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दिक्कत
प्राणोय रॉय और दोराब सोपरिवाला की आने वाली किताब, द वर्डिक्ट-डिकोडिंग इंडियाज एलेक्शन्स में ये बताया गया कि 21 लाख महिला वोटर सूची में नहीं हैं। उन्हीने सेन्सस के अनुसार 18 साल से ऊपर की महिलाओं और जारी की गई लिस्ट सूची की तुलना की।
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजहस्थान में आधी महिला जनसंख्या का नाम ही नहीं लिखा गया है जबकि दक्षिण राज्य जैसे आंध्र प्रदेश और तमिल नाडु में ये फर्क कम है।
अभी तक के आंकड़े
1. इकनोमिक टाइम्स के अनुसार महिला मतदाता की संख्या 47% से बढ़के 48.13% होगयी है।
2. इलेक्शन कॉमिशन के अनुसार महिलाओं के कारण ही आधे से ज्यादा बढ़त हुई है । 4.35 करोड़ लोगों के नाम सूची में जोड़े गए।
3. 2014 के लोक सभा के चुनाव के अनुसार महिला मतदाता जो कि 65.5% पे थी, पुरुषों को कड़ी टक्कर दी जो कि 67% पे थे।
4. 2014 में 87 कांस्टीट्यूएनइस में महिला मतदाता का आंकड़ा पुरुष से ज्यादा था। पर असल मे 97 जगह महिला मतदाताओं का आंकड़ा ज्यादा था।
इसकी एहिमियात क्या है?
आंकड़ा लगाने वालों के अनुसार 38000 महिलाओं का नाम हर ज़िला के सूची से गायब है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जहां जनसंख्या ज्यादा है, वहाँ ये आंकड़ा 80000 तक चला जाता है।
बी बी सी के अनुसार ईस कमी के कारण ये भी हो सकता है कि भारत का एलेक्टरत 900 लाख बढ़ जाएगा। अगर एक जगह पुरष मतदाता ज्यादा संख्या में हो तो महिलाओं की इच्छा को त्याग दिया जाता है।
प्राणोय रॉय ने बी बी सी से बोला “महिलाएं मतदान करना चहिती हैं, पर कर नही पाती। ये दुखद है, ये बहुत सवाल खड़े करता है और ये भी बताता है कि इसके पीछे कोई सामाजिक कारण है, किन्तु मतदाताओं के आंकड़ों से परिणाम बदलते है, ये समझना जरूरी है”
डॉक्टर रॉय से जब पूछा गया कि इसके पीछे का कारण क्या है तो वो बोले, “सामाजिक रुकावट एक कारण है पर ये इतने बड़े पैमाने पर नाम गायब होने की वजह नहीं बन सकता। मैंने सुना है कि माता पिता अपनी बेटियों को शामिल नहीं करते क्यों की इस से लोगो को बेटी के उम्र के बारे में पता लग जायेगा और विवाह में अड़चन आएगी। कई कई बार हमारी वजह से भी ये दिक्कत होती है”।
पिछले साल के सुर्वे में ये पाया गया कि 63 लाख महिलाएं जनसंख्या से गायब थी क्योंकि उनका आंकड़ा पुरुषों से ज्यादा होगया। शमिका रवि और मुदित कपूर के सर्वेक्षण के अनुसार 65 लाख या 20% महिला आबादी सूची से गायब थी। ये उन औरतों को लाता था जिनका रेजिस्ट्रेशन नहीं हुआ और वो जिन्होंने जानबूझकर अपने आप को इसमे शामिल नही किया।
महिला मतदातओं का ध्यान खींचना
राजनीतिक पार्टियों ने अपना ध्यान महिलाओं पे लगा दिया है, क्यों ? 2017 एवं 2018 के असेंबली एलेक्शन्स में महिला मतदाता 70% बढ़ी जबकि पुरुषों की आबादी सिर्फ 43 % से। वोमेसन रिजर्वेशन बिल, स्वछ भारत योजना, उज्ज्वल योजना, मातृ वंदना योजना और आवास योजना ऐसे प्रोग्राम है जो महिलाओ के लिए लाए गये।
एलेक्शन् कॉमिशन का काम
2019 में इलेक्शन कॉमिशन ने महिलाओं को लाने का काम किया, ऐसे-
1. महिलाओं के लिए अलग पंक्ति
2. महिला पुलिस की गार्ड ड्यूटी
3. पोलिंग स्टेशन में एक महिला अफसर
4. घर घर जाके मतदातओं का नाम वेरीफाई करवाना, ये काम महिलाओं के द्वारा करवाना।
5. गाओं में चाइल्ड वेलफेयर, वीमेन सेल्फ हेल्प ग्रुप द्वारा वेरिफिकेशन करवाना
6. राज्यों के द्वारा चलाये गए टीवी में मत देने का प्रसारण करना।
7. महिलाओं के लिए समर्पित अलग अलग महिला पोलिंग स्टेशन।