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हमें रुखमाबाई के बारे में क्यों पता होना चाहिए ?
रखुमाबाई न केवल भारत की पहली महिला डॉक्टर थी, बल्कि उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी काम किया। उन्होंने ऑप्प्रेसिव, पितृसत्तात्मक समाज के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी थी। एक बाल वधु के रूप में , उन्होंने उस व्यक्ति से शादी करने से इंकार कर दिया जिसे उनके परिवार वाले चाहते थे। इन्होंने सबसे प्रसिद्ध कानूनी मामलों में से एक को जन्म दिया। इस मामले ने कई महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों को उठाया। उनके कार्यो और विरोध के कारण 1891 में एज ऑफ़ कंसेंट एक्ट बना ।
क्या उन्हें एक कड़ा / सख्त बनाता है ?
रुखमाबाई के कोर्ट केस ने भारत और विदेशों में सहमति पर नारीवादी चेतना और चर्चा का उदय किंग। पहली बार, लोगों ने बाल विवाह की बुराइयों पर बहस शुरू की। इस बहादुर महिला ने राष्ट्र में एज ऑफ़ कंसेंट एक्ट लागू किया। जब वह अपने पति से केस हार गई और उन्हें उसके साथ रहने के लिए कहा गया, तो उसने वापस जाने के बजाय जेल जाने का विकल्प चुना। इस फैसले के बाद में क्वीन विक्टोरिया ने खुद फैसला वापस कर दिया था जसके बाद वह लन्दन में दावा की पढ़ाई करने चली गई थी। उन्होंने रेड क्रॉस सोसाइटी की भी स्थापना की।
रुखमाबाई की शादी दादाजी भीकाजी से हुई थी, जब वह केवल 11 साल की थी। पर वह पढाई जारी रखना चाहती थी इसलिए उन्होंने अपने पति के साथ रहने से इंकार करदिया था। यह मुद्दा रुखमाबाई के पति द्वारा अदालत में सात साल बाद लाया गया जिन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में "संवैधानिक अधिकारों की बहाली" के लिए ममता दायर किया था।
यह भारतीय इतिहास में सबसे अधिक प्रचलित अदालतों में से एक माना जाता है। एक बाल वधु अपने पति के साथ रहने से इंकार कर रही है, ऐसा भारत में पहले कभी नहीं सुना था। इस मामले को तीन साल तक खिंचा गया और 1887 में जस्टिस फरहान ने रुखमाबाई को हिन्दू कानूनों की व्याख्या का हवाला देते हुए "अपने पति के साथ रेहनव या छह महीने की कैद का सामना करने" का आदेश दिया। इस के लिए , रुखमाबाई ने जवाब दिया की वह फैसले का पालन करने के बजाय कारावास का सामना करेंगी । इसके परिणाम स्वरुप आगे की सामाजिक बहस हुई और रानी विक्टोरिया से अपील की । रानी विक्टोरिया ने अदालत के फैसले को खारिज कर दिया और शादी को भंग कर दिया।