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हमारे समाज में लोग जेंडर रोल्स से इतने ज़्यादा अटैच्ड हैं की हर काम को जेंडर से अटैच कर दिया गया है। अगर कोई लड़की बस या रिक्शा चलाती है तो वे उसे बहुत हैरानी से देखते हैं। कोई पुरुष अगर बाहर जाकर काम करने की बजाये घर संभालना चाहता है तो पता नहीं उसे कितने ही अजीब नामो से बुलाया जाता है।
हमारे समाज में लोगो ने महिलाओं और पुरुष के लिए अपनी सोच के अनुसार अलग -अलग काम पहले से ही सोच रखे हैं। अक्सर पहले यह कहा जाता था की महिलाओं का काम घर संभालना होता है और पुरुषों का काम बाहर जाकर पैसे कमाना पर आजकल की इस युवा पीड़ी ने इस बात को गलत साबित कर दिया है। अब महिलाएं भी अपनी मर्ज़ी से बाहर जाकर पैसे कमा सकती हैं और पुरुष भी अपनी मर्ज़ी से अगर घर की देखभाल करना चाहे तो कर सकते हैं।
कुछ ज़रूरी सवाल
हम सबको अपने जीवन से जुड़े सभी फैसले खुद लेने का हक़ है।
आज की पीड़ी हर चीज़ की आज़ादी चाहती हैं जैसे की बाहर जाकर काम करने की और तो और अपनी पसंद का प्रोफेशन अपनाने की। पर समाज में हर वक़्त क्यों ये बताता रहता है कि कौन से काम महिलाओं के हैं और कौन से पुरुषों के। क्यों एक महिला ड्राइवर और बार टेंडर नहीं बन सकती जबकि एक पुरुष होम मेकर नहीं बन सकता।
हम ऐसी बाहत सी फिल्मे देखते हैं जहाँ इन सभी रूढ़ियों को तोडा गया है पर फिल्मों को तो हम बहुत सराहते हैं पर हमारी असल ज़िन्दगी का क्या ? क्या हम उन फिल्मों द्वारा दी गई शिक्षाओं को अपनी असल ज़िन्दगी का हिस्सा बनाने में यकीन रखते हैं ? क्या समाज हर वक़्त हमे अपनी बनाई गई धारणाओं पर चलने के लिए मजबूर करता रहेगा ? ऐसा क्यों और कब तक ऐसा चलता रहेगा ? हम कब तक इन खोखली रूढ़ियों का हिस्सा बनते रहेंगे ?
अब समय आ चुका है की हम इन सभी रूढ़ियों को तोड़े और समझे की किसी के साथ भी जेंडर स्टीरियोटाइप्स एसोसिएट करना बहुत गलत है और अपनी सोच औरों पर थोपना कितना गलत है। हमारा संविधान हर किसी को पूरी आज़ादी देता है अपने जीवन के फैसले खुद लेने के लिए तो समाज को अब हमे अपनी बनाई रूढ़ियों के तराज़ू में तोलना बंद कर देना चाहिए।
हमारे समाज में लोगो ने महिलाओं और पुरुष के लिए अपनी सोच के अनुसार अलग -अलग काम पहले से ही सोच रखे हैं। अक्सर पहले यह कहा जाता था की महिलाओं का काम घर संभालना होता है और पुरुषों का काम बाहर जाकर पैसे कमाना पर आजकल की इस युवा पीड़ी ने इस बात को गलत साबित कर दिया है। अब महिलाएं भी अपनी मर्ज़ी से बाहर जाकर पैसे कमा सकती हैं और पुरुष भी अपनी मर्ज़ी से अगर घर की देखभाल करना चाहे तो कर सकते हैं।
कुछ ज़रूरी सवाल
- क्या हमें अपना प्रोफेशन अपनी मर्ज़ी से चुनने का हक़ नहीं है?
- समाज कैसे तय कर सकते है कि आप कौन से प्रोफेशन में जाएँ
- समाज के अनुसार जेंडर और प्रोफेशन में एक ज़रूरी लिंक क्यों होता है ?
- क्यों हम कुछ प्रोफेशंस को पुरुषों के लिए और कुछ को महिलाओं के लिए फिट मानते हैं ?
हम सबको अपने जीवन से जुड़े सभी फैसले खुद लेने का हक़ है।
आज की पीड़ी हर चीज़ की आज़ादी चाहती हैं जैसे की बाहर जाकर काम करने की और तो और अपनी पसंद का प्रोफेशन अपनाने की। पर समाज में हर वक़्त क्यों ये बताता रहता है कि कौन से काम महिलाओं के हैं और कौन से पुरुषों के। क्यों एक महिला ड्राइवर और बार टेंडर नहीं बन सकती जबकि एक पुरुष होम मेकर नहीं बन सकता।
हम ऐसी बाहत सी फिल्मे देखते हैं जहाँ इन सभी रूढ़ियों को तोडा गया है पर फिल्मों को तो हम बहुत सराहते हैं पर हमारी असल ज़िन्दगी का क्या ? क्या हम उन फिल्मों द्वारा दी गई शिक्षाओं को अपनी असल ज़िन्दगी का हिस्सा बनाने में यकीन रखते हैं ? क्या समाज हर वक़्त हमे अपनी बनाई गई धारणाओं पर चलने के लिए मजबूर करता रहेगा ? ऐसा क्यों और कब तक ऐसा चलता रहेगा ? हम कब तक इन खोखली रूढ़ियों का हिस्सा बनते रहेंगे ?
अक्सर पहले यह कहा जाता था की महिलाओं का काम घर संभालना होता है और पुरुषों का काम बाहर जाकर पैसे कमाना पर आजकल की इस युवा पीड़ी ने इस बात को गलत साबित कर दिया है।
अब समय आ चुका है की हम इन सभी रूढ़ियों को तोड़े और समझे की किसी के साथ भी जेंडर स्टीरियोटाइप्स एसोसिएट करना बहुत गलत है और अपनी सोच औरों पर थोपना कितना गलत है। हमारा संविधान हर किसी को पूरी आज़ादी देता है अपने जीवन के फैसले खुद लेने के लिए तो समाज को अब हमे अपनी बनाई रूढ़ियों के तराज़ू में तोलना बंद कर देना चाहिए।