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"हर मुश्किल में, आप एक ओप्पोरचुनिटी पा सकते हैं," आइशा ने अपनी एक मोटिवेशनल स्पीच में कहा। आइशा चौधरी जो एक इम्यून डिसऑर्डर के साथ पैदा हुई थी और उसके पास सिर्फ एक साल ही था जीने के लिए । इसलिए उसने छह महीने की उम्र में बोन मैरो ट्रांसप्लांट करवाया। आइशा की अठारह वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई लेकिन लोगों ने अपने पूरे जीवनकाल में इससे अधिक हासिल किया। वह बहादुर थी, और समस्याओं के कारण बोल्ड थी और इसकी वजह से उसने बहुत-सी ऊंचाइयां हासिल कीं।
आइशा का जन्म गंभीर कंबाइंड इम्यून डेफिशिएंसी के साथ हुआ था जिसे आमतौर पर एससीआईडी के रूप में जाना जाता है। किसी को भी एस सीआईडी होने का मौका एक मिलियन में से एक होता है। इसके कारण उसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट करवाना पड़ा। 15 साल की उम्र में, उसे पल्मोनरी फाइब्रोसिस नामक एक बीमारी हुई जो फेफड़े के सख्त होने के कारण होती है जो बोन मेरो ट्रांसप्लांट का साइड-इफेक्ट होता है। 2014 में उसकी लंग्स की क्षमता 35% थी और बाद में घटती-बढ़ती रही। 24 जनवरी 2015 को उसकी मृत्यु हो गई। उसने कहा, "मृत्यु अंतिम सत्य है, लेकिन मैं खुश रहना चाहती हूं"
आइशा का सफर
आइशा का जन्म गंभीर कंबाइंड इम्यून डेफिशिएंसी के साथ हुआ था जिसे आमतौर पर एससीआईडी के रूप में जाना जाता है। किसी को भी एस सीआईडी होने का मौका एक मिलियन में से एक होता है। इसके कारण उसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट करवाना पड़ा। 15 साल की उम्र में, उसे पल्मोनरी फाइब्रोसिस नामक एक बीमारी हुई जो फेफड़े के सख्त होने के कारण होती है जो बोन मेरो ट्रांसप्लांट का साइड-इफेक्ट होता है। 2014 में उसकी लंग्स की क्षमता 35% थी और बाद में घटती-बढ़ती रही। 24 जनवरी 2015 को उसकी मृत्यु हो गई। उसने कहा, "मृत्यु अंतिम सत्य है, लेकिन मैं खुश रहना चाहती हूं"
आइये जानते हैं आइशा के बारे में कुछ दिलचस्प बातें –
- आइशा गुणों की खान थी , एक मोटिवेशनल स्पीकर होने के साथ -साथ आइशा को काफी सारे फ़ील्ड्स में महारत हासिल थी ।
- वो एक बहुत ही टैलेंटेड पेंटर भी थी ।
- उसने बहुत सारे इवेंट्स में मोटिवेशनल स्पीचेस दी हैं जैसे की 2013 में वो टेड अक्स पुणे में स्पीकर भी थी।
- उसने आई ऍन के कांफ्रेंस 2013 और 2014 में भी स्पीचेस दी थी। आइशा बहुत स्ट्रांग थी, उसमे हमेशा जीने का एक अलग ही जज़्बा था ।
- उसे किताबे पढ़ने का बहुत शौंक था ।
- 18 साल की उम्र में उसने अपनी पहली किताब लिखी था जिसका नाम था "माय लिटिल एपिफेनीस "।
- उसकी बुक उसके मरने से एक दिन पहले जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में रिलीज़ हुई थी
- आयशा को डॉग्स से बेहद प्यार था, उसके डॉग का नाम रोलो था ।