New Update
सास - बहू से परे :
हमने आमतौर पर नाटकों में बहु को एकदम संस्कारी देखा है , पाकिस्तानी नाटकों में महिलाएं संस्कारी बहू के रूप में नहीं दिखाई जाती हैं। वे अपनी खुद की एक पहचान में नज़र आती हैं। उनका जीवन उनके पति के साथ शुरू और खत्म नहीं होता है। अन्य सभी साउथ एशियाई कंट्रीज़ की तरह, पाकिस्तान में भी महिलाओं की अपनी लड़ाई होती है। मुसीबतों से डरने के बजाये वे वापस लड़ती हैं और हार नहीं मानती हैं।
'अकबरी असगरी' की असगरी लंदन में पली-बढ़ी एक महिला है। वह इस शो में बहुत इंडिपेंडेंट, ऑउटस्पोकन दिखाई गयी हैं। ज़िन्दगी गुलज़ार है से कशफ़ और इहाद-ए-वफ़ा से दुआ भी मज़बूत और ओपिनियनेटिड वूमेन के रूम में नज़र आती है।
रियल लाइफ सिचुएशंस :
पुनर्जन्म, काले जादू जैसी बेसलेस चीजें पाकिस्तानी नाटकों में कभी नहीं होती हैं। कहानी में नया मोड़ या ट्विस्ट लाने के लिए उन्हें इन चीज़ों की ज़रूरत नहीं पड़ती। पाकिस्तानी नाटकों में हमे रियल लाइफ सिचुएशंस देखने को मिलती है। ज्यादातर सीरियल्स में रिलिजन का एंगल नहीं दिखता। एंटरटेनिंग स्टोरी लाइन दर्शकों को शो से जोड़े रखने के लिए पर्याप्त है।
सामाजिक मुद्दों पर आधारित :
कांकर (Kankar) घरेलू हिंसा के मुद्दे को दिखाया गया है और एक महिला गलत कामों के खिलाफ आवाज उठाती है। मुझे जीने दो में मुख्य विषय बाल विवाह है लेकिन यह पाकिस्तान की अन्य आर्थिक और सामाजिक समस्याओं पर भी केंद्रित है। टेली फिल्म बेहद एक टीनएज लड़की की कहानी है जिसमे वह अपनी सिंगल मॉम को अपने से बहुत छोटे आदमी के प्यार में पड़ती हुई दिखाई गयी है।
पाकिस्तानी नाटक इस प्रकार के सामाजिक मुद्दों पर समाज को आईना दिखाने का काम करते हैं। वे हमें उन चीजों पर विश्वास करने के लिए मजबूर नहीं करते हैं जो असंभव हैं। न ही वे मुसलमानों को हर दूसरे वाक्य के बाद सुभानल्लाह और माशाल्लाह बोलते हुए दिखाते हैं। बेइंतेहा और क़ुबूल है जैसे सीरियल्स ने हमें धार्मिक समुदाय के बारे में गलत धारणा दी है। वे जो बोलते हैं वह हमे बहुत अच्छा लगता है, लेकिन सच्चाई से परे होते है। (Best Pakistani serials)