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कालरा जोकि एक पत्रकार, संचार पेशेवर और एक कार्यकर्ता है, उन्होंने कुछ ट्रेनर्स को लेकर पहली कक्षा खुद ही व्यावस्तित किया। उन्हें इन मज़दूरों को काफी समझाने , भुझाने के बाद उन्हें ये विश्वास दिलाया कि उनकी बेटियां स्वयं रक्षा कर सकती है। ये जवान पत्रकार अपने छोटे छोटे कदमों से एक बड़े लक्ष्य की और जा रही है। उन्होंने अपने जिम ट्रेनर को कुछ कक्षायें लेने के लिए मनाया। कालरा को इस पहल में अब और ट्रेनर की ज़रूरत और कुछ सहयोग से ये आशा है कि और औरते उनकी इस पहल से जुड़ेंगी। शी पीपल टी वी ने कालरा से उनके पहल ,स्वयम रक्षा की आवश्यकता और आगे की दृष्टि के ऊपर बात की।
क्या आप हमें अपने वर्कशॉप पर कुछ बता सकती हैं?
हमारा लक्ष्य ये है कि हम मुफ्त स्वयं रक्षा की ट्रेनिंग इन घरेलू मज़दूर, उनकी बेटियाँ और अन्य महिलाओं को देना चाहते है। ये हर औरत का अधिकार है कि वो स्वयं रहक्षा सीखे ताकि वो खुद का संरक्षण कर सके।
वर्कशॉप्स बुनियादी शारिरिक फिटनेस व्यायाम से शुरू होती है जोकि 20 मिनट के लिए चलता है। ये इसलिए ज़रूरी है ताकि आप शारीरिक तौर से स्वस्थ हो और आपकी शहनशीलता सही हो। इन व्यायाम के बाद ट्रेनर आपको 5-6 मूलरूप चालें बताएंगे जिस से आप अपने आप को बचा सके। अलग अलग परिस्थितियों के लिए अलग अलग चालें होती है।
घरेलू मज़दूरों के बारे में ज्यादा बताया नही जाता। आप किस कारण से इनकी ज़िम्मेदारी लेती है?
एक बार जब मैं घर लौट रही थी तो मैंने दो मज़दूरों को ये बात करते हुए सुना कि कैसे 7 बजे के बाद उन्हें घर जाने में परेशानी होती है। जिस समाज में वो रह रहे है , वो सुरक्षित नही। उन्हें कभी छेड़ा जाता हैं तो कभी धक्का दिया जाता है। इतना सब कुछ झेलने के बाद भी , वो काम पे जाते है अपने जीवन का खतरा उठा के।
"मैं एक पत्रकार हु और देर रात तक काम करती हूं। जब भी मैं रात में अकेले घर जाती हूँ तो मुझे भी डर लगता है तो ये मज़दूर भी तो इंसान है। इनके पास तो आर्थिक या पारिवारिक संरक्षण भी नही होता मेरा लक्ष्य ये है कि इन्हें स्वयं रक्षा सीखा इन्हें संरक्षित महसूस करवाऊं ताकि देर रात इन्हें डर न लगे.
हमें बताइए कि आपने ये सारी चीज़ कैसे की- इन मज़दूरों को मनाने से लेकर इन्हें कक्षा में लेकर आना? आपने क्या क्या कठिनाई देखी और क्या देख रही है?
मेरा सबसे बड़ा रुकावट इस सफर में ट्रेनर को मनाने में लगा , की कैसे वो कम दाम में कक्षा में सीखा पाये। मैं एक जवान संचार पेशावर हु और ये खर्च मैंने खुद ही उठा लिया।
मज़दूरों के पास नाहि तो पैसे है और नाहि तो समय की वो ऐसी चीज़ सिख पाये। हमने सोचा कि हम ये व्यायाम दोपहर में खेल मैदान में करेंगे और उन्हें बुलाएंगे। जब भी उन्हें समय मिलता, वो एक घंटे की क्लास करके चले जाते। कभी न आ पाते तो बेटियों को ज़रूर भेजते। एक और बड़ी दिक्कत पैसा है, “मैं बहुत कुछ करना चाहती हूं पर मेरे पास पैसे काम है”
पिछड़े वर्ग को कैसे प्रभावित करें और कैसे समाज को इसमें आने का बढ़ावा दे?
ह?म सब इस समाज का निर्माण करते है और हमें और सहानुभूति औरसहनशीलता से काम लेना पड़ेगा। हम इसमे एक है और ये हमारा फ़र्ज़ है कि हम एक दूसरे की मदद करें।
आपका इन महिलाओं के साथ अब तक का क्या अनुभव रहा?
ये महिलाएं उत्साहिक और बहादुर है। इन्हें बस एक अवसर चाहिए और यही मेरा लक्ष्य है।
इनके परिवारों से क्या क्या सुनने को मिला?
परिवारों को स्वयं रक्षा का मतलब पहले समझ नही आता पर जब वो कक्षा करने आते है, वो इसकी एहिमियात समझ जाते है।
क्या स्वयं रक्षा करने के लिए शारीरिक तौर से स्वस्थ होना ज़रूरी है?
जी ये बेहद ज़रूरी है। यही कारण है कि चाल शुरू करने से पहले हम व्यायाम करते है।
भारत में इसे कैसे लाया जाए जब विदेश में काफी संस्थान ऐसी स्वयं रक्षा जैसी चीज़ों से जुड़े है?
बहुत मज़दूर इतने पढ़े लिखे नही है कि वो इस कोर्स के लिए फॉर्म भर सके। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की मदद से हम आगे बढ़ना चाहते है पर अभी हमने बस शुरू किया है। अगर मंत्रालय की दख़ल अंदाज़ी हुई तो हम काफी ऊँचाई तक जा सकते है।
लिंग हिंसा जैसे एक काफी बड़े आंदोलन से ये कैसे जुड़ा है?
मर्दनपन सिर्फ पुरुषों में ही नही बल्कि औरतों में भी होती है। पर हमतब तक आज़ाद नही होंगे जब तक खुद की रक्षा न कर पाए।
आगे की क्या योजना है?
हम इस पहल को जल्द ही आधिकारिक करदेंगे। ये बस एक ऐसे ख्याल से आया जहां औरतों का सुरक्षित होना ज़रूरी था। मैंने ये अकेले शुरू किया पर अब बहुत लोग आ रहे है। ये हमारी मदद कर रहे है कि कैसे देश की महिलाओ को शशक्त और स्वयं की रक्षा करना सिखाये।