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एस्केपिसम का बेसिक मतलब है किसी भी अप्रिय या मुश्किल रियलिटी से खुद को डिस्ट्रक्ट करने का तरीका। आम तौर पर एस्केपिसम कि टेन्डेन्सी हम सब में होती है और ज़्यादातर यही माना जाता है कि इसके ज़रिये हम अपने आप को रियलिटी फेस करने से बचा रहे हैं। लेकिन बच्चों में एस्केपिसम कई बार अपनेआप आ जाता है और इसके ज़रिये वो डेड्रीमिंग करने लगते हैं जो पूरी तरह से गलत नहीं है। इस महामारी में जब बच्चों को घर में ही रखा जा रहा है तो उसमे एस्कापिस्म कि टेन्डेन्सी आना स्वाभाविक है। अगर आपका बच्चा भी एस्केपिसम से गुज़र रहा है तो इन 5 तरीकों से इसे हैंडल करें:
जब आप बच्चों को रीक्रिएशन के लिए अलग से टाइम देंगे तो वो अपने प्रोडक्टिव टाइम में डेड्रीमिंग नहीं करेंगे। बच्चों के साथ फिल्म्स देखें, उन्हें बाहर लेकर जाएँ और अच्छी कहानियां भी सुनाएँ। जब बच्चे को पता होगा कि उसके पास रिक्रिएशन के लिए अलग से समय है तो वो अपने काम पर फोकस ज़्यादा अच्छे से करेंगे।
अगर बच्चे आपको अपने डेड्रीमिंग के बारे में कुछ बताते हैं तो तुरंत से उनकी बातों को ख़ारिज ना करें फिर चाहे उनके एक्सपेक्टेशन कितने भी अनरियल क्यों ना हो। बच्चे को आराम से और प्यार से उनके डेड्रीमिंग कि बातें समझाएं ताकि उन्हें दुनिया से कुछ ज़्यादा उमीदें न हों।
बच्चों को फिक्शन और नॉन-फिक्शन हर तरह के बुक्स पढ़ने दें। इससे ना सिर्फ उनकी नौलेज बढ़ेगी बल्कि वो अपने डेड्रीमिंग के हैबिट को भी सुधार पाएंगे। इस महामारी में बच्चे को एस्केपिसम के लिए बुक्स से अच्छा कोई मदद नहीं कर सकता है। इसलिए जितना हो सके बच्चे को बुक्स के करीब रखें।
कई बार बच्चे इसलिए भी डेड्रीमिंग और एस्केपिसम के तरफ शिफ्ट हो जाते हैं क्योंकि वो अपने पेरेंट्स के फाइट करता हुआ देखते हैं। ऐसे में अपने लाइफ को डेलूशनल और हैप्पी बनाने कि कोशिश में बच्चे डेड्रीमिंग करने लग जाते हैं। इसलिए बच्चे के सामने अपने पार्टनर से फाइट ना करें ताकि बच्चे को इन्स्योरिटी ना हो।
जब बच्चे डेड्रीमिंग करते हैं तो उनके बॉडी लैंग्वेज में भी काफी अंतर आ जाता है। इसलिए अपने बच्चे के बेहेवियर को ऑब्ज़र्व करें। इस बता का ध्यान रखें कि कहीं आपका बच्चा अकेला तो नहीं फील कर रहा है या फिर वो खुद को लेकर ज़्ज़्यादा कॉन्शियस तो नहीं है। अगर ऐसा है तो बच्चे से बात करें।
1. बच्चों के रीक्रिएशन के लिए अलग से टाइम निकालें
जब आप बच्चों को रीक्रिएशन के लिए अलग से टाइम देंगे तो वो अपने प्रोडक्टिव टाइम में डेड्रीमिंग नहीं करेंगे। बच्चों के साथ फिल्म्स देखें, उन्हें बाहर लेकर जाएँ और अच्छी कहानियां भी सुनाएँ। जब बच्चे को पता होगा कि उसके पास रिक्रिएशन के लिए अलग से समय है तो वो अपने काम पर फोकस ज़्यादा अच्छे से करेंगे।
2. बच्चे कि बात को ख़ारिज ना करें
अगर बच्चे आपको अपने डेड्रीमिंग के बारे में कुछ बताते हैं तो तुरंत से उनकी बातों को ख़ारिज ना करें फिर चाहे उनके एक्सपेक्टेशन कितने भी अनरियल क्यों ना हो। बच्चे को आराम से और प्यार से उनके डेड्रीमिंग कि बातें समझाएं ताकि उन्हें दुनिया से कुछ ज़्यादा उमीदें न हों।
3. बुक्स पढ़ने दें
बच्चों को फिक्शन और नॉन-फिक्शन हर तरह के बुक्स पढ़ने दें। इससे ना सिर्फ उनकी नौलेज बढ़ेगी बल्कि वो अपने डेड्रीमिंग के हैबिट को भी सुधार पाएंगे। इस महामारी में बच्चे को एस्केपिसम के लिए बुक्स से अच्छा कोई मदद नहीं कर सकता है। इसलिए जितना हो सके बच्चे को बुक्स के करीब रखें।
4. बच्चे के सामने पार्टनर से ना करें फाइट
कई बार बच्चे इसलिए भी डेड्रीमिंग और एस्केपिसम के तरफ शिफ्ट हो जाते हैं क्योंकि वो अपने पेरेंट्स के फाइट करता हुआ देखते हैं। ऐसे में अपने लाइफ को डेलूशनल और हैप्पी बनाने कि कोशिश में बच्चे डेड्रीमिंग करने लग जाते हैं। इसलिए बच्चे के सामने अपने पार्टनर से फाइट ना करें ताकि बच्चे को इन्स्योरिटी ना हो।
5. बच्चों कि बॉडी लैंग्वेज ऑब्ज़र्व करें
जब बच्चे डेड्रीमिंग करते हैं तो उनके बॉडी लैंग्वेज में भी काफी अंतर आ जाता है। इसलिए अपने बच्चे के बेहेवियर को ऑब्ज़र्व करें। इस बता का ध्यान रखें कि कहीं आपका बच्चा अकेला तो नहीं फील कर रहा है या फिर वो खुद को लेकर ज़्ज़्यादा कॉन्शियस तो नहीं है। अगर ऐसा है तो बच्चे से बात करें।