मैनेज?

गांवों और झुग्गियों में रहने वाली महिलाएं पीरियड्स के दौरान बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझती हैं, जिससे उनकी सेहत, पढ़ाई और कामकाज पर गहरा असर पड़ता है। समाधान बेहद ज़रूरी है।

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Priyanka
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How to manage when there is no napkin during periods: गाँवों और शहरों की झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली लाखों महिलाओं के लिए हर महीने पीरियड्स एक बड़ी चुनौती बन जाते हैं। सैनिटरी नैपकिन जैसी बुनियादी सुविधा तक पहुँच न होना न सिर्फ उनकी सेहत के लिए खतरनाक है, बल्कि उनकी पढ़ाई-लिखाई और कामकाज को भी बुरी तरह प्रभावित करता है। आइए समझते हैं कि संसाधनों के अभाव में महिलाएँ कैसे इस दौर से गुजरती हैं और इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है।

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 जब पीरियड्स में नैपकिन न हो तो कैसे करें मैनेज?

पुराने कपड़ों पर मजबूरन निर्भरता

अधिकांश गरीब महिलाएँ periods के दिनों में पुराने सूती कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं, जिन्हें वे बार-बार धोकर दोबारा यूज करती हैं। यह तरीका न सिर्फ असुविधाजनक होता है बल्कि साफ-सफाई का ध्यान न रख पाने की स्थिति में यह कई तरह के संक्रमणों को भी न्यौता देता है। कुछ इलाकों में तो महिलाएँ राख या newspaper के टुकड़ों तक का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक साबित होता है।

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शिक्षा और रोजगार पर पड़ता है बुरा असर

स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए sanitary Napkin न होना अक्सर स्कूल छूटने का कारण बन जाता है। कई Reports बताती हैं कि गरीब परिवारों की लड़कियाँ हर महीने औसतन 4-5 दिन की पढ़ाई मिस कर देती हैं, जो लंबे समय में उनकी शिक्षा में एक बड़ी खाई पैदा कर देता है। कामकाजी महिलाओं के लिए भी यह समस्या उनकी दैनिक आय को प्रभावित करती है, क्योंकि संसाधनों के अभाव में वे कई बार काम पर नहीं जा पातीं।

स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएँ

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गंदे और बार-बार इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़ों से योनि संक्रमण, यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन जैसी कई स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा होती हैं। लंबे समय तक अस्वच्छ तरीके अपनाने से यह महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुँचा सकता है। ग्रामीण इलाकों में तो यह समस्या और भी गंभीर है, क्योंकि वहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ भी सीमित होती हैं।

सरकारी योजनाओं की सीमाएँ

हालाँकि सरकार ने 'सुकन्या समृद्धि योजना' जैसी पहलों के तहत सस्ती दरों पर सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराने की कोशिश की है, लेकिन जागरूकता की कमी और सामाजिक कलंक के चलते ये योजनाएँ पूरी तरह कारगर साबित नहीं हो पा रही हैं। कई स्कूलों में मुफ्त नैपकिन वितरण की व्यवस्था होने के बावजूद लड़कियाँ शर्म के मारे इन्हें लेने से कतराती हैं।

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समाज के स्तर पर होने वाले प्रयास

इस दिशा में कई गैर-सरकारी संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता सक्रिय हैं जो महिलाओं को कपड़े से बने रियूजेबल पैड्स बनाना सिखा रहे हैं। कुछ संस्थाएँ मेंस्ट्रुअल कप जैसे टिकाऊ विकल्पों के बारे में जागरूकता फैला रही हैं जो लंबे समय तक इस्तेमाल किए जा सकते हैं। स्थानीय स्तर पर छोटे उद्यमी कम लागत वाले सैनिटरी नैपकिन बनाने का काम भी शुरू कर रहे हैं।

हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी

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इस गंभीर समस्या का समाधान सिर्फ सरकारी योजनाओं से ही नहीं निकलेगा। समाज के हर वर्ग को इस दिशा में संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत है। पीरियड्स पर खुलकर बातचीत करके हम इससे जुड़े कलंक को तोड़ सकते हैं। अपने आस-पास की जरूरतमंद महिलाओं और लड़कियों की मदद करके, सैनिटरी उत्पादों के बारे में जागरूकता फैलाकर हम इस समस्या को कम करने में योगदान दे सकते हैं।

पीरियड पॉवर्टी सिर्फ एक स्वास्थ्य या आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के मौलिक अधिकारों और गरिमा से जुड़ा हुआ मामला है। एक ऐसे समाज की कल्पना जहाँ हर महिला और लड़की को पीरियड्स के दौरान सुरक्षित और स्वच्छ तरीके उपलब्ध हों, हम सभी का सपना होना चाहिए। छोटे-छोटे प्रयासों से शुरुआत करके हम इस दिशा में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।

periods sanitary napkin