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गंगूबाई काठियावाड़ी - एक माफिया क्वीन जो कि एक वेश्यालय की मालिक, और सेक्स वर्कर्स के अधिकारों की एडवोकेट भी रह चुकी है। वह एक इंडियन क्रिमिनल, डॉन, सेक्स वर्कर और बिजनेसवुमन भी थी । कुल मिलाकर वो भारत की एक सबसे कंट्रोवर्सिअल (Controversial) लोगों में से एक है। वो हेरा मंडी रेड लाइट जिले में एक सेक्स रैकेट भी चलाती थी । वह 60 के दशक में मुंबई में एक बहुत प्रभावशाली व्यक्ति थीं।
गुजरात के काठियावाड़ी में जन्मी गंगूबाई हरजीवनदास एक शिक्षित और वेल सेटल्ड परिवार से ताल्लुक रखती थीं। वह उन privileged (विशेषाधिकार प्राप्त) महिलाओं में से एक थीं जिन्हें अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया गया और इन्होने स्कूल में अपनी पढ़ाई पूरी की। गंगूबाई बॉलीवुड से इंस्पायर्ड थीं और वह इसका हिस्सा बनना चाहती थीं। लेकिन ज़िन्दगी ने इस इच्छुक युवा लड़की के लिए कुछ और ही सोच रखा था। 16 साल की उम्र में, इन्हे अपने पिता के एकाउंटेंट (Accountant) से प्यार हो गया और इन्होने अपनी शिक्षा और सपनों को पीछे छोड़ते हुए उसके साथ रहने का फैसला किया।
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गंगूबाई काठियावाड़ी और उनके प्रेमी मुंबई भाग गए और वहां एक नया जीवन शुरू किया। लेकिन इनकी शुरुआत ही इनकी प्यार भरी ज़िन्दगी का अंत बन गयी। इनके प्रेमी ने इन्हे धोका देकर इन्हे कमाठीपुर के एक वेश्यालय में 500 रुपये के लिए बेच दिया। वहाँ से इनका जीवन हमेशा के लिए बदल दिया। एक लड़की जो बॉलीवुड के पर्दे पर होने का सपना देखती थी और अपने प्रेमी के साथ एक खुशहाल जीवन जीना चाहती थी, को अब वेश्यालय में धकेल दिया गया था। हालाँकि, इस घटना से उनके जीवन का एक नया चैप्टर शुरू हुआ । वो चैप्टर जिसकी वजह से इन्हे 'गंगूबाई काठियावाड़ी' का नाम दिया गया।
इस घटना के बाद वो बहुत रोइ और बिलखती रही । पर फिर उन्हें समझ आगया की अब उनके पास इसी वेश्यालय में रहने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं है। धीमे - धीमे, वह सबसे बेशकीमती वेश्याओं (Sex workers) में से एक बन गईं, जिन्हे सेठ लोग बहुत ही ज़्यादा पैसे दिया करते थे। ये पहली बार हुआ था जब गंगूबाई ने परिस्थितियों को अपने काबू में कर लिया था और विक्टिम - प्ले के लिए रोना बंद कर दिया । वह एक उत्साही महिला थी, जो जानती थी कि कैसे परिस्थितियों के आगे झुकना नहीं है और इससे बहादुर, सशक्त और स्वतंत्र बन कर बाहर निकलना है। अपनी इसी स्पिरिट की वजह से इन्होने अपनी ज़िन्दगी की दूसरी बड़ी दुर्भाग्य भरी घटना से निपटा और वो, वो बन गयी जिसकी वजह से इन्हे उन्हें आज भी याद रखा जाता है।
माफिया डॉन करीम लाला के एक सदस्य ने गंगूबाई का क्रूरतापूर्वक बलात्कार किया और उन्हें डिसएबल बना दिया। न्याय मांगने के लिए, वह खुद करीम लाला के पास पहुँच गयी। परिणाम स्वरुप , लाला ने न केवल उनके अपराधी को पीटा, बल्कि गंगूबाई को अपनी 'राखी बहन’ बना लिया। डॉन करीम लाला ने उनके साथ बुरा व्यवहार करने के खिलाफ सबको चेतावनी भी दी।
यहां से गंगूबाई काठियावाड़ी के जीवन ने एक नया मोड़ लिया क्योंकि उन्होंने अंडरवर्ल्ड, पुलिस और सत्ता के अन्य आंकड़ों के साथ नए सम्बन्ध बना लिए थे । वह उस वेश्यालय की मालकिन बन गई जिसमें वह कभी पीड़िता के रूप में आई थी। अंडरवर्ल्ड के साथ संबंध होने के कारण वेश्यालय पैसे और पावर से भर गया। गंगूबाई की गोल्डन बॉर्डर वाली साड़ी और सोने के बटन वाला ब्लाउज पहनने जितनी तो कमाई हो ही गयी थी। वेश्यालय में काली बेंटले (कार) की सवारी करने वाली (और खरीदने वाली) वह अकेली महिला थी। जल्द ही वह मुंबई की माफिया क्वीन और कमाठीपुर की रानी के रूप में जानी जाने लगी।
अपने खुद के हादसे के कारण, गंगूबाई कम्युनिटी की अन्य महिलाओं के प्रति दयालु थीं। इन्होने यौनकर्मियों (Sex Workers) के अधिकारों और उनके सशक्तीकरण के लिए अपनी पावर और इन्फ्लुएंस का इस्तेमाल किया। कथित तौर पर, इन्होने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी अनुरोध किया था कि वे सेक्स वर्करों के सामने आने वाली कठिनाइयों को दूर करें। कमाठीपुर में रहने की स्थिति को बेहतर करने के उनके प्रयासों ने कम्युनिटी में उनका सम्मान बढ़ाया ।
इसके अलावा, इन्होने कभी भी किसी महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध वेश्यालय के अंदर आने के लिए मजबूर नहीं किया। इस सोशल इशू के प्रति उनके समर्पण का प्रभाव इतना था कि वह एक रेयर यौनकर्मी बन गईं जिनकी प्रतिमा कामाथीपुरा में स्थापित की गई । इन्होने सामाजिक कार्यकर्ताओं और NGOs के साथ एक महिला सशक्तिकरण समिट (Summit) में भाग लिया जहां उनके भाषण को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की प्रशंसा मिली। अपने भाषण में, इन्होने वेश्याओं के अधिकारों और शहरों में वेश्यावृत्ति बेल्ट (prostitution belts) के निर्माण की आवश्यकता की वकालत की। रेड-लाइट एरिया और यौनकर्मियों की सुरक्षा के लिए इनकी इच्छा से प्रभावित होकर, पीएम नेहरू ने इनसे पूछा कि अगर वह इतनी अच्छी है तो वह शादी क्यों नहीं करती है। गंगूबाई ने तुरंत पूछा कि क्या वह उससे शादी करने को तैयार है। उनके चेहरे की ब्लैंकेनेस (Blankness) देखकर, गंगूबाई ने कहा, "अभ्यास की तुलना में प्रचार करना आसान है। (It is easy to preach than to practice.) "
उनका सशक्तिकरण शिक्षा के इर्द-गिर्द बताये जाने वाले रास्ते के आस पास नहीं था। गंगूबाई के सशक्तिकरण की परिभाषा एक महत्वाकांक्षी युवा लड़की से हट कर, एक उत्साही महिला को सम्मान, आवाज़ और शक्ति दिलाने में दिखी। गंगूबाई वास्तव में हमें सशक्तिकरण का एक ऐसा आईडिया देती है जो बताता है कि हमे कभी हार नहीं माननी चाहिए और अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने में ही हमारी असल जीत है।
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गंगूबाई काठियावाड़ी ( Gangubai Kathiawadi )असल में ( Sex Work में आने से पहले) कौन है ?
गुजरात के काठियावाड़ी में जन्मी गंगूबाई हरजीवनदास एक शिक्षित और वेल सेटल्ड परिवार से ताल्लुक रखती थीं। वह उन privileged (विशेषाधिकार प्राप्त) महिलाओं में से एक थीं जिन्हें अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया गया और इन्होने स्कूल में अपनी पढ़ाई पूरी की। गंगूबाई बॉलीवुड से इंस्पायर्ड थीं और वह इसका हिस्सा बनना चाहती थीं। लेकिन ज़िन्दगी ने इस इच्छुक युवा लड़की के लिए कुछ और ही सोच रखा था। 16 साल की उम्र में, इन्हे अपने पिता के एकाउंटेंट (Accountant) से प्यार हो गया और इन्होने अपनी शिक्षा और सपनों को पीछे छोड़ते हुए उसके साथ रहने का फैसला किया।
और पढ़िए : भारत की सबसे कम उम्र की मेयर से मिलें
वेश्यालय में बेच दिया:
गंगूबाई काठियावाड़ी और उनके प्रेमी मुंबई भाग गए और वहां एक नया जीवन शुरू किया। लेकिन इनकी शुरुआत ही इनकी प्यार भरी ज़िन्दगी का अंत बन गयी। इनके प्रेमी ने इन्हे धोका देकर इन्हे कमाठीपुर के एक वेश्यालय में 500 रुपये के लिए बेच दिया। वहाँ से इनका जीवन हमेशा के लिए बदल दिया। एक लड़की जो बॉलीवुड के पर्दे पर होने का सपना देखती थी और अपने प्रेमी के साथ एक खुशहाल जीवन जीना चाहती थी, को अब वेश्यालय में धकेल दिया गया था। हालाँकि, इस घटना से उनके जीवन का एक नया चैप्टर शुरू हुआ । वो चैप्टर जिसकी वजह से इन्हे 'गंगूबाई काठियावाड़ी' का नाम दिया गया।
अब वो क्या करती
इस घटना के बाद वो बहुत रोइ और बिलखती रही । पर फिर उन्हें समझ आगया की अब उनके पास इसी वेश्यालय में रहने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं है। धीमे - धीमे, वह सबसे बेशकीमती वेश्याओं (Sex workers) में से एक बन गईं, जिन्हे सेठ लोग बहुत ही ज़्यादा पैसे दिया करते थे। ये पहली बार हुआ था जब गंगूबाई ने परिस्थितियों को अपने काबू में कर लिया था और विक्टिम - प्ले के लिए रोना बंद कर दिया । वह एक उत्साही महिला थी, जो जानती थी कि कैसे परिस्थितियों के आगे झुकना नहीं है और इससे बहादुर, सशक्त और स्वतंत्र बन कर बाहर निकलना है। अपनी इसी स्पिरिट की वजह से इन्होने अपनी ज़िन्दगी की दूसरी बड़ी दुर्भाग्य भरी घटना से निपटा और वो, वो बन गयी जिसकी वजह से इन्हे उन्हें आज भी याद रखा जाता है।
आखिर ऐसी क्या घटना हुई ?
माफिया डॉन करीम लाला के एक सदस्य ने गंगूबाई का क्रूरतापूर्वक बलात्कार किया और उन्हें डिसएबल बना दिया। न्याय मांगने के लिए, वह खुद करीम लाला के पास पहुँच गयी। परिणाम स्वरुप , लाला ने न केवल उनके अपराधी को पीटा, बल्कि गंगूबाई को अपनी 'राखी बहन’ बना लिया। डॉन करीम लाला ने उनके साथ बुरा व्यवहार करने के खिलाफ सबको चेतावनी भी दी।
यहाँ से उनका जीवन बदल गया
यहां से गंगूबाई काठियावाड़ी के जीवन ने एक नया मोड़ लिया क्योंकि उन्होंने अंडरवर्ल्ड, पुलिस और सत्ता के अन्य आंकड़ों के साथ नए सम्बन्ध बना लिए थे । वह उस वेश्यालय की मालकिन बन गई जिसमें वह कभी पीड़िता के रूप में आई थी। अंडरवर्ल्ड के साथ संबंध होने के कारण वेश्यालय पैसे और पावर से भर गया। गंगूबाई की गोल्डन बॉर्डर वाली साड़ी और सोने के बटन वाला ब्लाउज पहनने जितनी तो कमाई हो ही गयी थी। वेश्यालय में काली बेंटले (कार) की सवारी करने वाली (और खरीदने वाली) वह अकेली महिला थी। जल्द ही वह मुंबई की माफिया क्वीन और कमाठीपुर की रानी के रूप में जानी जाने लगी।
सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए लड़ी
अपने खुद के हादसे के कारण, गंगूबाई कम्युनिटी की अन्य महिलाओं के प्रति दयालु थीं। इन्होने यौनकर्मियों (Sex Workers) के अधिकारों और उनके सशक्तीकरण के लिए अपनी पावर और इन्फ्लुएंस का इस्तेमाल किया। कथित तौर पर, इन्होने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी अनुरोध किया था कि वे सेक्स वर्करों के सामने आने वाली कठिनाइयों को दूर करें। कमाठीपुर में रहने की स्थिति को बेहतर करने के उनके प्रयासों ने कम्युनिटी में उनका सम्मान बढ़ाया ।
इसके अलावा, इन्होने कभी भी किसी महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध वेश्यालय के अंदर आने के लिए मजबूर नहीं किया। इस सोशल इशू के प्रति उनके समर्पण का प्रभाव इतना था कि वह एक रेयर यौनकर्मी बन गईं जिनकी प्रतिमा कामाथीपुरा में स्थापित की गई । इन्होने सामाजिक कार्यकर्ताओं और NGOs के साथ एक महिला सशक्तिकरण समिट (Summit) में भाग लिया जहां उनके भाषण को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की प्रशंसा मिली। अपने भाषण में, इन्होने वेश्याओं के अधिकारों और शहरों में वेश्यावृत्ति बेल्ट (prostitution belts) के निर्माण की आवश्यकता की वकालत की। रेड-लाइट एरिया और यौनकर्मियों की सुरक्षा के लिए इनकी इच्छा से प्रभावित होकर, पीएम नेहरू ने इनसे पूछा कि अगर वह इतनी अच्छी है तो वह शादी क्यों नहीं करती है। गंगूबाई ने तुरंत पूछा कि क्या वह उससे शादी करने को तैयार है। उनके चेहरे की ब्लैंकेनेस (Blankness) देखकर, गंगूबाई ने कहा, "अभ्यास की तुलना में प्रचार करना आसान है। (It is easy to preach than to practice.) "
रेड-लाइट एरिया और सेक्स वर्कर्स की सुरक्षा के लिए इनकी इच्छा से प्रभावित होकर, पीएम नेहरू ने इनसे पूछा कि अगर वह इतनी अच्छी है तो वह शादी क्यों नहीं करती है। गंगूबाई ने तुरंत पूछा कि क्या वह उससे शादी करने को तैयार है। उनके चेहरे की ब्लैंकेनेस (Blankness) देखकर, गंगूबाई ने कहा, "अभ्यास की तुलना में प्रचार करना आसान है। (It is easy to preach than to practice.) " गंगूबाई के ये शब्द उनकी अपनी जीवन यात्रा को समरी में प्रस्तुत करते हैं।
वो एक फेमस फिगर क्यों है ?
उनका सशक्तिकरण शिक्षा के इर्द-गिर्द बताये जाने वाले रास्ते के आस पास नहीं था। गंगूबाई के सशक्तिकरण की परिभाषा एक महत्वाकांक्षी युवा लड़की से हट कर, एक उत्साही महिला को सम्मान, आवाज़ और शक्ति दिलाने में दिखी। गंगूबाई वास्तव में हमें सशक्तिकरण का एक ऐसा आईडिया देती है जो बताता है कि हमे कभी हार नहीं माननी चाहिए और अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने में ही हमारी असल जीत है।
और पढ़िए : ऐसे 10 मौकें जब नवीन पटनायक ने महिला शक्तिकरण को बढ़ावा दिया