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महिलाओं के लिए सामान अधिकार और सुरक्षा
आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपने कौशल और विकास की छाप छोड़ रही हैं, जो लोगों की सोच में एक नया परिवर्तन ला रहा है। लेकिन यह अभी तक ज्यादातर शहरी महिलाओं तक ही सीमित है। हमें इस परिवर्तन को छोटे शहरों में रहने वाली महिलाओं से लेकर पिछड़ी जाती के लोगों तक पहुंचना है।
महिलाओं की सुरक्षा आज देश भर में एक ज़रूरी मुद्दा है। हर व्यक्ति इसके बारे में बात करता है और यह जागरुकता फैलाने के लिए ज़रूरी भी है। लेकिन इस चर्चा का सिर्फ आम होना काफी नहीं है। देशभर से हज़ारों महिला उत्पीड़न, छेड़छाड़, और सबसे शर्मनाक बलात्कार के किस्से हर दिन सामने आते हैं, जिनसे छुटकारा कैसे पाया जाये, इस पर विचार करना आवश्यक है। लेकिन यह परिवर्तन सिर्फ सरकार, संघठनों, और व्यक्ति विशेष के योगदान से ही आ सकता है।
2019 के चुनावों में महिलाओं की बढ़ती संख्या
हमेशा से ही आम तौर पर भारत की राजनीति पुरुषों के नेतृत्व में रही है। ऐसा कहना गलत होगा की महिलाओं ने अपने राजनैतिक नेतृत्व को प्रस्तुत नहीं किया है लेकिन वह पुरुषों के मुकाबले काफी कम है। और यही परिवर्तन होने वाले 2019 के चुनावों में देखना उत्साह जनक होगा। महिलाओं को न सिर्फ चुनावों में हिस्सा लेने का मौका देना चाहिए बल्कि कानून बनाने से लेकर चुनाव प्रक्रिया तक उनकी राय लेनी चाहिए।
सामान लैंगिक शादियों को अपनाना
देश की सर्वोच्च अदालत ने 2018 में धारा 377 को खारिज कर एलजीबीटी समुदाय के लोगों को एक नया जीवनदान दिया है। लेकिन आज भी एलजीबीटी समुदाय के लोगों के साथ दुर्व्यवहार होता है। इसलिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी जब हम एलजीबीटी समुदाय के लोगों के अधिकारों को सिर्फ कागज़ों में नहीं बल्कि उन्हें मन से अपनाएंगे। यह सामाज के विकास और उत्पादकता के लिए ज़रूरी है।
बॉलीवुड के आइटम सांग्स को हटाना
आज कल बॉलीवुड की फिल्मों में भले ही कुछ ख़ास हो न हो, लेकिन चकाचौंद से भरे आइटम सांग्स अवश्य होते हैं। फिल्में अपने प्लाट की वजह से कम और गानों की वजह से ज्यादा याद रखी जाती हैं। सच तो यह है कि इन आइटम नम्बरों को जल्द से जल्द ख़त्म कर बॉलीवुड से बाहर फेंकना चाहिए। इस तरह के गाने हमारी मानसिकता पर गलत असर डालते हैं। ज़रूरी है कि आइटम नम्बरों की जगह प्रेरणादायक गानों की संख्या बढ़े। क्या हमें आने वाले वर्ष में इस बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए?
प्रदूषण से 2019 में राहत
वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली से पहले ही पटाखों की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। लेकिन प्रदूषण सिर्फ दिवाली के समय नहीं बल्कि पराली जलाने, आदि से भी होता है। AQI का मान हर वर्ष 400 के आस-पास पहुँच जाता है। उन लोगों की सेहत के लिए अत्यधिक खतरा है जो पहले से ही सांस से सम्बंधित बीमारियों से पीड़ित हैं। इसलिए 2019 में हमारे वातावरण में परिवर्तन आये यह सभी की कामना है।
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