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ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए पाकिस्तान का पहला इस्लामिक मदरसा

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Swati Bundela
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आजकल LGBTQI + समुदाय को उनके अधिकार मिलने लगे हैं पर फिर भी इन के प्रति बर्ताव में सुधार लाने की जरुरत है। पाकिस्तान में ऐसा कोई लॉ तो नहीं है कि ट्रांसजेंडर धार्मिक स्कूलों में नहीं जा सकते पर इनको लेकर हमेशा से समाज का व्यव्हार बहुत ख़राब रहा है। ट्रांसजेंडर लोगों का अक्सर बहिष्कार होता आया है। LGBTQI + समुदाय के लिए उनका खुद का मदरसा होना एक बहुत ही महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। आज हम और गहराई से बताएंगे ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए पाकिस्तान का पहला मदरसा के बारे में -
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1. किस ने खोला था ?



ये पाकिस्तानी मदरसा की स्थापना 34 साल की रानी खान ने की थी। रानी खुद एक ट्रांसजेंडर महिला थी और इनके परिवार ने इन को 13 साल की उम्र में ही विस्थापित कर दिया था। रानी ने रायटर्स न्यूज़ को बताया था कि " अधिकांश ट्रांजेंडर लोगों को स्वीकार नहीं किया जाता है। उनको घरों से बाहर फेक दिया जाता है। कई ट्रांसजेंडर गलत कामों में चले जाते हैं और मैं भी एक समय में उन में से एक थी "।
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2. ट्रांसजेंडर का इस्लामिक मदरसा कैसे बनाया था ?



जब रानी खान को मदरसा खोलना था तब सरकार ने इनकी कोई मदद नहीं की थी। इस समय कुछ अधिकारीयों ने आगे आकर कहा था कि वो ट्रांसजेंडर को पढ़ने के बाद नौकरियां ढूढ़ने में मदद करेंगे।
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3. ट्रांसजेंडर का इस्लामिक मदरसा में क्या क्या सीखते थे बच्चे ?



रानी खान इस
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ट्रांसजेंडर इस्लामिक मदरसा में बच्चों को सिलाई और कड़ाई सिखाती थी। खान सोचती थी कि इन कपड़ों को बेचकर मदरसा को चलाने के पैसा इक्कठा कर पाएगीं। इस्लामाबाद की कमिशनर ने कहा था कि "मदरसा की मदद से ट्रांसजेंडर लोगों को आम लोगों में घुलने में आसानी होती है और ऐसा सभी जगह करना चाहिए "।

4. ट्रांसजेंडर को मान्यता



पाकिस्तान में इस तीसरे लिंग को मान्यता 2018 में मिली थी। जिस से की उन्हें कई अधिकार मिले जैसे की वोट देना और अपना लिंग खुद चुन पाना।
सोसाइटी ट्रांसजेंडर का इस्लामिक मदरसा
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