Women Centric Films Of Bollywood: दशकों से हिंदी सिनेमा देश के समय और परिदृश्य को दर्शाता रहा है। फिल्मों में सजावटी वस्तु की भूमिका निभाने से लेकर पीड़ित और मजबूत ताकत बनने तक महिलाओं ने फिल्मों में एक लंबा सफर तय किया है। बात है 1930 के दशक की जब सिनेमा जगत में महिलाओं का काम करना गलत माना जाता था, तब शोभना समर्थ, देविका रानी, जुबैदा जैसी अभिनेत्रियों ने फिल्म व्यवसाय में अपनी कदम रख इसकी सूरत को बदला। इन अभिनेत्रियों ने ही युवा पीढ़ी की महिलाओं को सिनेमा जगत में अपनी प्रतिभा दिखाने का मार्ग प्रशस्त किया। हालांकि बॉलीवुड की ज्यादातर फिल्मों में हीरोइन को डेकोरेटिव आइटम की तरह सजाकर बस हीरो की प्रेमिका तक ही सीमित किया गया है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में काफी बदलाव देखने को मिले हैं। जिससे महिलाएं अपने जबरदस्त किरदार से दर्शकों के सामने अपनी खास पहचान रख पाई है।
ये महिला केंद्रित फिल्में करेंगीं आपको प्रेरित
1. पिंक
पिंक मूवी उस पुरुषवादी मानसिकता के खिलाफ एक कड़ा संदेश देती है, जो स्त्री और पुरुष को अलग-अलग मापदंड पर रखते हैं। यह फिल्म उन प्रश्नों को भी उठाती हैं, जिनके आधार पर लड़कियों के चरित्र के बारे में बात की जाती है। फिल्मों के माध्यम से दिखाया गया है कि कैसे एक स्त्री के चरित्र को घड़ी की सुई के आधार पर तय किए जाते हैं। फिल्म यह भी बताती है कि भले ही वह स्त्री आपकी पत्नी हो या आपकी प्रेमिका यदि वह ना कहती है तो उसे किसी भी पुरुष को छूने और जबरदस्ती करने का अधिकार नहीं है। यह फिल्म हमें सिखा देती है कि हमें सेव गर्ल पर नहीं बल्कि सेव बॉय पर काम करना चाहिए।
2. क्वीन
क्वीन एक सफर है, जो छोटे शहर की आत्मविश्वास के अभाव की शिकार हुई लड़की के जीवन को सकारात्मक ढंग से बदल देता है। इस फिल्म के हर एक शब्द के अर्थ में क्रांति है। फिल्म उस रानी के बारे में बताती है जिसे उसके शादी से ठीक पहले छोड़ दिया जाता है, लेकिन फिर भी वह अपने रिश्ते पर दुख जताते हुए अकेले हनीमून पर जाने का फैसला करती है।
3. कहानी
यह फिल्म एक ऐसी सशक्त महिला की कहानी पर आधारित है, जो बड़ी हिम्मत के साथ अपने पति के मौत का बदला लेती है। इस फिल्म के माध्यम से दिखाया गया है कि कैसे एक अकेली बेचारी महिला जिसका पति भी नहीं रहा और बच्चा भी अब वह आगे क्या करेगी? अक्सर हमारे समाज में अकेली महिला को समझा जाता कि अब उसका कोई अस्तित्व नहीं रहा लेकिन यह फिल्म उन सभी सोच को दरकिनार कर दिखाती है कि एक महिला की जिंदगी कैसी होती है और वह कितना आगे बढ़ सकती है।
4. थप्पड़
अक्सर देखा गया है कि पुरुषों द्वारा कहा जाता है कि बस एक थप्पड़ ही तो था, क्या करूं? हो गया ना लेकिन इस पितृसत्ता सोच को तमाचा देते हुए यह फिल्म बताती है कि आखिर यह हुआ तो हुआ क्यों? यह फिल्म एक तरह से आईना है, जो हर बात पर चोट करती है। हमें बताती है कि हम इस पितृसत्ता सोच में इस कदर डूब चुके हैं कि हमें एहसास तक नहीं हो पता कि हम जो नॉर्मल समझ बैठे हैं, वह नॉर्मल नहीं है।