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स्वतंत्र थिंक टैंक ने 665 ऐसी अदालतों को कवर किया, और पाया कि कम से कम 80 जिला अदालतों में शौचालय की कोई सुविधा नहीं है और केवल 11 प्रतिशत परिसरों में विकलांग व्यक्तियों के लिए शौचालय हैं।
नई दिल्ली के विधी सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी (वीसीएलपी) द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार, देश की 10 जिला अदालतों में से केवल चार में पानी के साथ "पूरी तरह से काम करनेवाले " शौचालय हैं, जबकि 15 प्रतिशत जिला अदालतों में महिलाओं के लिए शौचालय नहीं हैं। ।
नेविगेशन में आसानी
बेहतर न्यायालयों वाली रिपोर्ट: भारत के जिला न्यायालयों के बुनियादी ढांचे का सर्वे करते हुए बताया गया है कि केवल 20 प्रतिशत जिला अदालतों (665 अदालत परिसरों में से 133) में गाइड-मैप और 45 प्रतिशत (300 अदालत परिसर) में डेस्क की मदद है।
रिपोर्ट के अनुसार, लोगो को अक्सर रास्ता खोजने में परेशानी होती थी।
वीसीएलपी रीसर्चर्स ने रिसर्च के लिए प्रत्येक केंद्र से कम से कम 10 लोगो का इंटरव्यू लिया। प्रश्नों में नेविगेशन की आसानी, पहुंच, सुविधाएं और स्वच्छता के बारे में प्रश्न शामिल थे। "बड़े राज्यों में जहां मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के मुकाबले प्रशासन के लिए अधिक न्यायालय हैं और तो और केरल, तेलंगाना जैसे छोटे राज्यों की तुलना में खराब प्रदर्शन किया, जहां जिला अदालतों की संख्या कम है," रेशमा शेखर, रिसर्च फैलो, वीसीएलपी।
उन्होंने कहा कि किसी भी सरकार या न्यायिक अधिकारियों द्वारा राज्य और जिला स्तर पर अदालत के बुनियादी ढांचे की कोई नियमित आवधिक ऑडिट या समीक्षा नहीं की जाती है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि केवल 54 प्रतिशत (361 जिला अदालत परिसर) प्रतीक्षा क्षेत्रों को नामित किया गया है।
लगभग दो-तिहाई उत्तरदाताओं ने कहा कि प्रतीक्षा क्षेत्रों में अधिक बैठने की आवश्यकता है, जबकि 37 प्रतिशत ने प्रतीक्षा कक्षों में बेहतर वेंटिलेशन का सुझाव दिया।
अवरोध-रहित पहुंच के संदर्भ में, केवल 180 जिला अदालत में रैंप और लिफ्टों जैसी सभी सुख सुविधाएं उपलब्ध थी , जबकि बाकी की 13 अदालतों में सामान्य सहायता सुविधाएँ थीं।
इस तरह की स्तिथितियों में महिलाओं का अदालतों में काम करना बहुत मुश्किल है और तो और इससे उनकी सेहत पर भी असर पड़ता है।