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डेलिया "दीदी" कांट्रेक्टर एक आर्टिस्ट, डिज़ाइनर और एक सेल्फ-लर्नड आर्किटेक्ट भी थीं, जिनकी कल रात एज-रिलेटेड कॉम्प्लीकेशन्स के कारण मौत हो गई। उनकी उम्र 91 वर्ष थी। पिछले 3 दशकों से वो हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा वैली में रह रही थीं और वहीं उन्होंने सस्टेनेबल लिविंग को प्रमोट करने के लिए बहुत काम किया। उनके नाम 15 घर और कई लो वेस्ट पब्लिक प्रोजेक्ट बनाने का श्रेय है। सिद्धबाड़ी के उनके घर में ही कल उनकी मृत्यु हो गई।
डेलिया एक जर्मन पिता और एक अमेरिकन माँ की एकलौती सनतान थी। 1951 में उन्होंने नारायण रामजी कांट्रेक्टर से शादी की और उसके बाद वो पहली बार भारत आयी थी। उनके पति के मित्र महाराणा भागवत सिंह मेवाड़, उदयपुर के महाराणा थे जिन्होनें उन्हें साल 1961 में उदयपुर के लेक पैलेस को डेकोरेट करने के लिए आमंत्रित किया था।
डेलिया "दीदी" कांट्रेक्टर का समाजसेविका कमलादेवी चट्टोपाधयाय से बहुत इंटरेक्शन हुआ जिसके बाद उन्होंने ट्रेडिशनल इंडियन क्राफ्ट्स को सीखने और समझने की कोशिश शुरू कर दी। मशहूर फिलॉस्फर अनंदा कुमारस्वामी के आर्ट और स्वदेशी के आइडियाज से भी वो बहुत प्रभावित हुई थीं। इन लोगों के मदद से ही उन्होंने ये विज़न बनाया की "इंडिया के पास क्या है और क्या बहुत जल्दी ख़त्म हो रहा है"।
दीदी के रूरल लाइफ के तरफ पहले से रहे रुझान के मद्देनज़र उन्होंने 70 के दशक में काँगड़ा के अंद्रेटा के तरफ रुख किया। यहाँ उन्होंने लोकल कंस्ट्रक्शन के तरीके जैसे धुप में सूखी पत्तियां,बम्बू और स्लेट के मेथड को अच्छे से ऑब्ज़र्व किया। इसके बाद उन्होंने गिलास और मिटटी के मदद से ही सोलर कूकर्स बनाने शुरू कर दिए। अपनी पूरी ज़िन्दगी उन्होंने सस्टेनेबल तरीकों के सहारे जिया और हमेशा लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करती रहीं।
दीदी ने अपने पूरे ज़िन्दगी में अपने घर की हर एक चीज़ को रीसायकल किया, यहां तक की अपने भोजन और अपने कपड़ों को भी। 1995 में उनके पहले प्रोजेक्ट में उन्होंने अपने पहला प्रोजेक्ट एक कम्युनिटी क्लिनिक बनाने की शुरुवात की जिसमें उन्होंने लोकल मैटेरियल्स के साथ ट्रेडिशनल मेथड्स को यूज़ किया। इसी तरह उन्होंने सारी ज़िन्दगी कई तरह के एक्सपेरिमेंट्स किये जैसे चावल के छिलके को मिटटी के प्लास्टर में इंसुलेशन के इस्तेमाल करना। इस एक्सपेरिमेंट से उन्होंने ये भी प्रूव कर दिया कि ये मेथड भूकंप प्रतिरोधी भी है। लोकल स्किल्स को प्रमोट करने और नए टेक्निक्स को इंवेंट करने के लिए साल 2019 में उन्हें "नारी शक्ति" पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
जर्मनी और यूनाइटेड स्टेट्स में हुई थी परवरिश
डेलिया एक जर्मन पिता और एक अमेरिकन माँ की एकलौती सनतान थी। 1951 में उन्होंने नारायण रामजी कांट्रेक्टर से शादी की और उसके बाद वो पहली बार भारत आयी थी। उनके पति के मित्र महाराणा भागवत सिंह मेवाड़, उदयपुर के महाराणा थे जिन्होनें उन्हें साल 1961 में उदयपुर के लेक पैलेस को डेकोरेट करने के लिए आमंत्रित किया था।
समाजसेविका कमलादेवी चट्टोपाध्याय से हुई थी प्रभावित
डेलिया "दीदी" कांट्रेक्टर का समाजसेविका कमलादेवी चट्टोपाधयाय से बहुत इंटरेक्शन हुआ जिसके बाद उन्होंने ट्रेडिशनल इंडियन क्राफ्ट्स को सीखने और समझने की कोशिश शुरू कर दी। मशहूर फिलॉस्फर अनंदा कुमारस्वामी के आर्ट और स्वदेशी के आइडियाज से भी वो बहुत प्रभावित हुई थीं। इन लोगों के मदद से ही उन्होंने ये विज़न बनाया की "इंडिया के पास क्या है और क्या बहुत जल्दी ख़त्म हो रहा है"।
रूरल लाइफ के तरफ था रुझान
दीदी के रूरल लाइफ के तरफ पहले से रहे रुझान के मद्देनज़र उन्होंने 70 के दशक में काँगड़ा के अंद्रेटा के तरफ रुख किया। यहाँ उन्होंने लोकल कंस्ट्रक्शन के तरीके जैसे धुप में सूखी पत्तियां,बम्बू और स्लेट के मेथड को अच्छे से ऑब्ज़र्व किया। इसके बाद उन्होंने गिलास और मिटटी के मदद से ही सोलर कूकर्स बनाने शुरू कर दिए। अपनी पूरी ज़िन्दगी उन्होंने सस्टेनेबल तरीकों के सहारे जिया और हमेशा लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करती रहीं।
1995 में शुरू किया था पहला प्रोजेक्ट
दीदी ने अपने पूरे ज़िन्दगी में अपने घर की हर एक चीज़ को रीसायकल किया, यहां तक की अपने भोजन और अपने कपड़ों को भी। 1995 में उनके पहले प्रोजेक्ट में उन्होंने अपने पहला प्रोजेक्ट एक कम्युनिटी क्लिनिक बनाने की शुरुवात की जिसमें उन्होंने लोकल मैटेरियल्स के साथ ट्रेडिशनल मेथड्स को यूज़ किया। इसी तरह उन्होंने सारी ज़िन्दगी कई तरह के एक्सपेरिमेंट्स किये जैसे चावल के छिलके को मिटटी के प्लास्टर में इंसुलेशन के इस्तेमाल करना। इस एक्सपेरिमेंट से उन्होंने ये भी प्रूव कर दिया कि ये मेथड भूकंप प्रतिरोधी भी है। लोकल स्किल्स को प्रमोट करने और नए टेक्निक्स को इंवेंट करने के लिए साल 2019 में उन्हें "नारी शक्ति" पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।