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उषा चौमार एक ऐसी महिला हैं जीने आपको अवश्य ही प्रेरणा लेनी चाहिए। वह अभी सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की प्रेजिडेंट हैं। उन्हें उनके सामाजिक कार्यों के लिए इस साल
इंडिया टुडे के पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा, “मेरे जीवन में काफी बदलाव आया है। इससे पहले, मैं एक मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में काम करती थी। यह सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ बिंदेश्वर पाठक थे, जिन्होंने मुझे उस काम से बाहर आने में मदद की। ”
पद्मा श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।इंडिया टुडे के पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा, “मेरे जीवन में काफी बदलाव आया है। इससे पहले, मैं एक मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में काम करती थी। यह सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ बिंदेश्वर पाठक थे, जिन्होंने मुझे उस काम से बाहर आने में मदद की। ”
इनके बारें में कुछ और बातें जानिए
- उषा चौमार राजस्थान के भरतपुर जिले की रहने वाली हैं। वह एक दलित परिवार में पैदा हुई थीं और उन्होंने मैन्युअल स्केवेंजिंग करना शुरू किया क्योंकि उनका परिवार भी वही करता था।
- उषा चौमार ने सात साल की उम्र में मैनुअल स्कैवेंजिंग शुरू किया। उन्होंने कहा कि जब वह एक बच्ची थी, तो वह अक्सर अपनी माँ से झाड़ू लगवाने की जिद करती थी ताकि वह उनकी मदद कर सके।
- फिर उन्होंने दस साल की उम्र में शादी कर ली और राजस्थान के अलवर ज़िले में चली गई। हालाँकि, वहां पर भी उनका काम नहीं बदला।
- उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट तब आया जब उनके इलाके में डॉ बिंदेश्वर पाठक आये और उनका जीवन बदल गया। उन्होंने उषा को एक दूसरा काम करना कि चॉइस दी
- उन्होंने अलवर में सुलभ इंटरनेशनल का एक सेंटर स्थापित किया, जिसे नई दिशा कहा जाता है। यह अचार, नूडल्स, पापड़ और अन्य खाद्य पदार्थों के उत्पादन का सेंटर बन गया। इस प्रकार, सुलभ ने इन महिलाओं के लिए रोजगार प्राप्त करने में मदद की।
- उषा का जीवन बदल गया। उन्हें फिनांशल इंडिपेंडेंस के साथ साथ कॉन्फिडेंस भी मिला। उन्होंने २००३ में मैन्युअल स्केवेंजिंग छोड़ दी।
- वह बाद में एक एक्टिविस्ट और एक शक्तिशाली वक्ता बन गईं। उन्होंने मैन्युअल स्केवेंजिंग के खिलाफ आवाज़ भी उठायी। उषा ने सैकड़ों महिलाओं को प्रेरित किया । इस समय वह सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन में प्रेजिडेंट हैं
- उन्होंने यूएसए, पेरिस और दक्षिण अफ्रीका ट्रेवल किया है उन्होंने अंग्रेजी बोलना भी सीख लिया है
- उनके निरंतर प्रयासों के कारण, उन्हें 53 वर्ष की आयु में सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया है