अगस्त 2021 में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा कर लिया और पूरे देश का शासन ले लिया।जिसके बाद देश के हालात बिगड़ने लगे।औरतों के बुनियादी अधिकार भी उनसे छीन लिए गए। औरतों के कपड़े, पढ़ाई बाहर आने जाने पर प्रतिबंध लगा दिए गए है। एक साल से ज़्यादा तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान पर C पर क़ब्ज़ा किए हो गया है जिसमें उसने औरतों के अधिकारों को एक तरह से ख़त्म ही कर दिया है।
‘माहवारी एक निषेध नहीं है’ पर कैंपेन चलाया
आज हम बात करने वाले है अफ़ग़ानिस्तान की महिला होदा ख़ामोश की जिसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर ‘माहवारी एक निषेध नहीं है’ पर कैंपेन चलाया और औरतों को माहवारी के बारे जागरूक किया।
कोई भी देश हो लेकिन आज भी हमारे समाज में माहवारी के बारे में कोई खुलकर बात नहीं करता। इसके लिए औरतों को घर में भी बहुत सारा भेदभाव भी सहना पड़ता है। कई बार लोग यह भी समझ लेते हैं कि औरत महावारी के कारण कमजोर होती है। आज हम पीरियड कैंपेनर होदा ख़ामोश के बारे में बात करेंगे जो स्कूलों में जाकर लोगों को माहवारी के प्रति जागरूक करती है।
होदा ख़ामोश कौन हैं? इनका बैकग्राउंड क्या है?
होदा ख़ामोश एक वोमेन राइट ऐक्टिविस्ट, जर्नलिस्ट और कैंपेनर है जो बहुत से कैंपेन चलाती है जिसमें वह औरतों को जागरूक करती है। उन्हें अलग-अलग विषयों पर जानकरी देती है। बीबीसी 100 में उनका नाम ‘माहवारी एक निषेध नहीं है’ के कारण आया।
ख़ामोश का जन्म 1996 में ईरान में हुआ था। लेकिन जब वह बच्ची थी तब अपने परिवार के साथ काबुल, अफ़ग़ानिस्तान में आ गई। 26 साल की महिला ने काबुल यूनिवर्सिटी में अपनी पढ़ाई की और फिर उसके बाद जर्नलिस्ट के लिए ट्रेनिंग ली। काबुल में अख़बारों में लेखिका और जर्नलिस्ट रही।इसके अलावा 2015 में रेडियो प्रेज़ेंटर की लिए भी काम किया जिसमें वह औरतों के साथ हो रहे अन्याओ के बारे में बात करती थी। इसके अलावा उसने अपने गांव में एक पढ़ाई के लिए अभियान भी शुरू किया था।
जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है तब से वह सातवीं कक्षा तक की लड़कियों को पढ़ाई करवाती है जिन्हें स्कूल जाने की आज्ञा नहीं है।
माहवारी एक निषेध नहीं है
माहवारी एक निषेध नहीं है’ एक जागरूकता अभियान है जिसको वोमेन राइट ऐक्टिविस्ट होदा ख़ामोश अफ़ग़ान के स्कूलों में चलाती है। इस अभियान का मुख्य उद्देश यह है कि पीरियड के बारे में खुलकर बात कर सके।
2021 में जब बीबीसी हंड्रेड वोमेन में सिलेक्ट हुई थी तब उन्होंने कहा था,"अपने सभी अंधेरे के बावजूद 2021 वह वर्ष है जब महिलाएं चाबुक और गोलियों के खिलाफ खड़ी हुई और उन लोगों से सीधे अपने अधिकारों का दावा किया जिन्होंने उन्हें छीन लिया था मैं इस वर्ष को आशा के वर्ष का नाम देती हूं"।