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इन क्रांतिकारी महिलाओं ने सबरीमाला में प्रवेश करने का प्रयास किया

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Swati Bundela
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जैसे ही वर्ष 2019 की शुरुआत हुई, 2 जनवरी एक ऐतिहासिक दिन बन गया। इस दिन 50 वर्ष से कम की आयु की दो महिलाओं ने पुलिस सुरक्षा के बीच विवादित सबरीमाला मंदिर में प्रवेश किया। बिंदु और कनकदुर्गा, दोनों क्रांतिकारी महिलाओं को यह करने के लिए हमेशा याद रखा जायेगा। सितम्बर 2018 में ही सर्वोच्च न्यायलय ने हर आयु की महिलाओं को केरल स्थित मंदिर में भगवान अय्यप्पा के दर्शन करने के प्रतिबन्ध से मुक्त कर दिया था।

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अलग-अलग आयु की काफी महिलाओं ने सर्वोच्च न्यायलय का फैसला आने के बाद मंदिर में प्रवेश करने का प्रयास किया। अक्टूबर के माह में जब मंदिर के दरवाज़े खोले गए, तब से अब तक राज्य प्रशासन की मदद से केवल 2 महिलाएं ही मंदिर के कुछ सौ मीटर पास तक पहुंच पायी हैं।  यह कुछ महिलाओं की सूची है जिन्होंने यह प्रयास किया।

रेशमा निशांत

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रेशमा ने मंदिर जाने में अपनी रूचि दिखाई और कथित तौर पर उन्हें प्रदर्शनकारियों द्वारा धमकियां दी गयीं। उन्होंने जब फेसबुक पर एक पोस्ट डाला तो उन लोगों ने धमकियां देना शुरू कर दिया जो उन्हें मंदिर नहीं जाने देना चाहते थे।

मैरी स्वीटी

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मैरी स्वीटी कज़हाकुट्टों की एक क्रिस्चियन महिला हैं। वे मंदिर जाने के इरादे से अक्टूबर के माह में पम्बा पहुंच गयीं। लेकिन पुलिस कर्मियों ने उन्हें सुरक्षा देने से मना कर दिया जिसके चलते उन्हें वापस लौटना पड़ा।

एसपी मंजू

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केरल दलित महिला महासंघ की अध्यक्ष मंजू भी पम्बा पहुंची और उन्हें करीब सौ पुलिस कर्मियों ने एस्कॉर्ट किया। मंजू पारम्परिक रूप से तैयार होकर आयीं थीं। उनके पास इरुमुदी केतु भी था जिसे 41 दिन तक व्रत रखने वाले भक्त लेकर जाते हैं। लेकिन मंजू भी पम्बा से आगे नहीं जा पायीं।

सुहासिनी राज

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18 अक्टूबर को न्यू यॉर्क टाइम्स की पत्रकार सुहासिनी ने पहाड़ के ऊपर तक जाने की कोशिश क्यूंकि वह वहां से रिपोर्टिंग करना चाहती थीं। वे किसी मित्र के साथ आयी थीं लेकिन उन्हें भी सबकी तरह उग्र प्रदर्शनकारियों के आगे झुकना पड़ा।

कविथा जक्कल

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जब मंदिर अक्टूबर में खुला, तो पत्रकार कविथा और एक अन्य महिला मंदिर के सबसे करीब पहुँच गयीं। कविथा सौइयों पुलिस सदस्यों के साथ मंदिर की तरफ प्रस्थान करने लगीं। उन्होंने प्रदर्शनकारियों द्वारा फेंकी जाने वाली बोतलों से खुद को बचाने के लिए हेलमेट पहन लिए। लेकिन, उनके मंदिर के पास पहुँचते ही तान्त्री गुस्सा हो गए और उन्हें वापस आना पड़ा।

रेहाना फातिमा

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मानव अधिकार कार्यकर्ता रेहाना ने पुलिस को सूचित किया कि वे मंदिर जाना चाहती हैं। वे पम्बा पहुंचकर कविथा से मिलीं, जहां से वे दोनों फ़ोर्स की मदद से आगे बढ़ने लगे।

रेहाना ने शीदापीपल को बताया, "रास्ते में प्रदर्शनकारियों ने कविथा पर एक कांच की बोतल फेंक दी, इसलिए पुलिस ने हमें हेल्मेट्स दे दिए। लेकिन जैसे ही हम मंदिर पहुंचे, तो मंदिर के तांत्रिक ने कहा कि अगर महिलाएं आ गयीं तो वह मंदिर छोड़ देंगे।



अंजू



नवंबर में जब मंदिर के द्वार खुले, तो एक 30 वर्षीय महिला अपने पति और दो बच्चों के साथ पम्बा के बेस कैंप आ गयी। लेकिन जब प्रदर्शनकारियों को यह पता चला तो हिन्दू ऐक्य वेदी के नेता ससिकाला ने यह सुनिश्चित किया कि अंजू मंदिर तक न पहुंचे।

लिबी सीएस



लिबी न्यूज़गिल नाम की एक वेबसाइट में संपादक हैं। उन्हें पथानामथिट्टा के बस स्टैंड पर उग्र प्रदर्शन का सामना करना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने उन्हें घेर लिया। हालांकि, पुलिस ने तीव्रता दिखयी और लिबी की मदद की।

माधवी



आंध्र प्रदेश की माधवी पुलिस कर्मियों की मदद से अपने माता-पिता और बच्चों के साथ पम्बा तक पहुँच गयीं। लेकिन प्रदर्शन काफी बढ़ गया और उन्हें भी वापस आना पड़ा।

बिंदु थान्कम कल्याणी



बिंदु एक दलित कार्यकर्ता और शिक्षक हैं। मंदिर में जाने की वजह से उन पर काफी बार हमले हुए। जब उन्होंने फिर प्रयास किया तो प्रदर्शनकारियों ने उनका रास्ता जाम कर दिया और उन्हें काफी दिनों के लिए छिपना पड़ा।

मनीति समूह:  



दिसंबर में जब मंदिर खुला तो मनीति समूह की 11 महिला श्रद्धालु पम्बा पहुंची, लेकिन पुलिस ने उन्हें सुरक्षा देने से मना कर दिया। उन्होंने पुलिस स्टेशन के बाहर 8 घंटे प्रदर्शन भी किया।

अम्मीनी:



अम्मीनी, वायनाड से एक दलित कार्यकर्ता हैं। वे भगवन अय्यप्पा के दर्शन करने आयी थीं लेकिन बढ़ते प्रदर्शन की वजह से उन्हें वापस जाना पड़ा।



यह लेख पहले पूर्वी गुप्ता द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया था।



 
इंस्पिरेशन रेहाना फातिमा सबरीमाला #कविथा जक्कल #क्रांतिकारी महिला
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