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बालों को हमेशा ही लड़कियों की खूबसूरती से जोड़ कर देखा गया है। इसलिए कई लड़कियों को स्टूडेंट लाइफ़ में बाल बढ़ाने की मनाई हो जाती है और शादी में बाल बढ़ाना अनिवार्य हो जाता है। अब चूँकि स्त्री को खूबसूरत होने का हक केवल पति के ज़िंदा रहने तक मिलता है इसलिए पति की मृत्यु के बाद उनके बालों का श्रृंगार और कई बार तो बाल रखने का शौक भी छीन लिया जाता है। ब्रिटिशर्स के समय तक हिंदू विधवाओं के बाल मुंडवा दिए जाते थे ताकि उनके पास कोई श्रंगार न हो जो उन्हें आकर्षित बना सके। ऐसे ही कानून अन्य धर्मों में भी मौजूद हैं, जो स्त्री के बालों पर 'टेंपटेशन' बना कर, उन्हें कंट्रोल करते हैं।
खैर, बड़े होने के साथ मैंने कमसे कम बालों के मामले में अपनी मर्ज़ी चलानी शुरू कर दी। बाल लम्बे करने का शौक पूरा किया और खूब तरीफ़ें भी पायीं। लेकिन एक दिन जब मैं अचानक बाल कटवा कर अपने कोचिंग सेंटर पहुँची तो सब मुझ पर दबी हँसी हँसने लगे, यहाँ तक की सहेलियाँ और बॉयफ़्रेंड भी। मुझे उनकी हँसी से बहुत फ़र्क तो नहीं पड़ा पर उस दिन से बालों की सारी पॉलिटिक्स समझ आने लगी।
मेरे बाल मेरी चॉइस
कॉलेज जाकर मेरी सोच पहले से बहुत ज़्यादा बदली। यह हर विषय में हुआ और स्त्रियों के बालों पर उनकी ऑथोरिटी इनमें से एक था। अब किसी लड़की का शेव्ड हेड देख कर उसे कैंसर पेशेन्ट समझना बन्द कर दिया। साथ ही ये भी समझा कि बाल छोटे या बड़े रखना एक चॉइस है, और इस चॉइस का हकदार हर कोई है, चाहे वो किसी भी जेंडर का व्यक्ति हो।
एक बार एक दोस्त के मुँह से किस्सा सुना कि किसी लड़की के सारे बाल झड़ गए थे और उसे शर्मिंदगी महसूस ना हो इसलिए उसके सभी मेल फ्रेंड्स ने अपने बाल मुंडवा लिए। ये उनका सपोर्ट करने का तरीका था पर मुझे ये सपोर्ट से ज़्यादा सहानुभूति दिखाने का तरीका लगा। किसी लड़की के सर पर बाल ना होना आखिर इतना बड़ा इशू क्यों है? क्या उस लड़की को केवल हौसला देकर सपोर्ट नहीं किया जा सकता था? क्या बाल ना होना किसी भी तरह से उसे कम लड़की बनाता है? हमारे लिए ये स्वीकार करना इतना मुश्किल क्यों है कि बालों का जेंडर से कोई लेना देना नहीं और खूबसूरत दिखने के लिए बालों का लम्बा होना बिल्कुल भी ज़रूरी नही?
शॉर्ट हेयर मेरे फेमिनिस्ट होने की निशानी नहीं हैं
शॉर्ट हेयर कट को लेकर एक और बात बहुत सुनने को मिलती है कि ये सिर्फ़ एक दिखावा है, लड़कों की तरह बनने का तरीका है। यंगस्टर्स के मन में ये धारणा बनी हुई है कि बाल कटाना या शेव करवाना, फेमिनिस्ट होने की निशानी है। जो लड़कियाँ ख़ुद को फेमिनिस्ट कहती हैं, वही ख़ुद को अलग तरह से पेश करने में लगी रहती हैं। हम दोस्तों के बीच में इस बात को लेकर बहस भी हो चुकी है और अंत में ज़्यादातर लोगों ने ये एक्सेप्ट किया कि कोई भी औरत फ़ेमिनिस्ट हो सकती है, इसके लिए उसे ख़ुद को एक पर्टिकुलर स्टाइल में ढालने की ज़रूरत नहीं है और फेमिनिस्म दिखावा करना नहीं, बल्कि दुनिया के जजमेंट्स की परवाह किए बिना अपनी चॉइस एक्सरसाइज़ करना सिखाता है, हेयरस्टाइल इन चॉइसेस में से एक है।
हमें अपना नज़रिया बदलने की ज़रूरत है
मैं चाहती हूँ कि मैं या दुनिया कि कोई भी अन्य स्त्री बाल शेव करवाने पर 'बेचारी' या 'तीखी' नज़रों से ना देखी जाए। हमें अपने ब्यूटी स्टैंडर्ड्स से दूसरों को जज करना बन्द कर देना चाहिए, किसी भी लम्बे बालों वाली लड़की को बहनजी और शॉर्ट हेयर वाली लड़की को आवारा कहना गलत है। साथ ही मैं अपने बालों का इस्तेमाल किसी को अट्रैक्ट करने के लिए नहीं करती। मैं अपने शरीर के साथ जो भी करती हूँ वो अपनी खुशी के लिए करती हूँ इसलिए लोगों को अब इस घटिया सोच से आगे बढ़ जाना चाहिए कि लड़कियाँ केवल दूसरों को रिझाने के लिए खूबसूरत बनने में लगी रहती हैं। इसके अलावा, मेरा जीवन जीने तरीका मुझे 'लड़का' या 'छक्का' नहीं बनाता, मैं लड़की होकर भी अपनी मर्ज़ी से ज़िंदगी जी सकती हूँ।