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रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्हें आधुनिक मीरा के रूप में भी संबोधित किया गया है। कवि निराला ने एक बार उन्हें "हिंदी साहित्य के विशाल मंदिर की सरस्वती" कहा था। वर्मा ने आजादी से पहले और बाद के भारत दोनों को देखा था। वह उन कवियों में से एक थीं, जिन्होंने भारत के व्यापक समाज के लिए काम किया। न सिर्फ उनकी कविता बल्कि उनकी सोशल सर्विस और महिलाओं के कल्याण के विकास को भी उनके लेखन में गहराई से दर्शाया गया है। ये काफी हद तक न केवल रीडर्स बल्कि क्रिटिक को भी इफ़ेक्ट करते हैं, खासकर उनके नॉवेल दीपशिखा के माध्यम से।
आज उनके जन्मदिन पर हम जानेंगे उनके बारे में कुछ ज़रूरी लाइफ फैक्ट्स (mahadevi-verma)-
- महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च,1907 को फरुखाबाद में हुआ था। वह इकलौती ऐसी कवयित्री हैं जिन्होंने आज़ादी से पहले और बाद में दोनों ही समय को देखा है।
- उन्हें आधुनिक मीरा के रूप में भी जाना जाता है। उन्हें पद्मा भूषण, पद्मा विभूषण और ज्ञानपीठ पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था।
- वो एक एनिमल लवर थी, उनके घर में उन्होंने एक चिड़ियाघर भी बना रखा था। उनकी बहुत -सी कहानियों में जानवरों का ज़िक्र होता है।
- वर्मा का करियर हमेशा राइटिंग, एडिटिंग और टीचिंग के इर्द-गिर्द घूमता रहा। उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- इस तरह की जिम्मेदारी उस समय के महिला शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम थी। वह इसकी प्रिंसिपल भी थीं।
- 1923 में, उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका चंद को संभाला। वर्ष 1955 में, वर्मा ने इलाहाबाद में साहित्य संसद की स्थापना की और इलाचंद्र जोशी की मदद से, और इसके पब्लिकेशन की एडिटिंग की।
- उन्होंने भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नींव रखी। महादेवी बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं। महात्मा गांधी के प्रभाव में, उन्होंने एक सार्वजनिक सेवा की और झाँसी में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ काम किया।
- 1937 में, महादेवी वर्मा ने नैनीताल से 25 किमी दूर उमागढ़, रामगढ़, उत्तराखंड के एक गाँव में एक घर बनाया। उन्होंने इसका नाम मीरा मंदिर रखा। उन्होंने गाँव के लोगों के लिए और उनकी शिक्षा के लिए तब तक काम करना शुरू किया जब तक वह वहाँ रही। उन्होंने विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा और उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए बहुत काम किया।