Advertisment

माताएं जिन्होंने सभी बाधाओं के बावजूद ऊंचाइयों को प्राप्त किया

author-image
Swati Bundela
New Update
भारत ऐसा देश है जहां न प्रतिभा की कमी है न कौशल की। लेकिन फिर भी काफी क्षेत्रों में तो जैसे महिलाओं का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इतना ही नहीं, जब महिलाएं माताएं बन जातीं हैं तब तो लोगों में उनके काम और शरीर को लेकर जो धारणाएं बन जाती हैं, उनका कोई अंत नहीं है। जैसे, जब महिला एक बार गर्भवती हो जाती हैं उसके बाद शरीर में होने वाले परिवर्तनों की वजह से फिर से वैसी ही मज़बूत नहीं हो पाती हैं। और अगर मस्तिष्क के हिसाब से देखा जाये तो उनकी जिम्मेदारियां इतनी बड़ जाती हैं कि वे अपनी व्यक्तिगत ज़िंदगी और करियर पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती हैं।

Advertisment


लेकिन, हमारे देश में ऐसी भी महिलाएं हैं जो एक बेहतरीन माता भी हैं और देश का नाम रोशन वाली क्रांतिकारी महिलाएं भी। आईये जानते हैं उन पांच माताओं के बारे में जिन्होंने सभी बाधाओं के बावजूद भी ऊंचाइयों को प्राप्त किया।

सान्या मिर्ज़ा

Advertisment


publive-image

Advertisment


सान्या एक मुस्लिम हैं और उन्हें बताया गया था की उन्हें छोटी स्कर्ट्स नहीं पहननी चाहिए क्यूंकि वह उनके लिए शर्मनाक होगा। जब उन्होंने पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मालिक से विवाह किया तब उनकी बहुत आलोचना हुई थी। उनपर देश के झंडे की इज़्जत न करने का भी आरोप लगा था। लेकिन इन सब आलोचनाओं के बाद भी सान्या ने भारत की विश्व भर में शान बढ़ा दी। वह दक्षिण एशिया की पहली महिला हैं जो यूएन वीमेन गुडविल एम्बेसडर की तरह नियुक्त हुई हैं।



इतना ही नहीं, 2012 में उनकी कलाई की चोट उनके करियर के लिए खतरा पैदा करने जैसी थी, लेकिन सान्या ने अपना पूरा ध्यान डबल्स में स्थानांतरित कर दिया। मिर्जा भारत की लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा बन गईं क्योंकि उन्होंने उस खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था, जिसे चुनने के लिए बहुत से लोगों में साहस की कमी थी।
Advertisment


मैरी कॉम



Advertisment
publive-image

“यह पदक मेरे लिए अन्य सभी पदकों की तरह ही बहुत खास है। मैं इसलिए जीती हूं क्योंकि इसमें संघर्षों की अपनी कहानी है। मेरे द्वारा जीता गया हर पदक एक कठिन संघर्ष की कहानी है"। यह वक्तव्य उन्होंने तब दिया था जब वे वियतनाम के महाद्वीपीय मीट में पांच स्वर्ण पदक का दावा करने वाले पहली मुक्केबाज बनीं।

Advertisment


मैरी ने अपने परिवार से मुक्केबाजी में अपनी रुचि को छिपाने की कोशिश की थी, क्योंकि यह उनके लिए एक खेल नहीं माना जाता था। अखबार में स्टेट बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीतने की एक फोटो आने पर उनके पिता ने उन्हें काफी डांटा था। हालांकि, इसने उन्हें मुक्केबाजी में अपना करियर बनाने से नहीं रोका। मैरी कॉम जुड़वां बेटों की मां हैं। 2008 में जब वह दो साल के मातृत्व अवकाश से विश्व चैंपियनशिप में अपना चौथा मुक्केबाजी स्वर्ण प्राप्त करने के लिए वापस आयीं, तब तुरंत ही उन्होंने "मैग्निफिसिएंट मैरी" का नाम जीत लिया।

किरण बेदी

Advertisment


Kiran Bedi

उनकी जीवन यात्रा और वह कैसे भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनी, वह सराहनीय है क्यूंकि उन्होंने सामाज के सभी नियमों को तोड़कर वह ज़ोर दिखाया था जिसके बारे में शायद किसी में सोचने का साहस न था।



किरण बेदी की हम सभी वास्तव में प्रशंसा करते हैं। यह अन्याय  से लड़ने के लिए, गरीबों के लिए मजबूत खड़े होने या आम आदमी पार्टी के लिए एक कार्यकर्ता के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत के बाद भाजपा में शामिल होने के लिए उनके मजबूत फैसले हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने दृढ़ निर्णयों के साथ अपनी उपस्थिति महसूस की है। उनके चरित्र, उनके काम और विकल्पों के बारे में अन्य राजनेताओं द्वारा निर्णय लिया जाता रहा है।

सोनाली बेंद्रे



publive-image



सोनाली बेंद्रे न्यूयॉर्क में उच्च ग्रेड कैंसर का इलाज करवा रही थीं। हाल ही में, वे सकारात्मकता फैला रही हैं और घातक बीमारी से जूझने के अपने बहादुर तरीके से सोशल मीडिया पर लोगों को प्रेरित करने की कोशिश कर रही हैं। सोनाली ने अपनी एक किताब में बताया था कि कैसे एक मां की ज़िम्मेदारी पूरे दिन में भी खतम नहीं होती। उन्होंने पारिवारिक तौर पर भी अपनी बीमारी के चलते काफी संघर्ष किया है।
इंस्पिरेशन किरण बेदी #मैरी कॉम #सान्या मिर्ज़ा #सोनाली बेंद्रे
Advertisment