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Jaya Bachchan Birthday Special: जया बच्चन सिर्फ एक अदाकारा नहीं, बल्कि एक विचारधारा हैं जो शांति, गरिमा और स्त्री सशक्तिकरण का प्रतीक रही हैं। आज जब वो अपना 77वां जन्मदिन मना रही हैं, यह मौका है उनके लंबे, प्रेरणादायक और विविधतापूर्ण करियर को सम्मान देने का।
जया बच्चन का फिल्मी सफर महज़ 15 साल की उम्र में सत्यजीत रे की बंगाली फिल्म महानगर से शुरू हुआ था। लेकिन गुड्डी (1971) ने उन्हें हिंदी सिनेमा में घर-घर का नाम बना दिया। 1960 से 1980 के दशक तक उन्होंने हर तरह के किरदारों को जिया चुलबुली लड़की, संवेदनशील पत्नी, और साहसी महिला तक।
5 आइकॉनिक फिल्में जो उनकी सिनेमाई विरासत को सलाम करती हैं
1. गुड्डी (1971): एक मासूम लड़की की फिल्मी दीवानगी
गुड्डी में जया ने एक ऐसी लड़की का किरदार निभाया जो फिल्मों की चकाचौंध में खोई रहती है। उनकी मासूमियत, चंचलता और अभिनय की सादगी ने दर्शकों का दिल जीत लिया। यही फिल्म थी जिसने उन्हें 'नई नायिका' के तौर पर स्थापित किया एक ऐसी नायिका जो हकीकत के ज्यादा करीब थी।
2. कोशिश (1972): बिना शब्दों के बोले गई एक गहरी कहानी
इस फिल्म में जया ने एक मूक-बधिर महिला का किरदार निभाया। फिल्म न केवल उनकी अदाकारी की गहराई को दिखाती है, बल्कि विकलांगता के साथ जीवन जीने की गरिमा और संघर्ष को भी दर्शाती है। कोशिश भारतीय सिनेमा की सबसे भावनात्मक और सशक्त फिल्मों में गिनी जाती है।
3. अभिमान (1973): प्यार, अहंकार और पहचान की टकराहट
इस फिल्म में जया एक उभरती हुई गायिका बनीं, जिसकी लोकप्रियता पति के आत्मसम्मान से टकरा जाती है। जया का अभिनय एक शांत, सहनशील लेकिन आत्मनिर्भर महिला का चित्रण करता है। इस भूमिका के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड मिला था।
4. मिली (1975): ज़िंदगी को मुस्कुराकर गले लगाना
मिली में जया ने एक ऐसी लड़की का रोल निभाया जो जीवन के हर पल को खुशी से जीना चाहती है, भले ही उसकी जिंदगी बहुत लंबी न हो। उनकी यह भूमिका दर्शकों को आज भी याद है संवेदनशील, सकारात्मक और दिल छू लेने वाली।
5. चुपके चुपके (1975): कॉमेडी में भी उतनी ही सशक्त
यह फिल्म दिखाती है कि जया बच्चन केवल गंभीर और संवेदनशील किरदारों की ही मास्टर नहीं, बल्कि उनका कॉमिक टाइमिंग भी लाजवाब है। चुपके चुपके एक हल्की-फुल्की, लेकिन यादगार फिल्म है जिसमें उन्होंने अपनी सादगी और मुस्कान से दिल जीता।
एक कलाकार से कहीं बढ़कर
जया बच्चन का योगदान सिर्फ सिनेमा तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने शहंशाह जैसी फिल्मों की स्क्रिप्ट भी लिखी और राजनीति में भी सक्रिय रहीं। संसद में उनकी उपस्थिति और स्त्रियों के मुद्दों पर उनकी आवाज उन्हें एक सशक्त सार्वजनिक व्यक्तित्व बनाती है।
77 साल की उम्र में भी जया बच्चन की भूमिकाएं आज की पीढ़ी के लिए उतनी ही प्रेरणादायक हैं जितनी उस दौर में थीं। उनके अभिनय में जो सच्चाई, संयम और गहराई है, वो शायद ही किसी और कलाकार में देखने को मिले। उनका हर किरदार एक संवेदनशील और सशक्त महिला की कहानी कहता है।