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जन संचार और तकनीक की दुनिया से तो हम सभी परिचित हैं। और जब से हमारे देश में टेलीविज़न टेक्नोलॉजी आयी है तब से ही हम इसका इस्तमाल अलग-अलग तरह से करने का प्रयास कर रहे हैं। शुरूआती दौर में हमने इसका उपयोग एक ज्ञान के उपकरण की तरह किया था और धीरे-धीरे हमने इसे अब मनोरंजन का साधन बना दिया है। मनोरंजन के क्षेत्र में टेलीविज़न धारावाहिकों का एक अलग ही स्थान है। लोग अपनी दिन प्रतिदिन की गतिविधियों को और अपने समय को तकनीक के अनुसार विभाजित करने लगे हैं। उनकी दिनचर्या तकनीक के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है।
अगर हम मूल रूप से सिर्फ धारावाहिकों पर अपना ध्यान केंद्रित करें तो हम यह देखेंगे की धारावाहिक कार्यक्रम ज़्यदातर महिलाओं में और औरतों में प्रसिद्ध हैं। यह कहना गलत होगा की पुरुष धारावाहिकों में इच्छुक नहीं हैं लेकिन फिर भी महिलाएं और युवा लड़कियां इसकी तरफ ज्यादा झुकाव रखती हैं। हालांकि तकनीक की दुनिया से जुड़े रहना काफी आनंदमय होता है लेकिन इसके काफी अनदेखे नुक्सान हैं जिन्हे समझना बेहद ज़रूरी है।
सिर्फ धारावाहिक ही नहीं, महिलाओं का मैगजीन्स, टेलीविज़न विज्ञापन, आदि में किया गया चित्रण उन्हें स्वयं पर शक करने के बार-बार अवसर देता है कि क्या वे खूबसूरत हैं या नहीं? लम्बे बाल, गोरा रंग, आदि सुंदरता के प्रतीक बनते जा रहे हैं।
गौर कीजिये की सारे धारावाहिकों में महिलाओं को दर्शाने का एक विशिष्ट ढंग है। वे आपको हमेशा मेक-उप के साथ मिलेंगी, हमेशा तैयार मिलेंगी, और उनमे कहीं न कहीं जलन की भावना ज़रूर होगी। क्या यह सब वास्तविक जीवन में हमेशा होता है? परिवार के सन्दर्भ में बात की जाये तो हमेशा से ही धारावाहिकों में एक उच्च वर्ग का परिवार देखने को मिलता है। मेरी मानें तो सभी धारावाहिकों में इस तरह का प्रतिनितिध्व करना एक परंपरा सी बन गयी है। हमेशा एक उच्च श्रेणी की महिला को दर्शाया जाता है और कहानी ज्यादातर कोई रोमांचक प्लाट से ही सम्बन्ध रखती है। इसलिए कहा जा सकता है कि धारावाहिकों में वास्तविकता की कोई जगह नहीं होती।
हमारे समाज में धारावाहिक काफी प्रचलित हैं। इसलिए लोगों पर और खासकर युवा लड़कियों पर इसका असर होना जाहिर सी बात है। एक तरफ समाज में लड़कियों के ऊपर काफी तरह के दवाब होते हैं और दूसरे यह धारावाहिक उन्हें और ज्यादा भटकाने के प्रयास में होते हैं। यहां पर यह चीज़ साफ़ होती है कि एक महिलाओं को किस तरह से बात करनी चाहिए, किस तरह से चलना या बोलना चाहिए, किस तरह के कपडे पहनने चाहिए, और सबसे बड़ा प्रश्न कि खूबसूरती की परिभाषा क्या होनी चाहिए।
हमे समझना होगा कि जिस चीज़ को हम इतनी प्रेम और श्रद्धा से देखते हैं उसका हम पर क्या असर पड़ रहा है। हम इन धारावाहिकों का सेवन करते रहते हैं और अंदर ही अंदर ये हमारे स्वभाव में और जीवन शैली में परिवर्तन लाते रहते हैं।
एक अध्ध्यन के हिसाब से महिलाओं और लड़कियों पर इसके काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। संभव है कि वे काफी आक्रामक हो जाएं। इसलिए ज़रूरी है कि हम इन धारावाहिकों और चका-चौंद से ज्यादा प्रेरित न हों और स्वयं का समय-समय पर मूल्यांकन खुद ही करते रहें।