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विमेंस राइट्स को लेकर अभी भी पूरी तरह से लोगों में जागरूकता नहीं बढ़ी है और यही कारण है कि एक सोसाइटी के रूप में हम ज़्यादा आगे नहीं बढ़ पाए हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण का मार्ग उनके राइट्स से होकर ही जाता है। इसलिए एक इक्वल समाज के गठन के लिए ये बहुत ज़रूरी है की हर महिला को अपने अधिकारों के बारे में पता हो ताकि कोई भी उनके बेसिक राइट्स का हनन ना कर पाए।
जानिए 5 प्रमुख विमेंस राइट्स के बारे में:
हर महिला का ये जन्मसिद्ध अधिकार है कि वो बिना किसी डर या भय के अपना जीवन इज़्ज़त के साथ जिएं। महिलाओं के साथ डिग्निटी और शिष्टता से पेश आना सबकी नैतिक ज़िम्मेदारी है और जो इसका पालन ना करते हुए उनका अपमान करने की कोशिश करता है वो कानून के नज़र में अपराधी है। इसिलए अगर आप भी ऐसे किसी सिचुएशन से गुज़रें तो इसके बारे में कम्प्लेन करने से बिलकुल ना घबराएं।
2005 के "प्रोटेक्शन ऑफ़ वीमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट" के अंतर्गत हर महिला को डोमेस्टिक वायलेंस से प्रोटेक्शन का अधिकार है। हमारे देश के संविधान के हिसाब से हर घर में मौजूद पत्नी, माँ, बहन या लिव-इन पार्टनर को डोमेस्टिक वायलेंस से प्रोटेक्शन का पूरा अधिकार है। इस डोमेस्टिक वायलेंस के अंतर्गत किसी भी तरह के फिजिकल वायलेंस के साथ-साथ वर्बल और मेंटल वायलेंस भी शामिल है।
हमारे देश में जेंडर के बेसिस पर किसी तरह का भी डिस्क्रिमिनेशन गैर-कानूनी है। इसलिए किसी काम को करने के लिए मेन और वीमेन को इक्वल पे का पूरा अधिकार है। हमारे समविधान के हिसाब से किसी की रिक्रूटमेंट में भी जेंडर डिस्क्रिमिनेशन गलत है। इसलिए अगर कभी आपको ऐसे किसी चीज़ से गुज़ारना पड़े तो तुरंत इस बारे में आवाज़ उठाएं।
हमारे देश में महिलाओं को जीरो एफआईआर फाइल करने का भी अधिकार है। इसके अंतर्गत कोई भी महिला किसी भी पुलिस स्टेशन पर एफआईआर लिखवा सकती है फिर चाहे वारदात की लोकेशन उस थाने के अधीन आती हो या नहीं। बाद में ये एफआईआर उस पुलिस स्टेशन को ट्रांसफर किया जा सकता है जिसके अधीन वो लोकेशन आता है। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पास किये गए इस निर्णय के पीछे का कारण यही था की जितनी जल्दी हो सके महिलाएं अपने खिलाफ हुए वारदातों की कम्प्लेन कर सकें और अपराधी को जल्द से जल्द पकड़ा जा सके।
ये राइट लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज एक्ट के अंडर आता है। इसके तहत अगर कोई महिला किसी भी तरह से पीड़ित है तो उसे लीगल सर्विस अथॉरिटीज से फ्री लीगल ऐड मांगने का पूरा हक़ है। ये अथॉरिटीज उनके लिए फिर वकील अरेंज करते हैं जो आगे फिर उनके केस को किसी भी कोर्ट या ट्रिब्यूनल में संभालते हैं।
जानिए 5 प्रमुख विमेंस राइट्स के बारे में:
1. राइट टू डिग्निटी
हर महिला का ये जन्मसिद्ध अधिकार है कि वो बिना किसी डर या भय के अपना जीवन इज़्ज़त के साथ जिएं। महिलाओं के साथ डिग्निटी और शिष्टता से पेश आना सबकी नैतिक ज़िम्मेदारी है और जो इसका पालन ना करते हुए उनका अपमान करने की कोशिश करता है वो कानून के नज़र में अपराधी है। इसिलए अगर आप भी ऐसे किसी सिचुएशन से गुज़रें तो इसके बारे में कम्प्लेन करने से बिलकुल ना घबराएं।
2. राइट अगेंस्ट डोमेस्टिक वायलेंस
2005 के "प्रोटेक्शन ऑफ़ वीमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट" के अंतर्गत हर महिला को डोमेस्टिक वायलेंस से प्रोटेक्शन का अधिकार है। हमारे देश के संविधान के हिसाब से हर घर में मौजूद पत्नी, माँ, बहन या लिव-इन पार्टनर को डोमेस्टिक वायलेंस से प्रोटेक्शन का पूरा अधिकार है। इस डोमेस्टिक वायलेंस के अंतर्गत किसी भी तरह के फिजिकल वायलेंस के साथ-साथ वर्बल और मेंटल वायलेंस भी शामिल है।
3. राइट टू इक्वल पे
हमारे देश में जेंडर के बेसिस पर किसी तरह का भी डिस्क्रिमिनेशन गैर-कानूनी है। इसलिए किसी काम को करने के लिए मेन और वीमेन को इक्वल पे का पूरा अधिकार है। हमारे समविधान के हिसाब से किसी की रिक्रूटमेंट में भी जेंडर डिस्क्रिमिनेशन गलत है। इसलिए अगर कभी आपको ऐसे किसी चीज़ से गुज़ारना पड़े तो तुरंत इस बारे में आवाज़ उठाएं।
4. राइट टू जीरो एफआईआर
हमारे देश में महिलाओं को जीरो एफआईआर फाइल करने का भी अधिकार है। इसके अंतर्गत कोई भी महिला किसी भी पुलिस स्टेशन पर एफआईआर लिखवा सकती है फिर चाहे वारदात की लोकेशन उस थाने के अधीन आती हो या नहीं। बाद में ये एफआईआर उस पुलिस स्टेशन को ट्रांसफर किया जा सकता है जिसके अधीन वो लोकेशन आता है। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पास किये गए इस निर्णय के पीछे का कारण यही था की जितनी जल्दी हो सके महिलाएं अपने खिलाफ हुए वारदातों की कम्प्लेन कर सकें और अपराधी को जल्द से जल्द पकड़ा जा सके।
5. राइट टू फ्री लीगल ऐड
ये राइट लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज एक्ट के अंडर आता है। इसके तहत अगर कोई महिला किसी भी तरह से पीड़ित है तो उसे लीगल सर्विस अथॉरिटीज से फ्री लीगल ऐड मांगने का पूरा हक़ है। ये अथॉरिटीज उनके लिए फिर वकील अरेंज करते हैं जो आगे फिर उनके केस को किसी भी कोर्ट या ट्रिब्यूनल में संभालते हैं।