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वो एक सिल्वर बुलेट लेकर चलती है और उसी पे करतब करके दिखाती हैं। एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से आर्मी में आयी कप्तान शिखा सुरभि ने लिंग के भेद भाव से ऊपर आके आर्मी की पहली स्टंट वीमेन बानी। वो इंडियन आर्मी कॉर्प्स में गणतंत्र दिवस के परेड में करतब दिखाने वाली पहली महिला होगी। उन्होंने बाइक चलाना तो 15 साल की उम्र से सीख लिया था पर उन्हें बुलेट तब चलाने को मिला जब आर्मी कॉर्प्स ने उनपे भरोसा दिखाया और उन्हें टीम मे जुड़ने का प्रस्ताव दिया।
झारखंड और बिहार में पाली बड़ी इस 28 वर्ष की अफसर जो बाइक बड़े ही आराम से चला लेती है, उनके पिता एवं माता हज़ारीबाग़ में रहते है। उनका ये कहना है कि बचपन से ही उन्हें रोचक चीज़े करने का शौक रहा है और इसलिए उन्हीने जूडो और कराटे सीखा। उनकी माँ एक खेल शिक्षक हैं और उन्होंने ही शिखा को ज़िन्दगी में रोचक रहना, बढ़ावा देना और बाइक चलाने की प्रेरणा दी।
कैप्टन शिखा के अनुसार “बचपन से ही मार्टियाल आर्ट्स सिख कर मेरा आत्म विश्वास बढ़ा और मैंने ये जाना कि मैं कुछ भी कर सकती हूं। इस आर्ट्स ने मुझे स्वतंत्र रहना सिखाया। जब मैं 15 साल की थी तो एक दिन मेरे माता पिता ने मुझे बाइक की चाबी दी और सीखने की सलाह दी। जब मैं आर्मी में आई तो मेरा आकर्षण बुलेट की और इसलिए बढ़ा क्योंकि इसे सिर्फ पुरुष चलाते थे। मैंने बुलेट चलानी सीखी और लेह लदाख गयी। उसके बाद मेरी पोस्टिंग तवांग अरुणाचल प्रदेश में हुई जहाँ मैंने बाइक पे काफी जगह घूमी और मेरा विश्वास और बढ़ गया”
कैप्टन के अनुसार बड़े पोस्ट पे बौठे कप्तान और दूसरों ने उनपे भरोसा दिखाया और उन्हें आर्मी कॉर्प्स में शामिल किया।राजपथ पे अभयास करते समय उन्होंने कहा कि “आर्मी ने ही मुझे ये मौका दिया है और ये मेरी आशा है कि और लड़कियां इसमे आगे आये। मेरे से ऊपर पोस्ट पे औरतें कहती है कि उन्हें मुझपे गर्व है और ये की काश वो कभी मेरी तरह बाइक चला पाये”। अभयास करते समय एक लड़की उनके पास आयी और कहा कि उसे उनकी तरह बनाना है जिस से की उन्हें काफ़ी खुशी मिली।
कप्तान सुरभि जिनकी पहली कमीशन 2015 में हुई, अभी बठिंडा में पोस्टेड है। उनके लिए देश सबसे पहले आता है और अकादमी की ट्रेनिंग में सबको बराबर की ट्रेनिंग मिलती है चाहे लड़का हो या लड़की। “वो हमें नेतृत्व करना,सबके साथ काम करना,देश की रक्षा करना और देश के मर जाना, ये बातें सिखाते है। अगर देश के लिए मुझे मरना भी पड़े तो मैं सबसे पहले कुर्बानी देने के लिए तैयार हूं”
कप्तान सुरभि जैसे औरतें ही लिंग भेद भाव को खत्म करती है और इन चीज़ों से ऐसे लड़ती है की भारतीय सेना भी इन्हें लेने के लिए मजबूर होजाती है। इनकी कहानी से ये पता लगता है कि औरत अपनी क्षमता से ज्यादा कर सकती है अगर वी चाह ले तो।
मेरी माँ मेरी प्रेरणा है
झारखंड और बिहार में पाली बड़ी इस 28 वर्ष की अफसर जो बाइक बड़े ही आराम से चला लेती है, उनके पिता एवं माता हज़ारीबाग़ में रहते है। उनका ये कहना है कि बचपन से ही उन्हें रोचक चीज़े करने का शौक रहा है और इसलिए उन्हीने जूडो और कराटे सीखा। उनकी माँ एक खेल शिक्षक हैं और उन्होंने ही शिखा को ज़िन्दगी में रोचक रहना, बढ़ावा देना और बाइक चलाने की प्रेरणा दी।
कैप्टन शिखा के अनुसार “बचपन से ही मार्टियाल आर्ट्स सिख कर मेरा आत्म विश्वास बढ़ा और मैंने ये जाना कि मैं कुछ भी कर सकती हूं। इस आर्ट्स ने मुझे स्वतंत्र रहना सिखाया। जब मैं 15 साल की थी तो एक दिन मेरे माता पिता ने मुझे बाइक की चाबी दी और सीखने की सलाह दी। जब मैं आर्मी में आई तो मेरा आकर्षण बुलेट की और इसलिए बढ़ा क्योंकि इसे सिर्फ पुरुष चलाते थे। मैंने बुलेट चलानी सीखी और लेह लदाख गयी। उसके बाद मेरी पोस्टिंग तवांग अरुणाचल प्रदेश में हुई जहाँ मैंने बाइक पे काफी जगह घूमी और मेरा विश्वास और बढ़ गया”
"आर्मी हमें नेतृत्व करना,सबके साथ काम करना,देश की रक्षा करना और देश के मर जाना, ये बातें सिखाते है। अगर देश के लिए मुझे मरना भी पड़े तो मैं सबसे पहले कुर्बानी देने के लिए तैयार हूं” - शिखा सुरभि
आर्मी का एहम हिस्सा
कैप्टन के अनुसार बड़े पोस्ट पे बौठे कप्तान और दूसरों ने उनपे भरोसा दिखाया और उन्हें आर्मी कॉर्प्स में शामिल किया।राजपथ पे अभयास करते समय उन्होंने कहा कि “आर्मी ने ही मुझे ये मौका दिया है और ये मेरी आशा है कि और लड़कियां इसमे आगे आये। मेरे से ऊपर पोस्ट पे औरतें कहती है कि उन्हें मुझपे गर्व है और ये की काश वो कभी मेरी तरह बाइक चला पाये”। अभयास करते समय एक लड़की उनके पास आयी और कहा कि उसे उनकी तरह बनाना है जिस से की उन्हें काफ़ी खुशी मिली।
देश सबसे पहले
कप्तान सुरभि जिनकी पहली कमीशन 2015 में हुई, अभी बठिंडा में पोस्टेड है। उनके लिए देश सबसे पहले आता है और अकादमी की ट्रेनिंग में सबको बराबर की ट्रेनिंग मिलती है चाहे लड़का हो या लड़की। “वो हमें नेतृत्व करना,सबके साथ काम करना,देश की रक्षा करना और देश के मर जाना, ये बातें सिखाते है। अगर देश के लिए मुझे मरना भी पड़े तो मैं सबसे पहले कुर्बानी देने के लिए तैयार हूं”
कप्तान सुरभि जैसे औरतें ही लिंग भेद भाव को खत्म करती है और इन चीज़ों से ऐसे लड़ती है की भारतीय सेना भी इन्हें लेने के लिए मजबूर होजाती है। इनकी कहानी से ये पता लगता है कि औरत अपनी क्षमता से ज्यादा कर सकती है अगर वी चाह ले तो।