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क्या बढ़ती उम्र में सच्चे दोस्त बनाने हैं संभव ?

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Swati Bundela
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"यारों दोस्ती बड़ी ही हसीन है", यह गाना तो आपने सुना ही होगा ना ?? हमारे जीवन में जितने भी रिश्ते हैं उनमे से सबसे खूबसूरत एक रिश्ता है-दोस्ती I बचपन में स्कूल जाने का मज़ा ही कुछ और था जहाँ हमारे दोस्त हमारा इंतज़ार करते, और हम उनके साथ हमारा लंच बॉक्स शेयर करते I कितना अनोखा है यह रिश्ता दोस्ती का I लेकिन जैसे जैसे उम्र के हर पड़ाव आते गए, हमारे दोस्त भी कम होते चले गए; जलन, लड़ाई और बदले का शुक्रिया, जिन्होंने हमारे रिश्तों में ऐसे फूट डाली की हम ज़िन्दगी की दौड़ में अंधे हो गए और एक प्यारा सा रिश्ता गवां बैठे I

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बात करें कॉलेज की तो वह मस्ती ही अलग है I जहाँ पैसे मायने नहीं रखते थे लेकिन दोस्तों के साथ बिताया हुआ हर समय मायने रखता था I घर से रहने का इतना मन होता था की अजीब-अजीब बहाने बनाते थे। आज जब वह सारी बातें याद आती हैं तो चेहरे पर एक मुस्कुराहट छलक जाती है। क्या इसी प्रकार की दोस्ती आज मुमकिन है ? ऐसी दोस्त जिनसे आप रोज़ बात न करो तो आपका दिन ना बने ? और सबसे बड़ा सवाल की क्या बढ़ती उम्र में अच्छे दोस्त बन सकतें हैं ? अगर आप इन सब सवालों से सोच में पड़ गए हैं, तो मैं आपकी मुश्किल को आसान कर देती हूँ । इन सब प्रश्नों का जवाब है "हाँ", यदि आप चाहें तो बढ़ते उम्र में भी आप सच्चे दोस्त बना सकतें हैं ।

नए दोस्तों से भी बातें करने का अपना एक अलग मज़ा है। लेकिन दोस्ती के अलग दायरे हैं, धीरे-धीरे समय के साथ कुछ दोस्त और भी करीब आ जातें हैं और कुछ अपनी एक सीमा में रह जातें हैं ।

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अगर मैं अपने अनुभव की बात करूँ तो लगभग चार साल पहले अपने काम के द्वारा, नेटवर्किंग से और एक फेसबुक ग्रुप के कुछ मेंबर्स से ऑनलाइन मिली, धीरे-धीरे हमारा एक व्हाट्सएप्प ग्रुप भी बना। काफी सारे लोग उसमे शामिल हुए, उनमे से कुछ अपनी समान सोच के कारण रोज़ बातें करने लगे। सिचुएशन कुछ ऐसे बने जहाँ हम सारे वर्चुअल फ्रेंड्स रियल में मिले, और जब भी मौका मिला, हमेशा मिलते रहे। इन मुलाक़ातों से हम सब और भी करीब आये, और एक नयी दोस्ती की शुरुआत हुई।



मैं यहाँ, मेरे अलग-अलग ग्रुप्स की बात कर रही हूँ, और हर एक ग्रुप के साथ मेरी दोस्ती का लेवल अलग है, क्योंकि कुछ बिलकुल अभी अभी दोस्त बने हैं और कुछ पहले से ही दोस्त है। इनमे से कुछ ऐसे हैं जिनके साथ में मैं अपना सुख दुःख बांटने में हिचकिचाती नहीं । उनसे बात करके अच्छा लगता है। नए दोस्तों से भी बातें करने का अपना एक अलग मज़ा है। लेकिन दोस्ती के अलग दायरे हैं, धीरे-धीरे समय के साथ कुछ दोस्त और भी करीब आ जातें हैं और कुछ अपनी एक सीमा में रह जातें हैं ।
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आप जितने ज़्यादा लोगों से मिलेंगे उतना आपको सीखने को भी मिलेगा। मैं यह नहीं कहती की सारे ही लोग आपके करीबी दोस्त बन जाएंगे, लेकिन इतनी भीड़ में कम से कम २-३ को अवश्य आपके "दोस्त" कहलाएंगे और क्या पता अगर दोनों तरफ से कोशिश हो तो कुछ दोस्त ज़िन्दगी भर साथ होंगे।



लेकिन इसका यह मतलब नहीं की हम नए दोस्त बनाना की छोड़ दें । इस उम्र में मेरे चुनिंदा दोस्त हैं जिनसे मेरी रोज़ बात होती है, उनसे चैट किये बिना मेरा दिन नहीं बनता। और सबसे खूबसूरत बात यह है की अगर मैंने कभी उन्हें मैसेज नहीं किया तो उनकी तरफ से एक कॉल या मैसेज आता है की "सब ठीक तो है"? मन को काफी सुकून मिलता है, मैं इस विषय में खुद को काफी खुशनसीब मानती हूँ। जीवन में कभी कभी मुझसे भी भूल हुई, धोके भी बहुत खाये, कुछ दोस्तों ने काफी बुरा व्यवहार भी किया, लेकिन हमेशा एक सही समय पर मैंने उनसे अपने रास्ते अलग किये, और एक सीख मिली।
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इसका मतलब यह नहीं की मैंने दोस्त बनाना ही छोड़ दिया, खुद को लोगों से मिलने या उनसे बातचीत करने से कभी नहीं रोका और दिल के दरवाज़े हमेशा खुल्ले रखे ताकि उनमे नए दोस्तों को जगह मिल सके। यह निशचय मैंने अपनी खुद की ख़ुशी के लिए लिया जो मेरे लिए काफी अच्छा साबित हुआ । आप जितने ज़्यादा लोगों से मिलेंगे उतना आपको सीखने को भी मिलेगा। मैं यह नहीं कहती की सारे ही लोग आपके करीबी दोस्त बन जाएंगे, लेकिन इतनी भीड़ में कम से कम २-३ को अवश्य आपके "दोस्त" कहलाएंगे और क्या पता अगर दोनों तरफ से कोशिश हो तो कुछ दोस्त ज़िन्दगी भर साथ होंगे। इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है।

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जैसे आप और आपकी सोच बढ़ती उम्र के साथ समझदार होंगे, आप खुद ही एक सच्चे दोस्त को पहचान लेंगे। जैसा कहतें है की ताली एक हाथ से नहीं बजती, वैसे ही आप और आपके दोस्त इस रिश्ते को निभाने की पूरी कोशिश करेंगे । एक बात हमेशा याद रखिये की "दोस्ती की कोई उम्र नहीं होती"।



कावेरी शीदीपीपल.टीवी में आउटरीच संपादक हैं ।
#फेमिनिज्म
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