PK Rosy: सिनेमा इतिहास से मिटा दी गई दलित अभिनेत्री की कहानी

भारत की पहली दलित महिला अभिनेत्री PK रोज़ी ने मलयालम सिनेमा में इतिहास रचा, लेकिन जातिगत भेदभाव ने उनका नाम भुला दिया। जानिए उनकी संघर्षपूर्ण और प्रेरणादायक कहानी।

author-image
Vaishali Garg
New Update
PK Rosy: The Dalit Actor Erased From Cinema History

जब भी भारतीय सिनेमा के इतिहास की बात होती है, तो पहले महिला नायिका के रूप में अक्सर MK Kamalam का नाम सामने आता है, जिन्होंने 1938 में आई मलयालम टॉकी 'बालन' से डेब्यू किया था। लेकिन इससे एक दशक पहले ही एक दलित महिला कलाकार ने मलयालम सिनेमा की पहली फीचर फिल्म विगतकुमारन में नायिका का किरदार निभाया था उनका नाम था PK रोज़ी।

Advertisment

PK Rosy: एक वो नाम जिसे इतिहास ने भुला दिया… लेकिन हम नहीं भूल सकते

PK रोज़ी भारत की पहली दलित महिला अभिनेत्री थीं, जिनकी बहादुरी, संघर्ष और सामाजिक बदलाव की कहानी आज भी उतनी ही ज़रूरी है जितनी करीब सौ साल पहले थी। लेकिन अफ़सोस की बात है कि जाति और लिंग आधारित भेदभाव ने उनके नाम को सिनेमा के इतिहास से लगभग मिटा ही दिया था।

बचपन से संघर्षों का साथ

Advertisment

PK रोज़ी का जन्म 1903 में केरल की पुलाया जाति में हुआ था, जो उस समय की सबसे उत्पीड़ित दलित जातियों में से एक थी। उनका बचपन गरीबी, सामाजिक तिरस्कार और अवसरों की भारी कमी में बीता। लेकिन कला के प्रति उनका प्रेम कभी नहीं टूटा। वे लोकनाट्य करती थीं, गीत गाती थीं और थिएटर में हिस्सा लेती थीं। रोज़ी का जीवन हमें यह दिखाता है कि कैसे सामाजिक सीमाएं भी किसी की प्रतिभा को नहीं रोक सकतीं जब तक वह ख़ुद हार ना माने।

विगतकुमारन: एक फ़िल्म जिसने सब कुछ बदल दिया

Advertisment

1928 में निर्देशक जे.सी. डैनियल ने मलयालम की पहली फीचर फ़िल्म विगतकुमारन बनाई और रोज़ी को उसमें प्रमुख भूमिका दी। उन्होंने 'सरोजिनी' नाम की एक नायर महिला का किरदार निभाया, जो एक उच्च जाति की पहचान थी। बस, यहीं से विवाद शुरू हो गया।

एक दलित महिला द्वारा नायर पात्र निभाना उस समय के उच्च जाति समुदायों को अस्वीकार्य था। फ़िल्म रिलीज़ होने के बाद उग्र भीड़ ने थिएटर पर हमला किया, रोज़ी के घर को जला दिया और उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया। सिर्फ़ इसलिए कि उन्होंने अभिनय किया वो भी एक दलित महिला होकर।

इतिहास की परछाइयों में खोई एक आवाज़

Advertisment

हमले के बाद PK रोज़ी का फ़िल्मी सफर वहीं थम गया। माना जाता है कि वे तमिलनाडु चली गईं और वहां नया जीवन शुरू किया, लेकिन फिर कभी सिनेमा की दुनिया में उनका नाम नहीं आया। उनका योगदान इतिहास की किताबों से गायब कर दिया गया क्योंकि वे एक दलित थीं।

देर से ही सही, पर सम्मान मिला

सालों बाद, भारत ने आखिरकार PK रोज़ी को वह पहचान देना शुरू किया जिसकी वे हकदार थीं। 2023 में भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया। Women in Cinema Collective (WCC) और कई दलित इतिहासकारों ने भी उनके योगदान को सामने लाकर लोगों को उनके बारे में बताया।

Advertisment

एक विरासत जो प्रेरणा बन चुकी है

PK रोज़ी की कहानी सिर्फ़ एक फ़िल्म या एक अभिनेत्री की नहीं है। यह कहानी है उस साहस की, जिसने जाति और लिंग की दीवारों को लांघने की हिम्मत की। यह उस अन्याय की कहानी है, जो आज भी समाज के कई हिस्सों में मौजूद है।

PK रोज़ी का नाम अब सिर्फ़ मलयालम सिनेमा के इतिहास में नहीं, बल्कि भारतीय सामाजिक न्याय की लड़ाई में भी दर्ज हो चुका है। उन्हें याद करना केवल इतिहास को सुधारना नहीं, बल्कि एक न्यायपूर्ण समाज की ओर एक कदम है।

Advertisment

क्या हम सच में सबको बराबर मानते हैं?

PK रोज़ी जैसी कहानियाँ हमें आइना दिखाती हैं कि प्रतिनिधित्व, समानता और न्याय सिर्फ़ शब्द नहीं, बल्कि संघर्ष की मिसालें हैं। आज जब हम फिल्मों में समावेशिता और विविधता की बात करते हैं, तो हमें उन बहादुर महिलाओं को भी याद रखना होगा जिन्होंने बिना किसी समर्थन के यह रास्ता बनाया था।