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डिजिटल दुनिया की ताकत ही यही है कि इस क्षेत्र में हर चीज़ को आपके आराम के अनुसार कर दिया है। लेकिन क्या इससे असली पेरेंटिंग में भी बदलाव आने की सम्भावना है? बिलकुल है। इस बात को हम दो सन्दर्भों में ले सकते हैं। पहला यह कि लोग इस गेम को काफी ज्यादा पसंद कर रहें हैं| यह दर्शाता है कि आज-कल के माता-पिता हमेशा से ही अपने बच्चों के जीवन पर दबदबा बनाने में इच्छुक रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह दबदबा बनाने का प्रयास इसलिए किया जाता है ताकि उनके बच्चे जीवन में सक्षम बन जाएं और सफलता को हासिल करें। लेकिन यहां भी एक भ्रमित करने वाली चीज़ है। आपके लिए सफलता की परिभाषा क्या है? क्या सिर्फ अच्छे अंक आना या जीवन में खुश रहना?
जो माता-पिता इस गेम में अपने बच्चों के कॉलेज में अच्छे अंक ना आने पर दोबारा गेम शुरू कर देते हैं, शायद उनके लिए अंक ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।
वास्तविकता में भी, बहुत अच्छी गिनती में माता-पिता इस प्रतोयोगी दुनिया में अच्छे अंकों से ही अपने बच्चों को किसी काबिल समझते हैं। लेकिन बच्चों पर इसका असर सिर्फ एक दबाब के रूप में आता है।
अब 'चाइनीज़ पेरेंट्स' गेम की एक अच्छी बात पर भी नज़र डालते हैं। अच्छी बात यह है कि हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि जब माता-पिता यह गेम खेलेंगे तो उन्हें आत्मनिरीक्षण का एक मौका मिलता है। वह स्वयं के पेरेंटिंग के अंदाज़ और तरीके को मानो एक शीशे के सामने देख रहे हों। हो सकता है कि यह आत्मज्ञान उन्हें एक अलग तरह की पेरेंटिंग के लिए उत्सुक करे, जो पुराने तरीकों से बिलकुल अलग हो। हो सकता है कि माता-पिता अपने बच्चों को अपने निर्णय लेने की खुली छूट भी दे दें। अगर ऐसा होना शुरू भी हो जाता है, तो हम कह पायेंगे कि, हाँ यह गेम बदलाव का एक कारण है।