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इन विधवाओं का होना या ना होना बराबर था और इनके पति के मर जाने के बाद एक रोजमर्रा की जिंदगी जीना इनके लिए मुश्किल था। आज भी हमारे समाज में इन विधवाओं की इज्जत नहीं की जाती पर एक औरत ऐसी है जिसने अपने दम पर वाराणसी में विधवाओं के लिए आश्रम खोला।
ग्रैनी आशा की कहानी
इनका नाम ग्रैनी आशा है और इन को एक शादी में अंदर जाने से मना कर दिया था क्योंकि यह एक विधवा थी ।आशा एक पिछड़े हुए परिवार से नहीं आती हैं। इनकी बेटी शिल्पी सिंह एक कॉरपोरेट् से एंट्रेपरेनेउर बनी और उन्होंने अपनी ज़िंदगी के दर्दनाक किस्सों के बारे में बताया।
उन्होंने यह बताया कि कैसे उनकी मां को उनके बहन के विवाह में जाने से रोका गया क्योंकि वह एक विधवा थी ।इसीलिए शिल्पी ने एस परंपरा के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और यह बोला कि मैं यह चाहती हूं कि हर बूढ़ा और बच्चा अपनी आवाज़ उठाएं इन गलत परंपरा के ख़िलाफ़।
शिल्पी ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा “ आज मेरी बहन की शादी थी मुंबई में और मेरी मां जिन्हें ज्ञानी आशा के नाम से जाना जाता है उन्हें शादी में नहीं आने दिया यह कहकर कि वह एक विधवा है”, उनके इस पोस्ट पर एक इंसान का कमेंट आया “जिन्होंने लिखा कि यह बहुत ही ज्यादा दुखद बात है कि इस उम्र में आकर जहां उन्हें प्यार, इज्जत मिलनी चाहिए और प्रेरणादाई समझा जाना चाहिए और वहां जहां नौजवान लोगों को अपनी आवाज उठानी चाहिए, उन्होंने नहीं उठाई”.
शिल्पी ने कहा कि इसके खिलाफ आवाज उठाना बहुत ही ज्यादा जरूरी है।“ कई कई बार परिवार की समस्याओं को दबाया जाता है और परिवार के लोग इस रूढ़िवादी सोच का उल्लंघन नहीं कर पाते। मेरे परिवार में मेरे सारे भाई बहन और बड़े सब चुप रहे इसीलिए मैं सब को यह बताना चाहती हूं कि कोई बड़ा हो या बुरा उन्हें कभी भी शांत नहीं रहना चाहिए और चाहे वो रेप हो मॉलेस्टेशन हो या भेदभाव सिर्फ और सिर्फ परिवार की इज्जत के लिए लोगों को चुप नहीं रहना चाहिए”।
ग्रैनी आशा बनारस में एक आश्रम चलाती हैं और घर में काम करने के बावजूद उन्होंने आर्थिक रूप से अपने आप को सशक्त बनाया है। उन्होंने 65 साल की उम्र में अपनी बहन अरुणा के साथ ग्रैनी इन शुरू किया आज वह सबसे ज्यादा काम देखती है क्योंकि अरुणा बीमार हैं।
यह 2019 है और ना ही 1919 क्योंकि कहने को तो यह माना जाता है कि अब हम आगे बढ़ रहे हैं और हमारी सोच में बदलाव आ रहा है पर ऐसी चीजों को देखते हुए और मुंबई जैसे शहर में यह होते हुए, हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या हम सही में आगे बढ़ रहे हैं?
ऐसे समय में आते हुए जहां विधवाओं का फिर से शादी करना मान्य है और लिंग में भेदभाव कम हो रहा है क्या ऐसी औरतों के साथ यह होना चाहिए? समाज में लोगों को यह सिखाना चाहिए की इनके साथ कैसे बर्ताव करना है और इन्हें कैसे अच्छा महसूस करवाना है।