मां दुर्गा की प्रतिमा: भारत में हर त्योहार को एक अलग उत्साह के साथ मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का पर्व पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि पूरे भारत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का पर्व देवी दुर्गा की बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है। नौ दिनों तक चलने वाला नवरात्रि का पर्व शुरू हो गया है, नवरात्रि के 5 दिन से दुर्गा पूजा का उत्सव शुरू होता है और विजयदशमी वाले दिन ख़तम होता है।
पूरे पर्व के दौरान माता के भक्तों की धूम होती है। हर गली और चौंक पर भव्य पंडालों को खूबसूरती से सजाया जाता है और माता की बड़ी बड़ी मूर्तियां स्थापित की जाती है। मूर्ति की पूरे दुर्गा उत्सव में सुबह और शाम पूजा की जाती है और विजयदशमी के दिन माता की मूर्ति को खुशी खुशी उसका विसर्जन किया जाता है। आज भी कितने लोगों को यह नहीं पता कि इन मूर्तियों को बनाने के लिए किस मिट्टी का इस्तमाल किया जाता है। आज हम आपको बताएं की मूर्तियों के लिए किस मिट्टी का इस्तमाल किया जाता है।
ब्रोथल की मिट्टी से बनती है दुर्गा प्रतिमा
दुर्गा मां की मूर्तियां ब्रोथल के आंगन की मिट्टी से बनाई जाती हैं। वैसे तो ब्रोथल को अच्छा नहीं माना जाता लेकिन दुर्गा प्रतिमा के लिए यहां की मिट्टी का होना बहुत जरूरी है। जब तक ब्रोथल की मिट्टी नहीं मिलती है तब तक दुर्गा मां की मूर्ति का निर्माण पूरा नहीं होता। मूर्ति की पूजना मां दुर्गा तब तक स्वीकार नहीं करती जब तक उस मूर्ति में यहां की मिट्टी शामिल नहीं होती है। इसके साथ ही 3 चीजें और मिलाई जाती हैं इन मूर्तियों में। पहली गंगा के तट की मिट्टी, गौमूत्र, गोबर और ब्रोथल के आंगन की मिट्टी। ये रसम सालों से चली आ रही है और कुछ लोगों को आश्चर्य में डाल देती है।
ब्रोथल की मिट्टी से मूर्तियां क्यों बनती हैं?
इस अनोखी प्रथा के पीछे कई कारण हैं। सबसे पहला, जब एक व्यक्ति ब्रोथल के आंगन से गुजर कर उसके अंदर कदम रखता है तो वह व्यक्ति अपनी सारी अच्छाई और पवित्रता को वहीं बाहर ही छोड़ देता है। जिस वक्त वो अपना कदम अंदर को रखता है उसकी सारी अच्छाई, अच्छे कर्म, शुद्धता, सब बाहर ही रह जाती हैं जिसके कारण वहां की मिट्टी सबसे पवित्र और पूजनीय होती है। इसका दूसरा कारण है, प्रॉस्टिट्यूट को समाज से निष्कासित माना जाता है और उन महिलाओं को एक सम्मानित दर्जा देने के लिए इस प्रथा का निर्माण हुआ था।
आज भी पुजारी और मूर्तिकार दुर्गा पूजा के कुछ दिन पहले ब्रोथल के बाहर खड़े हो कर प्रॉस्टिट्यूट से उनके आंगन कि मिट्टी को मांगते हैं क्योंंकि यह एक रिचुअल है इसलिए प्रॉस्टिट्यूट को भी खुशी होती है अपने आंगन कि मिट्टी को देने में।