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बॉलीवुड में, जहां कई लोग अपनी मेहनत और कला से आगे बड़के अपनी जगह बनाना चाहते है, वही लड़कियां भी इसी के कारण बॉलीवुड में अपने पैर रखती है। उनके पास होता तो सब कुछ है जैसे खूबसूरती और प्रतिभा पर क्या वो दुनिया को ये सब दिखा पाती है?
बॉलीवुड में शुरुआत से प्रतिभाशील महिलाओं का हिस्सा रहा है। 90 के दशक में फिल्मों में ये देखा जाता था कि महिलाएं सिर्फ पुरुष का प्रेम ही नही बल्कि एक निडर और अपने मन की सुनने वाली ऐसे किरदार निभाया करती थी। अपने एक्टिंग की प्रतिभा से नरगिस , मधुबाला और नूतन जैसी कई एक्ट्रेस ने दर्शकों का दिल जीत महिलाओं के लिए बॉलीवुड में एक ऐसा स्थान बनाया जहां उनके टैलेंट की कदर की जाती थी और उन्हें कोई छोटे मोटे किरदार निभाने के लिए न मिलते।
ये महिलाएं सिर्फ अपने प्रतिभा ही नही बल्कि ख़ूबसूरती की वजह से भी जानी जाती थी। वैजयन्ती माला और हेलेन की लचक एक फ़िल्म में रौनक ला देती तो नरगिस के एक्टिंग से मदर इंडिया जैसी फ़िल्म ऑस्कर तक पहुँचती। नायिका एक ऐसा शब्द है जो इनका वर्णन करने के लिए एकदम उचित है।
जैसी ही नब्बे का दशक आतँ तक आया वहीं महिलाओं के किरदारों में भी फर्क दिखने लगा, अब औरतो को फिल्मों में नायक की प्रेमिका के रूप में देखा जाने लगा। ये इसलिए भी हुआ क्योंकि जो लोग फ़िल्म बनाते वो महिलाओं को सिर्फ इस ही नज़रिये से देखते। धीरे धीरे एक नायिका प्रेमिका में बदल गयी जो कि कोमल थी और समाज के नियमो के अनुसार किरदार का निर्माण होता।
इस समय में एक हेरोइन का खूबसूरत दिखना उसके प्रतिभा से ज्यादा एहिमियात रखता था। धीरे धीरे आइटम सॉन्ग आये जिन्होंने औरतो को सिर्फ एक नृत्यांगना के रूप में दर्शाया। ये देखा जाता कि हीरोइन को छोड़ नायक को ज्यादा तारीफ और ज्यादा वेतन मिलता। एक नायक को अपनी वैनिटी और टीम मिलती तो वही हीरोइन को एक मेक उप आर्टिस्ट मिलता। उनकी अपनी प्रतिभा इस बदलते हुए दशक में काफी खो गयी और अब औरत को कास्टिंग काउच यानी कि शारीरिक तौर से इस्तेमाल कर फिल्मो में रोल मिलते।
आज के दिन
आज बॉलीवुड में औरतो को देखने का नज़रिया बदल रहा है और दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट और कंगना रनौत जैसी अभिनेत्रियों ने इन सामाजिक नियमो को तोड़ ऐसी फिल्में की जिसमे कहानी का किरदार निडर और आज़ाद है। कुछ फिल्मों में नायक होते ही नही पर उन फिल्मों को भी बोहोत सरहाया जाता है जैसे क्वीन या हाइवे। आजकल औरतो के विषयों पर भी फिल्मी बनती है जैसे पैड मैन और दंगल। आज का सिनेमा औरतो की सहायता एवं उनका आदर और सम्मान करता है। अब एक अभिनेत्री सिर्फ नृत्यांगना नही रही अपितु एक मजबूत और बुद्धिमती नायिका के रूप में देखी जाती है। उन्हें फ़िल्म के सेट पर पूरी सुविधा दी जाती है और कई जगह अभिनेत्रियां आज भी समान वेतन के लिए लड़ तो रही है जोकि कामयाबी की ओर है।
बॉलीवुड और एक्ट्रेसस
बॉलीवुड में शुरुआत से प्रतिभाशील महिलाओं का हिस्सा रहा है। 90 के दशक में फिल्मों में ये देखा जाता था कि महिलाएं सिर्फ पुरुष का प्रेम ही नही बल्कि एक निडर और अपने मन की सुनने वाली ऐसे किरदार निभाया करती थी। अपने एक्टिंग की प्रतिभा से नरगिस , मधुबाला और नूतन जैसी कई एक्ट्रेस ने दर्शकों का दिल जीत महिलाओं के लिए बॉलीवुड में एक ऐसा स्थान बनाया जहां उनके टैलेंट की कदर की जाती थी और उन्हें कोई छोटे मोटे किरदार निभाने के लिए न मिलते।
ये महिलाएं सिर्फ अपने प्रतिभा ही नही बल्कि ख़ूबसूरती की वजह से भी जानी जाती थी। वैजयन्ती माला और हेलेन की लचक एक फ़िल्म में रौनक ला देती तो नरगिस के एक्टिंग से मदर इंडिया जैसी फ़िल्म ऑस्कर तक पहुँचती। नायिका एक ऐसा शब्द है जो इनका वर्णन करने के लिए एकदम उचित है।
आज का सिनेमा औरतो की सहायता एवं उनका आदर और सम्मान करता है। अब एक अभिनेत्री सिर्फ नृत्यांगना नही रही अपितु एक मजबूत और बुद्धिमती नायिका के रूप में देखी जाती है। उन्हें फ़िल्म के सेट पर पूरी सुविधा दी जाती है और कई जगह अभिनेत्रियां आज भी समान वेतन के लिए लड़ तो रही है जोकि कामयाबी की ओर है।
2000 की दशक में
जैसी ही नब्बे का दशक आतँ तक आया वहीं महिलाओं के किरदारों में भी फर्क दिखने लगा, अब औरतो को फिल्मों में नायक की प्रेमिका के रूप में देखा जाने लगा। ये इसलिए भी हुआ क्योंकि जो लोग फ़िल्म बनाते वो महिलाओं को सिर्फ इस ही नज़रिये से देखते। धीरे धीरे एक नायिका प्रेमिका में बदल गयी जो कि कोमल थी और समाज के नियमो के अनुसार किरदार का निर्माण होता।
इस समय में एक हेरोइन का खूबसूरत दिखना उसके प्रतिभा से ज्यादा एहिमियात रखता था। धीरे धीरे आइटम सॉन्ग आये जिन्होंने औरतो को सिर्फ एक नृत्यांगना के रूप में दर्शाया। ये देखा जाता कि हीरोइन को छोड़ नायक को ज्यादा तारीफ और ज्यादा वेतन मिलता। एक नायक को अपनी वैनिटी और टीम मिलती तो वही हीरोइन को एक मेक उप आर्टिस्ट मिलता। उनकी अपनी प्रतिभा इस बदलते हुए दशक में काफी खो गयी और अब औरत को कास्टिंग काउच यानी कि शारीरिक तौर से इस्तेमाल कर फिल्मो में रोल मिलते।
आज के दिन
आज बॉलीवुड में औरतो को देखने का नज़रिया बदल रहा है और दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट और कंगना रनौत जैसी अभिनेत्रियों ने इन सामाजिक नियमो को तोड़ ऐसी फिल्में की जिसमे कहानी का किरदार निडर और आज़ाद है। कुछ फिल्मों में नायक होते ही नही पर उन फिल्मों को भी बोहोत सरहाया जाता है जैसे क्वीन या हाइवे। आजकल औरतो के विषयों पर भी फिल्मी बनती है जैसे पैड मैन और दंगल। आज का सिनेमा औरतो की सहायता एवं उनका आदर और सम्मान करता है। अब एक अभिनेत्री सिर्फ नृत्यांगना नही रही अपितु एक मजबूत और बुद्धिमती नायिका के रूप में देखी जाती है। उन्हें फ़िल्म के सेट पर पूरी सुविधा दी जाती है और कई जगह अभिनेत्रियां आज भी समान वेतन के लिए लड़ तो रही है जोकि कामयाबी की ओर है।