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दिल्ली विश्वविद्यालय में नारीवाद
यूं तो इस विश्वविद्यालय में कई महिला कॉलेज है जहां नारीवाद पे कई बार बेहेस होती है पर दिल्ली विश्वविद्यालय में नारीवाद को लेकर काफी लोगो की अलग मत है ।
यूनियन की दिक्कत
कुछ लोगो का ये मनना है कि अगर नारीवाद के बारे में इतनी ही बेहेस होती है तो लड़कियों के कॉलेज में इलेक्शन में दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट्स यूनियन क्यों नही होता, क्यों इन कॉलेज के अपने खुद के यूनियन होते है? ये राजनीतिक तौर से नारीवाद के सोच को खत्म कर देता है।
होस्टल के समय
कुछ लोगो का ये कहना है कि लड़कों और लड़कियों के होस्टल समय अलग अलग क्यों है?लड़को के लिये आने और जाने पे कोई पाबंधी नही पर लड़कियों के लिए ये नियम बनाये गए कि 7 बजे के बाद कोई लड़की बाहर नही जा पाएगी। यहां भी नारीवाद के सोच का उलंघन होता है।
चुनाव का समय
चुनाव के समय जहा लड़कियों को पूरे विश्वविद्यालय की लड़कियों के लिए खड़ा होना चाहिए, वही ये देखा जाता है कि काफी कम लड़कियां इस चुनाव का हिस्सा बनती है और जो बनती है उन्हें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। लेफ्टिस्ट संघठन की ओर से खड़ी हुई एक प्रतिनिधि को किरोड़ी माल कॉलेज में थप्पड़ मारा गया। अगर ऐसी हरकतों को प्रोत्साहित किया गया तो जो दो चार महिलाये चुनाव में खड़ी होती है, सुरक्षा से डर से वो भी नही होगा। नारीवाद का उलंघन यहां भी होता है।
आंदोलन में
पिंजरा तोड़ जैसे आंदोलन में जोकि लड़कियों के ही फायदे में है, देखा जाता है कि लड़कियों की आबादी ही इन आंदोलनों में कम होती है।
उपाय
ऐसा नही है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेज महिलाओं की तरफ ध्यान नही देते । लड़कियों के कॉलेज में नारीवाद के ऊपर बेहेस होते है एवं इसका पालन भी किया जाता है। कई कॉलेजों में लड़कियों ने "वीमेन डेवेलपमेंट सेल" यानी कि "महिला सुधार सेल" खोले और कई ऐसे संगठन शुरू किए जोकि समलैंगिक तौर से सहायक है। अगर पूरे विश्वविद्यालय को देखा जाए तो विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को मिलके इस समानता को लाना होगा ।