बच्चो को सँभालने की जिम्मेदारी किसकी? माँ बाप की ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा ख़ुशी तब होती है जब उनकी ज़िन्दगी में उनका बच्चा होता है। जितनी खुशियां होती है उसके आने की उससे कई ज्यादा बच्चो को सँभालने की जिम्मेदारी होती है। ऐसे में उस बच्चे को संभालना दोनों की ज़िम्मेदारी होती है। लकिन आदमी और औरत के बिच में ये ज़िम्दरियाँ है ये कभी कभी दोनों के बिच में लड़ाई होने का कारन बन जाती है।
बच्चो को सँभालने की जिम्मेदारी किसकी है?
अगर देखा जाये तो सामाजिक तौर पर बच्चो को सँभालने की ज़िम्मेदारी माँ की होती है। बच्चे पैदा करने से लेकर ही सब जिम्मेदारियों माँ की हो जाती है और बाप की ज़िम्मेदारी सिर्फ कमा के लाने की है। ये जो सबके भूमिका है की माँ को बच्चे को संभालना है और बाप को कमा के लाना है ये पुराने समय से चलता आरा है, ये हम जैसे लोगो ने ही बनाया है, क्यूंकि पहले औरते नौकरी पर नहीं जाती थी। घर पर रहती थी घर देखती थी और बच्चे, पर आज के ज़माने में जहाँ, आदमी के साथ साथ औरत भी नौकरी करती है। वहा बच्चो को कौन संभालेगा ये सवाल उठता है।
जब माँ नौकरी कर रही तो कौन संभालेगा बच्चो को ?
इस नए ज़माने में, जहाँ औरत नौकरी कर रही हो तो, बच्चो को कौन संभालेगा। बच्चा पैदा करने की जिम्मेदारी जब माँ बाप की है तो उसे सँभालने की ज़िम्मेदारी भी माँ बाप दोनों की है। ये भूमियाएँ की माँ बच्चो को देखिगी और बाप कमाएगा ये पुराणी हो चुकी है, आज के इस दौर में जहां माँ और बाप दोनों कमाते है वहाँ दोनों की जिम्मेदारी है। अगर माँ नहीं भी कमरी हो तबभी बच्चो को देखने की जिम्मेदारी बाप की भी है।
एक औरत पुरे दिन घर का काम करती है उन सब की थकान और फिर बच्चे को सँभालने की थकान, इन सब से एक औरत परेशान हो जाती है। ऐसे में बच्चे को अगर बाप भी संभाले तो चीज़े आसान हो जाती है दोनों के लिए। आज के इस दौर में जहाँ सब कुछ आसान है वहाँ अगर माँ सँभालने के लिए नहीं तो भी बाप एक बच्चे को संभल सकता है। आजकल बच्चे दूध भी बोतल में पिने लग गए है। कुछ मुश्किल नहीं है सब हो सकता है, बच्चो को बाप भी अकेले संभाल सकता है। एक माँ को भी ज़रूरत होती है थोड़ा आराम की या उसके इतने सारे काम में कोई हाथ दे तो काम थोड़ा आसान हो जाए ।
बच्चो को सँभालने की जिम्मेदारी किसकी? एक माँ बाप की ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा ख़ुशी तब होती है जब उनकी ज़िन्दगी में उनका बच्चा होता है। जितनी खुशियां होती है उसके आने की उससे कई ज्यादा बच्चो को सँभालने की जिम्मेदारी होती है। ऐसे में उस बच्चे को संभालना दोनों की ज़िम्मेदारी होती है। लकिन आदमी और औरत के बिच में ये ज़िम्दरियाँ है ये कभी कभी दोनों के बिच में लड़ाई होने का कारन बन जाती है।
बच्चो को संभालना की जिम्मेदारी किसकी है?
अगर देखा जाये तो सामाजिक तौर पर बच्चो को सँभालने की ज़िम्मेदारी माँ की होती है। बच्चे पैदा करने से लेकर ही सब जिम्मेदारियों माँ की हो जाती है और बाप की ज़िम्मेदारी सिर्फ कमा के लाने की है। ये जो सबके भूमिका है की माँ को बच्चे को संभालना है और बाप को कमा के लाना है ये पुराने समय से चलता आरा है, ये हम जैसे लोगो ने ही बनाया है, क्यूंकि पहले औरते नौकरी पर नहीं जाती थी। घर पर रहती थी घर देखती थी और बच्चे, पर आज के ज़माने में जहाँ, आदमी के साथ साथ औरत भी नौकरी करती है। वहा बच्चो को कौन संभालेगा ये सवाल उठता है।
जब माँ नौकरी कर रही तो कौन संभालेगा बच्चो को ?
इस नए ज़माने में, जहाँ औरत नौकरी कर रही हो तो, बच्चो को कौन संभालेगा। बच्चा पैदा करने की जिम्मेदारी जब माँ बाप की है तो उसे सँभालने की ज़िम्मेदारी भी माँ बाप दोनों की है। ये भूमियाएँ की माँ बच्चो को देखिगी और बाप कमाएगा ये पुराणी हो चुकी है, आज के इस दौर में जहां माँ और बाप दोनों कमाते है वहाँ दोनों की जिम्मेदारी है। अगर माँ नहीं भी कमरी हो तबभी बच्चो को देखने की जिम्मेदारी बाप की भी है।
एक औरत पुरे दिन घर का काम करती है उन सब की थकान और फिर बच्चे को सँभालने की थकान, इन सब से एक औरत परेशान हो जाती है। ऐसे में बच्चे को अगर बाप भी संभाले तो चीज़े आसान हो जाती है दोनों के लिए। आज के इस दौर में जहाँ सब कुछ आसान है वहाँ अगर माँ सँभालने के लिए नहीं तो भी बाप एक बच्चे को संभल सकता है। आजकल बच्चे दूध भी बोतल में पिने लग गए है। कुछ मुश्किल नहीं है सब हो सकता है, बच्चो को बाप भी अकेले संभाल सकता है। एक माँ को भी ज़रूरत होती है थोड़ा आराम की या उसके इतने सारे काम में कोई हाथ दे तो काम थोड़ा आसान हो जाए ।