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क्यों होता है चीयर लीडर्स के साथ ग़लत

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Swati Bundela
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याद रखने वाली कुछ बातें
1. नवंबर 1898 से लेके 1923 तक चीरलैडिंग अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा में प्रैक्टिस की गई। पहली बार महिलाओं को चीरलैडिंग करने की अनुमति मिली।
2. एक चीयरलीडर ने बताया कि कैसे नेगेटिव कमेंट उन्हें प्रभावित करते हैं और उनका मनोबल कम करते हैं। यह एक मुख्य कारण है की आईपीएल में विदेशी चीयरलीडर को बुलाया जाता है।
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3. चीयरलीडिंग एक सेक्सईस्ट प्रेक्टिस है जो कि महिलाओं को वस्तुओं की तरह पेश करती है।
4. भारतिय पुरुष जो कि अक्सर सेक्सिस्ट होते हैं, इन्हें भी इस दृष्टिकोण से देखते हैं क्योंकि आइटम नंबरों ने औरतों को इसी तरह से दिखाया है।
5. तो क्या चीरलीडिंग को हटा देना चाहिए ये सोचके की पुरुषों की प्रवृत्ति नहीं बदलने वाली?
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आईपीएल का सीजन पूरे जोर-शोर से चल रहा है और इसके साथ आया है चीयरलीडिंग का अट्रैक्शन। 2008 में जबसे आईपीएल शुरू हुआ है इन चीयर लीडर्स को क्रिकेट टीम गर्ल्स का नाम दे दिया गया है। क्रिकेट जैसे खेल में जो पहले से ही रोमांचक है, उसे और मजेदार बनाने के लिए इन्हें लाया गया। चुकी चीयर लीडिंग कभी भी भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं रहा, लोगों ने कहा कि इसे संस्कृति भ्रष्ट करने के लिए लाया गया है। जबसे क्रिकेट प्रेमी लोगोँ ने बोला कि इन चीयर लीडर्स की वाजह से खेल से ध्यान भटक रहा है, तबसे ये बेहेस शुरू हुई।
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इससे मेरा यह लक्ष नहीं है की चीयरलीडिंग भारतीय संस्कृति के लिए खराब है या यह क्रिकेट का एहसास बदल देता है पर यह जरूर है कि मैं इन लड़कियों पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहती हूं और यह बताना चाहती हूं कि आखिर चीयरलीडिंग ससेक्सिस्ट आचरण क्यों है। चीयर लीडिंग एक अमेरिकन प्रेक्टिस है जिसे बहुत समय से देखा जा रहा है। बहुत समय हो गया है कि यह चीयर लीडर्स अपनी हक़ के लिए लड़ रहे हैं।

आईपीएल में काम कर रहे चीयर लीडर्स को अपने काम के बारे में बात नहीं करना चाहिए, यह बात उनके कॉन्ट्रैक्ट में लिखा हुआ है पर एक आईपीएल चीयरलीडर ने रेडिट ए एम ए (आस्क मी एनीथिंग) में सवाल लिए और भारत में अपनी जिंदगी के बारे में बताया। इस चीयरलीडर ने बताया कि कैसे दर्शकों ने इन्हें वेरबल्ली एब्यूज किया और अपने घटिया विचार एक बहुत अशिष्ट भाषा में बोले। ये एक मुख्य कारण है कि क्यों विदेशी लड़कियों को यर काम करने के लिए बुलाया जाता है।
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मुझे रेसिस्म से सख्त नफरत है। क्यों 99 प्रतिशत ललड़कियां मेरी टीम में गोरी हैं? क्यों भारतीयों को ये लगता है कि एक गोरी लड़की को छोटे कपड़े पहनाना सही है, लेकिन भारतीय नारियों को नहीं। ये काफी उलझा हुआ है। फिर वो जगह आती है जहाँ कुछ पुरुष जो कि इन्हें नेगेटिव कमेंट देते है, “ आधे से ज्यादा समय के लिए मैं उन्हें सुन नहीं पाती क्योंकि गाने की आवाज़ काफ़ी तेज़ होती है और उनकी ज़बानी इतनी गंदी होती है कि अब मुझे आदत है। इसका मतलब ये नहीं कि मै उन्हें कुछ कह नहीं सकती पर मैं उन्हें इग्नोर करती हूँ।
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मैं औरतों और बच्चों के अलावा किसी के साथ फोटो नहीं खिचवाती। मैं नहीं चाहती कि कोई मेरी तस्वीरें गलत तरह इस्तेमाल करें”। ये भारतीय पुरषों के बारे में बताता है जो कि सेक्सिस्ट एवं महिलाओं को वस्तुओं की तरह देखते हैं। चूंकि आइटम नंबरो में महिलाओं को ऐसे दिखाया जाता है, वो हमें भी ऐसे ही देखते हैं।

पर आज यह बात साफ साफ कहते हैं की चीयर लीडर्स सिर्फ छोटे कपड़े और पैसों के लिए नाचने वाली महिलाएं नहीं है उन्हें अपना समय और अपनी ताकत अपने हुनर को बढ़ाने में लगता है। इन्हें फिजिकल ट्रेनिंग गुज़रना पड़ता है जो इन्हें फिट रखे। वेस्टर्न लड़कियां यहाँ इसलिए आती हैं क्योंकि उनके लिए ये दूसरे कामो की तरह एक काम है। तो क्या हम उनपे निर्धारित हैं, चीयर लीडिंग के लिए? क्या हमें उसकी जरूरत है भारतीय संस्कृति और सोच को देखते हुए? समय आगया है कि हम चीरलीडिंग को आईपीएल का एडेड अट्रैक्शन माने।
#फेमिनिज्म
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