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जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, वैसे-वैसे हमारे अनुभव हमें कुछ-न-कुछ सीखाते रहते हैं। और इस कारण हम बदलने लगते हैं या यूं कहूँ कि हम ग्रो करने लगते है। मगर जबरदस्ती खुद को बदलना वो भी शादी के रिश्ते में फिक्स होने के लिए, कितना सही है ? केवल पति-धर्म को निभाना, खुद के सपनों को भूलकर कितना तर्कसंगत है ?
केवल औरत को ही एडजस्टमेंट और कॉमप्रोमाइज़ क्यों करना पड़ता है ?
मेरे सामने की ही बात है, लड़का डॉक्टर है मगर उसे लड़की डॉक्टर नहीं चाहिए। क्योंकि अगर वो भी डॉक्टर होगी, तो घर कौन संभालेगा ? अरे! बच्चे हुए तो उनको कौन देखगा ? बेहद आसानी से अपनी चॉइस लड़के की माँ ने बताई थी, मगर यह चॉइस में कितनी सक्त मानसिकता थी। शायद सामान्य तौर पर इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है।
यह बिल्कुल सही है कि नए रिश्ते को निभाने के लिए थोड़े बहुत एडजस्टमेंट और कॉमप्रोमाइज़ करने पड़ेंगे। मगर शादी के बाद कॉमप्रोमाइज़ (comprise), एडजस्टमेंट (adjustment) जैसे शब्दों को केवल औरत से जोड़ देना गलत है। अगर रिश्ता दो लोगों के बीच जुड़ा है तो हर छोटी चीज़ को साथ में मिलकर निभाना बेहद जरूरी है।
- मांग में सिंदूर, पैरों में पायल, गले में मंगलसूत्र, हाथों में चूड़ी, और न जाने क्या-क्या शादीशुदा महिलाओं के लिए जरूरी कर दिया जाता है। अगर यह सब चीजें कोई औरत करने से मना कर दे, तो उसे हर कोई जज भी करने लगता है और सादी-सी भाषा में उसे 'स्वाभिमानी' कह दिया जाता है। मानो, उनके लिए व्यक्ति का 'स्वाभिमानी' होना गलत होता हो। आपके लिए अपने रिवाज़ सही हो सकते हैं, मगर रिवाज़ो को जबरन किसी पर थोपना बिल्कुल गलत है।
- शादी के बाद औरत को नौकरी करनी है या नहीं, ससुराल के लोग कैसे तय कर सकते हैं ? लड़की ने भी खुद के लिए कुछ सपने सजाये होंगे, उसने सोचा होगा कि आगे उसको क्या करना है और क्या नहीं। तो क्यों उसे अपने हिसाब से चीजें करने की इजाज़त नहीं।
- मैरिटल रेप जैसा शब्द तो आज भी भारत के लोगों के लिए गलत नहीं है। अरे!! पति है वो, उसका पूरा हक है वो तो कुछ भी कर सकता है, तो उसे रेप थोड़ी कह दोगे। गलती तुम्हारी है, तुम्हें नहीं पता शादी के बाद ये सब होता है ??
- शादी के बाद औरत के पहनावे से लेकर उसका नाम तक बदलवा देना, और फिर सब कहते हैं शादी के बाद क्या ही बदलता है। बड़ी दोगुली चीज़े हैं, ज्यादा बेकार तो यह है कि यह आज भी होती हैं।
इन चूड़ियों और सिंदूर के कारण बहुत सारे सपने टूटते देखे हैं। हाँ माना जरूरी है शादी करना, मगर इतना जरूरी भी नहीं..... आज भले ही सबको नारीवादी लोगों का मजाक उड़ाने में बड़ा मज़ा आता हो, मगर नारीवादी सोच रखना जरूरी है।