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गौरी घोष कौन थीं? रेडियो प्रेसेंटर जिन्होंने हज़ारों को किया इंस्पायर

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Swati Bundela
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गौरी घोष कौन थीं? गौरी घोष एक वाक्पटु और रेडियो प्रेसेंटर थीं और इनकी आज 26 अगस्त को कोलकाता के एक अस्पताल में डेथ हो गयी। यह 83 साल किए थीं और इनको ब्रेन स्ट्रोक आया था जिसके बाद से न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर की दिक्कत हो रही थी।

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गौरी घोष के निधन का कारण क्या था?



यह काफी समय से बीमार थीं और वेंटीलेटर के सपोर्ट पर जी रही थीं इनको 1 अगस्त को अस्पताल में भर्ती किया गया था ज्यादा तबियत ख़राब होने के कारण से। इसके बाद आज सुबह 9 बजे फाइनली इनकी डेथ हो गयी थी। इनके पति का नाम पार्थ घोष है और इनका एक बेटा भी है अयान घोष नाम का।
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वेस्ट बंगाल की चीफ मिनिस्टर ममता बनर्जी ने इनके जाने पर अपना शोक प्रदर्शन भी किया और कहा कि गौरी घोष की पोएट्री को सुनने वालों के दिलों में यह हमेशा ज़िंदा रहेंगी। इन्होंने रेडियो पर कई कहानियां पढ़ीं जिस में से रबीन्द्रनाथ टैगोर की करना कुंती संगाबाद सबसे फेमस थी। इन्होंने अपनी लाइफ के तीन डिकेड आल इंडिया रेडियो की आकाशवाणी पर काम किया है। इनके सबसे फेमस एल्बम थे इ तो जीबों, तोमर पाने, सूर्य मनेर माझे और हृदयबोण्डु मोर।
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गौरी घोष को 2018 में वेस्ट बंगाल गवर्नमेंट ने काज़ी सब्यसाची सम्मान दिया था। इसके अलावा इनको फ्रेंड्स ऑफ़ बांग्लादेश लिबरेशन वॉर अवार्ड भी मिला था इनके देश को लेकर योगदान के लिए।



फेमस वाक्पटु ब्राताटी बंद्योपाध्याय ने इनके निधन के बाद इनको श्रद्धांजलि दी और कहा कि घोष उनके लिए माँ समान थीं और वो हमेशा इनको कोरोना के दौरान कॉल पर सावधानी बरतने को कहती रहती थीं। इन्होंने बताया कि इनकी घोष से रेगुलर बात हुआ करती थी।

बंद्योपाध्याय ने घोष के प्रोनन्सिएशन की भी तारीफ की और बताया कि यह किसी भी कविता को बड़े अच्छे ढंग से पढ़ा करती थीं। यह देश के कई वाक्पटु के लिए एक इंस्पिरेशन हैं वो सिर्फ आजके नहीं आने वाले समय के भी ।
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