किसी बच्चे की मृत्यु होने से ज़्यादा दुखद शायद कुछ नहीं होता |अगर ये मृत्यु आत्महत्या के कारण हुई हो, तो माता-पिता को तोड़ कर रख सकती है| आत्महत्या की घटनाओं की बढ़ती संख्या दिखाती है कि बच्चों में आत्हत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है| शोध में पता चला है कि बच्चों में आत्महत्या का कारण केवल उदासी नहीं होती| इसके पीछे और क्या वजहें होती हैं, जो हर माता-पिता को पता होना चाहिए |
बहुत छोटी उम्र में ही बच्चों को मौत और आत्महत्या के बारे में पता चल जाता है | इतना ही नहीं, उन्हें इसके तरीक़ों की जानकारी भी हो जाती है| जैसे-जैसे वो बड़े होते हैं उन्हें इसके बारे में और पता चलता रहता है | ज़्यादातर मामलों में आत्महत्या का कारण परिवार और दोस्तों से जुड़ा होता है|लोग सोचते हैं कि छोटे बच्चों को तनाव और दिमाग़ी परेशानियां नहीं होती लेकिन ऐसा नहीं है. उन्हें भी साइकोलोजिस्ट परेशानियां होने का ख़तरा रहता है. बच्चों को भी डिप्रेशन होता है|
- जब बच्चों के दिमाग़ में इस तरह के ख़याल आते हैं तब वो इनके बारे में किसी से बात करने को लेकर सहज नहीं होते. उन्हें पता ही नहीं होता कि इसके बारे में किससे बात की जानी चाहिए |
- उन्हें ऐसे में हमदर्दी, अपनेपन और साथ की ज़रूरत होती है. वो स्थिति को बेहतर करना चाहते हैं पर उन्हें ये नहीं पता होता कि ये कैसे करना है |
- बच्चों का मन इतना नाज़ुक होता है कि ज़रा सा अपमान, कोई अप्रिय बात, उन्हें कोई ग़लत कदम उठाने की ओर ले जा सकती है |
माता-पिता को क्या करना चाहिए
अगर मज़ाक में भी कभी बच्चा इस तरह की कोई बात करता है तो उसे हलके में न लें | उसका मन टटोलें और जानने की कोशिश करें कि उसे क्या परेशान कर रहा है |
इसके बारे में बात करने से न कतराएं
बच्चों को 8-9 साल की उम्र तक आत्महत्या के बारे में पता चल जाता है, इसलिए आपको ख़ुद उन्हें इसके बारे में सही जानकारी देनी चाहिए और उन्हें ज़िन्दगी की क़ीमत समझानी चाहिए | उन्हें बताएं कि जीवन में आने वाली समस्याएँ टेम्पररी होती हैं लेकिन आत्महत्या परमानेंट होती है, इसलिए ये किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकती |
- बच्चे के साथ भरपूर समय बिताएं. उससे बातें कर के उसके दोस्तों और उनकी ज़िन्दगी के बारे में जानते रहें ताकि कोई समस्या होने पर वो आपको सहजता से बता सकें |
- अगर बच्चा नाख़ुश दिख रहा हो तो कभी इसे अनदेखा न करें. समस्या जान कर उसे ख़त्म करने में उसकी मदद करें |
- उन्हें बताएं कि कोई भी समस्या इतनी बड़ी नहीं होती कि ज़िन्दगी ख़त्म कर दी जाये |
- अपने बच्चे की तुलना खेल, पढ़ाई या किसी भी मामले में दूसरे बच्चों से न करें | उस पर अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव न बनाएं |
- अगर आपको लगता है कि बच्चे के मन में नकारात्मक विचारों ने घर कर लिया है तो उसे साइकोलोजिस्ट के पास ज़रूर ले जायें |