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तृणमूल कांग्रेस की संस्थापक और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भारत के एक श्रेष्ठ महिला नेता हैं। उन्हें प्यार से दीदी कहकर बुलाया जाता है और बंगाल में वो पहली महिला हैं जिन्होंने इतने बड़े पद पे काम किया है। अभी वो बंगाल के आठवें मुख्यमंत्री के तौर से राज्य की देख रेख कर रही हैं। उनके राजनीतिक सफर में उन्होंने ये कामयाबी पायी.
बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री
ममता ने 1998 में इंडियन नेशनल कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस को संस्थापित किया और पार्टी की अद्यक्ष बनी।
ववश्व के 100 प्रेरणादायी लोगों में से एक
बनर्जी राजनीति में एक टक्कर बनके आयी और 2012 में टाइम मैगज़ीन ने इन्हें अपनी 100 सबसे ज्यादा प्रेरणादायी लोगो की सूची में शामिल किया।
कृषि और उद्योग दोनों पे ध्यान देना
बनर्जी के अनुसार “बिना कृषि के हम आगे नही बढ़ सकते और बिना उद्योग के भी हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे”।
सिंगुर में आदिवासियो की ज़मीन के लिए लड़ना
2019 के इलेक्शन मैनिफेस्टो में ममता ने ये इच्छा जताई कि सिंगुर के किसानों को उनकी ज़मीने वापस मिल जाएगी अगर एक बार कानूनी तौर से लड़ाई खत्म होजाएगी। ये मेनिफेस्टो 5 भाषाओं में छापा गया जिसमें की एक अलचिकि में छापा गया जोकि संथालों की भाषा है।
कम्युनिस्ट पार्टी को जड़ से हटाना
कम्युनिस्ट पार्टी को 2011 के एलेक्शन्स में जड़ से उखाड़ ममता बनर्जी ने इतिहास रचा। कम्युनिस्ट पार्टी पिछले 34 साल से राज्य पे हुकूमत कर रही थी।
राजनीतिक सफर की शुरूआत 1970 से
बेनर्जी जो कि इस्लामिक इतिहास में ग्रेजुएट हैं, राजनीति में 1970 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के साथ आई। उन्होंने तृणमूल की रचना 1997 में की और 2011 में मुख्यमंत्री की शपथ ली।
विवादों से जूझना
सारधा ग्रुप और रोज़ वैली के आर्थिक विवाद ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री काल में आये।
जीतने के लिए महा गठबंधन
2019 में बैनर्जी ने एक महा रैली बुलायी जहां विरोधी नेताओ ने एक होके भारतीय जनता पार्टी को केंद्र से हटाने का प्रण लिया।
सादगी भरा जीवन
ममता का जीवन काफी सादगी और आत्म अनुशासन भरा है। राज्य में उनको काफी इज़्ज़त दी जाती है और वो एक महान इंसान है।
कोई गुरु न होना
राजनीति में आगे बढ़ने के लिए ममता के पास कोई राजनीतिक गुरु नही था। यहां वो खुद के बलबुते पे आयी हैं।
बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री
ममता ने 1998 में इंडियन नेशनल कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस को संस्थापित किया और पार्टी की अद्यक्ष बनी।
ववश्व के 100 प्रेरणादायी लोगों में से एक
बनर्जी राजनीति में एक टक्कर बनके आयी और 2012 में टाइम मैगज़ीन ने इन्हें अपनी 100 सबसे ज्यादा प्रेरणादायी लोगो की सूची में शामिल किया।
कृषि और उद्योग दोनों पे ध्यान देना
बनर्जी के अनुसार “बिना कृषि के हम आगे नही बढ़ सकते और बिना उद्योग के भी हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे”।
सिंगुर में आदिवासियो की ज़मीन के लिए लड़ना
2019 के इलेक्शन मैनिफेस्टो में ममता ने ये इच्छा जताई कि सिंगुर के किसानों को उनकी ज़मीने वापस मिल जाएगी अगर एक बार कानूनी तौर से लड़ाई खत्म होजाएगी। ये मेनिफेस्टो 5 भाषाओं में छापा गया जिसमें की एक अलचिकि में छापा गया जोकि संथालों की भाषा है।
कम्युनिस्ट पार्टी को जड़ से हटाना
कम्युनिस्ट पार्टी को 2011 के एलेक्शन्स में जड़ से उखाड़ ममता बनर्जी ने इतिहास रचा। कम्युनिस्ट पार्टी पिछले 34 साल से राज्य पे हुकूमत कर रही थी।
राजनीतिक सफर की शुरूआत 1970 से
बेनर्जी जो कि इस्लामिक इतिहास में ग्रेजुएट हैं, राजनीति में 1970 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के साथ आई। उन्होंने तृणमूल की रचना 1997 में की और 2011 में मुख्यमंत्री की शपथ ली।
विवादों से जूझना
सारधा ग्रुप और रोज़ वैली के आर्थिक विवाद ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री काल में आये।
जीतने के लिए महा गठबंधन
2019 में बैनर्जी ने एक महा रैली बुलायी जहां विरोधी नेताओ ने एक होके भारतीय जनता पार्टी को केंद्र से हटाने का प्रण लिया।
सादगी भरा जीवन
ममता का जीवन काफी सादगी और आत्म अनुशासन भरा है। राज्य में उनको काफी इज़्ज़त दी जाती है और वो एक महान इंसान है।
कोई गुरु न होना
राजनीति में आगे बढ़ने के लिए ममता के पास कोई राजनीतिक गुरु नही था। यहां वो खुद के बलबुते पे आयी हैं।