Advertisment

Manjula pradeep: लीडर बनने से पहले थी यौन उत्पीड़न का शिकार

author-image
Swati Bundela
New Update
manjula pradeep

हमारे समाज आज भी लड़की को बोझ माना जाता। लड़की के साथ बलात्कार या असॉल्ट भी हो जाए उसमें भी उसका क़सूर मानते है लेकिन समाज की परवाह किए बिना रूढ़िवादी सोच को पीछे छोड़ते हुए बहुत सी लड़कियाँ असाधारण से काम कर जाती है।

Advertisment

आज हम बात करेंगे भारत की ऐसी महिला के बारे में जिसका बचपन आम बच्चों जैसा नहीं था। परिवार वाले लड़का चाहते था पर लड़की हुई। उसके बाद जाति को लेकर इतना भेदभाव सहना पड़ा। बचपन में 4 मर्दों ने उसे  यौन दुर्व्यवहार (sexually abused) किया। हम बात कर रहे बीबीसी 100 विमिन में शामिल होने वाली भारतीय मानवाधिकार कार्यकर्ता मंजुला प्रदीप की।

प्रारंभिक जीवन

मंजुला प्रदीप का जन्म 6 अक्तूबर1969 को वडोदरा के रूढ़िवादी दलित परिवार में हुआ।घरवाले 2 बेटी नहीं चाहते थे लेकिन दूसरी बेटी ही हुई इस बात पर उसके पिता में उनकी माँ पर दोष लगाया कि तुमारे कारण हमें दूसरी बेटी हुई हाई। बचपन से जाति भेदभाव को सहना पढ़ा। जब मंजुला का जनम हुआ उस समय पर तो यह भेदभाव ज़्यादा था। इसलिए उसके मन में समाज का दलितों प्रति रवैया बदलने की शुरू से थी।

Advertisment

भारतीय मानवाधिकार कार्यकर्ता 

मंजुला प्रदीप भारतीय मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील हैं। इसके अलावा वह नवसर्जन ट्रस्ट की पूर्व कार्यकारी निर्देशक है जो जाति, लिंग आधारित मुद्दों को संबोधित करने वाली और भारत के सबसे बड़ी दलित संस्थानों में से एक है इसके साथ ही वह नैशनल काउन्सिल ओफ़ विमेन संस्थापक सदस्य भी है।

बचपन में यौन उत्पीड़न का शिकार

Advertisment

भारतीय समाज में अभी भी जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता है। दलित समुदाय की लड़कियों के साथ में  ऊँची जाति की ओर से बलात्कार किया जाता है। खुद 4 बार यौन उत्पीढ़न का शिकार हो चुकी है इसलिए उन्होंने नैशनल काउन्सिल पफ वीमेन लीडर्ज़ की स्थापना की और ज़मीनी स्तर पर काम किया। मंजुला औरतों की हिम्मत भी बनी इसके साथ साथ उसने उन्हें अपने अधिकारों से  लड़ना सिखाया और उन्हें क़ानून की भी जानकारी दी।

मंजुला प्रदीप इंटरनेशनल दलित सॉलिडेरिटी नेटवर्क की मेंबर है और यूएन वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस अगेन्स्ट रेसिज़म में दलित अधिकारों के मुद्दे उठाती हैं।

अब है लीडर

Advertisment

मंजुला में अपना बचपन हमेशा मुश्किलों में गुज़ारा है। बचपन  में उसके साथ हुए भेदभाव ने  और उसकी माँ  के  साथ हुए दुर्व्यवहार ने उसे आवाज़ उठाने के  लिए प्रेरित  किया। मंजुला ने अभी  तक 50 से ज़्यादा दलित औरतों के न्याय के लिए आवाज़ उठायी है और इनमें से कई मामलों में दोषियों को सजा भी दिलवायी  है।

पुरस्कार 

मंजुला ने बहुत सारे पुरस्कार जीते हैं। 2011 में उसे ‘वीमेन पीस मेकर’ का अवार्ड जीता था, 2015 में ‘फ़ेमिना अवार्ड 2015’ जीता था और उसे हैं यूनिवर्सिटी ओफ़ दिल्ली  की तरफ़ से ‘जीजाबाई विमन अवार्ड’ मिला  था

बीबीसी 100 वोमेन में मंजुला ने कहा, मैं चाहती हूँ कि दुनिया को  करुणा और प्रेम के लिए रीसेट किया जाए, जहां वंचित समुदाय की महिलाएं शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाज की ओर बढ़ें -मंजुला प्रदीप

manjula pradeep women activest
Advertisment