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माता पिता को अपने बच्चों को समझना चाहिए - स्पीच-लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट प्रिया नायक-गोले

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Swati Bundela
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हमारी आउटरीच एडिटर कावेरी ने प्रिया नायक-गोले से बात की बच्चों में पायी जाने वाली विकलांगता के बारे में, और उससे जुड़े कुछ पहलुओं पर महत्त्वपूर्ण चर्चा की।

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प्रिया एक पेडियाट्रिक स्पीच-लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट हैं, जो नवी मुंबई में लगभग 18 वर्षों से अभ्यास कर रही हैं। जब क्लिनिक में नहीं होतीं, तो वह काल्पनिक लेखन पसंद करती हैं और उसी पर ब्लॉग चलाती हैं । वह बाल चिकित्सा विकलांगता पर सामाजिक जागरूकता कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से शामिल है।

प्रश्न 1. जब हम बच्चों में विकलांगता कहते हैं, तो वास्तव में हमारा क्या मतलब होता है ?

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उ. विकार (डिसऑर्डर) से अपंगता (हैंडीकैप) होती है जिसकी वजह से विकलांगता (डिसेबिलिटी) आती है। बच्चों में यह तब होता है जब उनका बढ़ना रुक जाता है। हमारे इंडियन स्टैंडर्ड्स के हिसाब से,विकार के कारण जब बच्चा अपने उम्र के मुताबिक़ काम नहीं कर पता, जैसे की पेंसिल साढ़े तीन साल में पेंसिल ठीक से नहीं पकड़ पाना या फिर ५ साल में ठीक से न बोल पाना, उसे ही विकलाँगता कहतें हैं।

प्रश्न २.बच्चों में विभिन्न प्रकार की अक्षमताएँ क्या हैं ?

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उ. विकलांगता की वजह से हुई है उसके ऊपर इसके प्रकार निर्भर करते हैं। एक विकलांगता होती है "जन्मजात" (कॉनजेनाइटल) या आनुवंशिक (जेनेटिक), जो बच्चे की पैदाइश से ही होती है, और दूसरा प्रकार है "प्राप्त विकलागंता " जो गर्भावस्था के दौरान या फिर बच्चे के पैदा होने के बाद बीमार पड़ जाने की वजह से होती हैं। जैसे अगर बच्चे को उसके जन्म के बाद ज़्यादा जॉन्डिस या मैनिंजाइटिस हुआ है तो यह उसके विकार का कारण भी बन सकतें हैं।

एक डेवेलपमेंटल पएडिअट्रिशन समावेशिक शिक्षा (इंक्लूसिव एजुकेशन) के द्वारा बच्चे को समाज में उनको जगह मिल सके और और लोग स्वीकार सकें, इसपे काम करते हैं। लेकिन उसके पहले बहुत आवश्यक है की बच्चे के माता-पिता अपने बच्चे को समझें। - स्पीच-लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट प्रिया नायक-गोले

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प्रश्न ३. कई माता-पिता यह स्वीकार नहीं करते हैं कि उनके बच्चे के पास कुछ विकासात्मक मुद्दा है, इस पर आपके क्या विचार हैं ?



उ. माता-पिता का स्वीकारना की उनके बच्चे को कोई विकार है, यह एक मुश्किल बात है, और इसे स्वीकारने के लिए कोई मंत्र नहीं है। हर माँ -बाप को अपने बच्चे से बहुत उम्मीद होती हैं, लेकिन जब वह अपने बच्चे में किसी तरह के "विज़िबल सिम्पटम्स" देखते हैं तो ज़ाहिर सी बात है की उन्हें काफी तकलीफ होती है। इन्ही सिम्पटम्स के ऊपर अपने बच्चे को किसी तरह का "लेबल" न लगाएं जो काफी गलत भी है।यह सिम्टम्स दिखने के बच्चे के बाद माँ-बाप को "डेवेलपमेंटल पएडिअट्रिशन" की सलाह ज़रूर लेनी चाहिए। एक डेवेलपमेंटल पएडिअट्रिशन समावेशिक शिक्षा (इंक्लूसिव एजुकेशन) के द्वारा बच्चे को समाज में उनको जगह मिल सके और और लोग स्वीकार सकें, इसपे काम करते हैं। लेकिन उसके पहले बहुत आवश्यक है की बच्चे के माता-पिता अपने बच्चे को समझें।
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प्रश्न ४. विकलांगता के लिए एक विशेषज्ञ का दौरा करना "ठीक है" अभी भी हमारे समाज में एक कलंक है, आप क्या कहना चाहेंगी ?



उ. यह विज़िबल सिम्पटम्स दिखने के बच्चे के बाद माँ-बाप को "डेवेलपमेंटल पएडिअट्रिशन" की सलाह ज़रूर लेनी चाहिए। एक डेवेलपमेंटल पएडिअट्रिशन समावेशिक शिक्षा (इंक्लूसिव एजुकेशन) के द्वारा बच्चे को समाज में जगह मिल सके और और लोग स्वीकार सकें, इसपे काम करते हैं। लेकिन उसके पहले बहुत आवश्यक है की बच्चे के माता-पिता अपने बच्चे को समझें।
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प्रश्न ५. माता-पिता के लिए आपका क्या संदेश है ?



उ. माता-पिता को यही कहना चाहती हूँ की अपने बच्चे के साथ बहुत समय बिताएं। शुरूआती तीन साल बच्चे से बहुत खेलिए और बात कीजिये। गैजेट्स बिलकुल नहीं दीजिये, मेरे पास ५%-१०% माँ-बाप आतें हैं जो कहतें हैं की मेरा बच्चा ठीक से बोल नहीं पा रहा या चल नहीं पा रहा लेकिन असल में बच्चे को कोई विकार होता ही नहीं है। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि माता - पिता अपने बच्चे को समय नहीं देते और उन्हें समझ नहीं पाते। बहुत ज़रूरी की अपने बच्चे को गौर से समझें और यदि कुछ भी ठीक न लगे तो तुरंत एक्सपर्ट की राय लें।
पेरेंटिंग
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