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पीएचडी स्कॉलर बैठी अनशन पर, विश्वविद्यालय पर जातिवाद का आरोप

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Swati Bundela
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PhD Scholar At Hunger Strike In Keral: दलित पीएचडी स्कॉलर दीपा पी मोहनन ने अपनी यूनिवर्सिटी पर जातिवाद का आरोप लगते हुए अनशन पर बैठने की बात कही है। केरल के कोट्टायम में महात्मा गांधी विश्वविद्यालय पर दीपा ने जातिवाद का आरोप लगाया। दीपा, महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय की दलित पीएचडी स्कॉलर हैं। 

PhD Scholar At Hunger Strike In Keral: विश्वविद्यालय पर जातिवाद का आरोप 

36 वर्षीय वैज्ञानिक दीपा का कहना है कि विश्वविद्यालय के अधिकारी जानबूझकर उनकी पीएचडी की डिग्री पूरी करने में देरी कर रहे हैं, क्योंकि वो एक दलित स्कॉलर हैं। दीपा 29 अक्टूबर से ( महात्मा गाँधी यूनिवर्सिटी ) MGU में इंटरनेशनल एंड इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनोसाइंस एंड नैनो टेक्नोलॉजी (IIUCNN) के बाहर भूख हड़ताल पर बैठी हैं। । दीपा का दावा है कि पिछले 10 वर्षों से, संस्थान के निदेशक नंदकुमार कलारिकल द्वारा कथित तौर पर दलित होने के कारण उनकी प्रगति को बाधित किया जा रहा है।

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https://twitter.com/VPramadom/status/1456112354970652676?s=20

दीपा ने मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी में मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद, 2011 में एमफिल की डिग्री हासिल करने के लिए महात्मा गाँधी यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया। उनका आरोप है कि विश्वविद्यालय में प्रथम वर्ष से ही कलारिकल उनकी शिक्षा में बाधा डाल रहे हैं। कलारिकल एक संयुक्त निदेशक थे जब दीपा ने संस्थान में पढ़ना शुरू किया और अब IIUCNN के निदेशक हैं।

द न्यूज मिनट की रिपोर्ट में कहा गया है कि दीपा का दावा है कि उसने उसे लैब तक पहुंचने से रोक दिया है, लैब में रसायनों और पॉलिमर तक पहुंचने से रोक दिया है, उसे कार्यस्थल पर बैठने से मना कर दिया है, उसके वजीफे को अवरुद्ध करने का काम किया है और एक बार उसे लैब के अंदर अकेला बंद कर दिया गया था। दीपा ने यह भी आरोप लगाया है कि वह अपने बैच में एकमात्र दलित स्टूडेंट हैं, यूनिवर्सिटी ने हमेशा उनको अपमानित किया है और ये कोशिश की है कि किस भी तरहदीपा को पीएचडी की डिग्री सही समय पर न मिल सके। 

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डीप का कहना है कि, "मेरे पास पहले से ही एक एमफिल है, और आदर्श रूप से मैं 2015 तक अपनी पीएचडी पूरी कर सकती थी।" इस वजह से दीपा ने भूक हड़ताल पर जाने का फैसला किया। दीपा ने तीन चीजों की मांग को लेकर भूख हड़ताल किया है। जिसमें पहला ये हैं कि उसकी शोध मार्गदर्शिका बदली जाए। दूसरा, उसे (दीपा) अपने शोध को पूरा करने के लिए सामग्री प्रदान की जाए, जैसे अन्य सभी पीएचडी स्कॉलर को की जाती है और तीसरा ये कि यूनिवर्सिटी के नंदकुमार कलारिकल को संस्थान से हटाया जाए।

1 नवंबर को, विश्वविद्यालय कथित तौर पर पहली दो मांगों पर सहमत हो गया, लेकिन आईआईयूसीएनएन से कलारिकल को हटाने से इनकार कर दिया। इसपर दीपा का कहना है कि वह अपनी भूख हड़ताल तब तक खत्म नहीं करेंगी जब तक कि उन्हें (कालरिकल ) हटा नहीं दिया जाता। उनका तर्क है कि उनके पिछले अनुभव साबित करते हैं कि अगर कलारिकल केंद्र में है, तो वह अपना शोध पूरा नहीं कर पाएगी क्योंकि वह बदला लेने की तलाश में होगा।


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