कौन थी अर्चना शर्मा?
डा.अर्चना शर्मा एक प्रेरक महिला थी, वो एक प्रसिद्ध भारतीय वनस्पतिशास्त्री, साइटोजेनेटिकिस्ट, कोशिका जीवविज्ञानी और साइटोटोक्सिकोलॉजिस्ट थीं। वह क्रोमोसोम संरचना का अध्ययन और इसकी लेबलिंग के लिए तकनीकों को विकसित के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म 16 फरवरी साल 1932 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। उनका जन्म शिक्षाविदो के परिवार में हुआ था। उनके दादाजी और पिताजी दोनों ही प्रोफेसर थे।
उन्होंने अपनी शुरुवाती शिक्षा राजस्थान से की थी। बीकानेर से उन्होंने होनी बीएससी की पढाई पूरी की और उसके बढ़ 1951 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी से एमएससी की डिग्री प्राप्त की। उन्होने अपनी पीएचडी और डीएससी, साइटोजेनेटिक्स, मानव आनुवंशिकी और पर्यावरण उत्परिवर्तन में साल 1955 में और 1960 पूर्ण किया। उस समय यह डिग्री पाने वाली दूसरी महिला थी। साल 1955 में ही अर्चना ने अपने थीसिस पर्यवेक्षक अरूण कुमार से विवाह किया। यह जोड़ी 'भारतीय कोशिका विज्ञान के जनक' के रूप में जानी जाती है।
उनके द्वारा किए गए कार्य
वानस्पतिक रूप से प्रजनन करने वाले पौधों में प्रजातियों का अध्ययन, फूलों के पौधों की साइटोटैक्सोनॉमी, वयस्क नाभिक में कोशिका विभाजन को शामिल करना और आर्सेनिक का पानी में प्रभाव, पौधों में विभेदित ऊतकों में पॉलीटेनी का कारण, इस सब डा. अर्चना का बड़ा योगदान हैं।
कलकत्ता यूनिवर्सिटी से अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, वे 1967 में वहां अध्यापिका के रूप में काम करने लगी। साल 1972 में उन्हें यूनिवर्सिटी में 'सेंटर ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ इन सेल एंड क्रोमोसोम रिसर्च' में जेनेटिक्स का प्रोफेसर बना दिया गया। इसके बाद साल 1981 में उन्हें वनस्पति विज्ञान विभाग का प्रमुख बनाया गया। उन्होने फूलों के पौधों पर क्रोमोसोम संबंधी अध्ययन और शोध किया।
मानव आबादी में आनुवंशिक की बहुरूपता पर भी काम किया। इस दौरान उन्होने लगभग 400 से ज्यादा रिसर्च पेपर्स और लगभग 8 किताबें लिखी। इसके साथ ही वे कई बड़ी सरकारी विभाग और संगठनों का सक्रिय हिस्सा बनी रही जैसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, राष्ट्रीय महिला आयोग, विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान परिषद, पर्यावरण विभाग, विदेशी वैज्ञानिक सलाहकार समिति आदि।
पुरस्कार
डा. अर्चना को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। साल 1972 में उन्हें जेसी बोस पुरस्कार, 1975 में शांति स्वरूप भटनागर, 1977 में भारतीय विज्ञान अकादमी फैलोशिप, 1983 में फिक्की पुरस्कार, 1984 में बीरबल साहनी पदक, 1995 में एसजी सिन्हा और जीपी चटर्जी पुरस्कार और 1984 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 14 जनवरी 2008 को डा. शर्मा का निधन हुआ।