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1. किताब लिखने का कारण
उन्होंने किताब इसलिए लिखी क्यूंकि वे मानती हैं किसी भी चीज़ का रिपोर्ताज आधारित नॉन-फिक्शन लेखन उसे व्यापक तौर पर समझने के लिए मदद करता है। यह स्वीकार्यता के लिए ज़रूरी है। इस किताब का कहीं न कहीं जन्म उस वातावरण में हो गया था जिसमे प्रियंका ने जन्म लिया। तब से ही भेदभाव और लैंगिक समानता के प्रश्न उन्हें परेशान करते थे।
2. महिलाओं के ऊपर हिंसा होने पर बात
"मुझे लगता है हिंसा पर बात बातचीत वर्ष 2012 के गैंग रेप के बाद शुरू हुई। मीटू भी पश्चिमी देशों के बाद भारत में आया। इसलिए हमने हिंसा पर अभी बात करना ही शुरू किया है। जब तक हमारे समाचार पत्र लिंग हिंसा की कहानियों ने नहीं भरे होंगे, जैसे की अब हैं, तब तक इस पर बातचीत पर्याप्त नहीं होगी"।
3. हिंसा से पीड़ित लोगों की कहानियां
"मैंने देखा है कि पीड़ित लोगों पर आम तौर पर विश्वास नहीं किया जाता। आदर्श रूप से बातचीत की शुरुआत, पीड़ित पर विश्वास करके ही होनी चाहिए। लेकिन, एजेंसियां और समाज, पीड़ित पर शक के साथ इसकी शुरुआत करते हैं"।
4. अपनी किताब से उनकी उम्मीद
"मुझे इस किताब को लिखने में 6 साल लग गए। मैं उम्मीद करती हूँ की यह किताब हर लिंग के और हर आयु के व्यक्ति तक पहुंचे। क्यूंकि, अगर हम समाज में बदलाव लाना चाहते हैं तो सभी वर्ग के लोगों का शामिल होना ज़रूरी है"।
5. लेखन का अनुभव
"मेरे लिए यह अनुभव जीवन बदलने वाला रहा है। यह हिला देने वाला और दर्दनाक भी था और मैं भावनातमक रूप से चोट महसूस करती थी। लेकिन साथ ही इन कहानियों और मेरी रिपोर्टिंग ने उपचार भी किया। मैं जिन लोगों के बारे में लिखतीं थी, उससे मुझे उम्मीद और ऊर्जा मिलती थी। मैं उन सभी लोगों की शुक्रगुज़ार हूँ, जिनसे मैं इस यात्रा के वक़्त मिली"।
6. मीटू पर वार्तालाप
"मैंने मीटू पर रिपोर्ट नहीं किया है लेकिन एक पत्रकार होने के नाते मैंने इसे समझा है। इस आंदोलन ने सदियों पुरानी पितृसत्त व्यवस्थाओं को तोडना शुरू कर दिया है। इस संदर्भ में, यौन हिंसा के खिलाफ बोलने का कार्य क्रांतिकारी है"।
7. एक महिला और पत्रकार होने के अनुभव
"एक रिपोर्टर के रूप में मेरे अनुभव विविध रहे। कभी मेरे एक महिला होने के कारण मुझे अन्य महिलाओं से बात करने में बेहद आसानी हुई तो कभी बाधाएं भी आयी। लेकिन, एक बात जो हर जगह सामान्य रही, वह थी महिलाओं को स्तिथि। महिलाओं के ऊपर बढ़ती हिंसा एक सामान्यीकरणता बन गयी है जो मुझे आश्चर्यचकित करती है"।
8. हिंसा और शहरी-ग्रामीण विभाजन
"शहरी क्षेत्रों में जागरूकता ज्यादा है और इसलिए वहां की स्तिथि थोड़ी बेहतर है। लेकिन जांच एजेंसियों के विक्टिम-शेमिंग वाले रवैये में कोई फर्क नहीं है"।
9. किताब लिखने पर आने वाली बाधाएं
"मेरी सबसे बड़ी लड़ाई हमेशा पारिवारिक स्तर पर रही है। शुरुआत में मेरे लिए उन्हें अपनी ज़िंदगी और अपने काम को समझाना मुश्किल था। बाकि सब मैंने खुद ही संभाला है। यह काम करने और सुधार करने की एक प्रक्रिया थी। मेरी पढ़ने की आदत ने काफी मदद की"।
10. भारतीय समाज में नारी का स्थान
"मुझे लगता है कि एक समाज और देश की तरह हम इस पर काम कर रहें हैं। काफी नाउम्मीदियों के बीच भी, मिलियंस की संख्या में लोग हर दिन इस देश को कम पितृसत्त बनाने का प्रयास कर रहें हैं। लेकिन, हमे अभी एक लम्बा रास्ता तय करना है"।
यह इंटरव्यू पहले भावना बिष्ट ने अंग्रेजी में लिया था।