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बहुत याद आता है वो दो चोटियां में, बस्ता टाँग कर स्कूल जाना. उन दिनों की बात ही कुछ और थी, न भविष्य की फ़िक्र और न ही कोई ज़िम्मेदारियाँ.
अपने स्कूल के दिनों में, अच्छे अंकों से परीक्षा पास करना अवश्य होता है. दूसरी तरफ, कॉलेज में सिर्फ पढ़ाई नहीं, काफी और चीज़ें भी होती है. कॉलेज में कई ग्रुप्स व सोसाइटी होती है, जिनमें शामिल हो कर हम अपना कौशल और कला का विकास कर सकते है. बहुत सारे नए बच्चों के लिए, कॉलेज सिर्फ तीन या चार साल का पढ़ने लिखने की जगह होती है. लेकिन वह गलत है. स्कूल और कॉलेज के बीच बहुत सारे अंतर हैं, और ये अंतर कॉलेज को स्कूल की तुलना में अधिक सुखद बनाते हैं.
कॉलेज के पहले दिन से ले कर आखिरी दिन तक, रोज़ कुछ नया और रोमांचिक होता था. वो दोस्तों के साथ कैन्टीन में बैठ कर मस्ती करना. प्रोफेसर्स और दोस्तों के साथ हसी-मज़ाक. कॉलेज में स्कूल वाली ज़िन्दगी से सब कुछ अलग है. सबसे पहले, स्कूल की वर्दी से आज़ादी मिलती है, जो कि एक लड़की के लिए ज़रूरी बदलाव है. फिर आती है, मिलता है दो चोटी से छुटकारा. जी हाँ, कितनी ख़ुशी मिलती है, जब आप बाल खोल कर लहराती है.
एक नन्ही चिड़िया भी जब पंख खोल कर उड़ने कि कोशिश करती है, तो अवश्य ही एक दो बार वो असफल रहती है. और मायूस भी होती होगी, वह सुरक्षित थी, सब खतरों और चीज़ों से दूर, घोसले की आराम वाली ज़िन्दगी में. पर जब, कोशिशों के बाद आसमान में अपने पंखों के सहारे वो हवा से बातें करती है तो एहसास होता है कि कुछ बदलाव ज़िन्दगी में ज़रूरी है. ऐसा ही बदलाव है, स्कूल से कॉलेज आने का.
कुछ ऐसा ही सफर रहा है मेरा, इन तीन सालों में काफी कुछ बदलाव आये. विद्या ग्रहण करते-करते, कई और चीज़ें सीखी जिनसे मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक बदलाव आए. खुद की व्यक्तित्व और बोल चल में सहजता और परिपक्वता भी नज़र आई.
मेरे अनुसार, हर लड़की को पढ़ने व बढ़ने का मौका मिलना चाहिए. आजकल लड़कियां कई क्षेत्रों में बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है. और एक महिला का शिक्षित होना पुरे परिवार को शिक्षित करना है.
(Pic by Indian Express)
अपने स्कूल के दिनों में, अच्छे अंकों से परीक्षा पास करना अवश्य होता है. दूसरी तरफ, कॉलेज में सिर्फ पढ़ाई नहीं, काफी और चीज़ें भी होती है. कॉलेज में कई ग्रुप्स व सोसाइटी होती है, जिनमें शामिल हो कर हम अपना कौशल और कला का विकास कर सकते है. बहुत सारे नए बच्चों के लिए, कॉलेज सिर्फ तीन या चार साल का पढ़ने लिखने की जगह होती है. लेकिन वह गलत है. स्कूल और कॉलेज के बीच बहुत सारे अंतर हैं, और ये अंतर कॉलेज को स्कूल की तुलना में अधिक सुखद बनाते हैं.
दो चोटी से छुटकारा
कॉलेज के पहले दिन से ले कर आखिरी दिन तक, रोज़ कुछ नया और रोमांचिक होता था. वो दोस्तों के साथ कैन्टीन में बैठ कर मस्ती करना. प्रोफेसर्स और दोस्तों के साथ हसी-मज़ाक. कॉलेज में स्कूल वाली ज़िन्दगी से सब कुछ अलग है. सबसे पहले, स्कूल की वर्दी से आज़ादी मिलती है, जो कि एक लड़की के लिए ज़रूरी बदलाव है. फिर आती है, मिलता है दो चोटी से छुटकारा. जी हाँ, कितनी ख़ुशी मिलती है, जब आप बाल खोल कर लहराती है.
क्यों है कॉलेज एक अहम पड़ाव?
एक नन्ही चिड़िया भी जब पंख खोल कर उड़ने कि कोशिश करती है, तो अवश्य ही एक दो बार वो असफल रहती है. और मायूस भी होती होगी, वह सुरक्षित थी, सब खतरों और चीज़ों से दूर, घोसले की आराम वाली ज़िन्दगी में. पर जब, कोशिशों के बाद आसमान में अपने पंखों के सहारे वो हवा से बातें करती है तो एहसास होता है कि कुछ बदलाव ज़िन्दगी में ज़रूरी है. ऐसा ही बदलाव है, स्कूल से कॉलेज आने का.
अपने पंखों और खुद की काबिलियत पर विश्वास कर, एक लड़की, नन्ही चिड़िया की तरह, आसमान को छूना सीखती है, और एक काबिल महिला बनती है.
व्यक्तित्व और बोल चल में सहजता
कुछ ऐसा ही सफर रहा है मेरा, इन तीन सालों में काफी कुछ बदलाव आये. विद्या ग्रहण करते-करते, कई और चीज़ें सीखी जिनसे मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक बदलाव आए. खुद की व्यक्तित्व और बोल चल में सहजता और परिपक्वता भी नज़र आई.
मेरे अनुसार, हर लड़की को पढ़ने व बढ़ने का मौका मिलना चाहिए. आजकल लड़कियां कई क्षेत्रों में बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है. और एक महिला का शिक्षित होना पुरे परिवार को शिक्षित करना है.
(Pic by Indian Express)