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बचपन की बाते
लीसा का जन्म एक बैंगली हिन्दू पिता और एक पोलिश माँ के यहाँ हुआ । लीसा को फेडेरिको फेलिनी और सत्यजीत रे की फिल्मे देखना बचपन से ही बहुत पसंद था। बचपन का कुछ समय उन्होंने कलकत्ता में भी बिताया है।
फ़िल्मी जगत में उनकी शुरुआत
लीसा ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत 1994 में आई तमिल फिल्म नेताजी के साथ की थी। जिसमे वो एक छोटे से किरदार में नज़र आई। उसके बाद उन्होंने साल 2001 में बॉलीवुड में अपना कदम रखा फिल्म कसूर के साथ जिसमे वो आफताब शिवदासानी के अपोजिट नज़र आयी थी । उसके बाद से उन्हें काफी फिल्मों के ऑफर आये और उन्होंने काफी साड़ी फिल्में की।
कैंसर से लड़ाई
2009 की गर्मियों के दौरान, लिसा ने मल्टीपल मायलोमा जो की एक प्रकार का कैंसर होता है उसके लिए स्कैन करवाया । "मुझे पता था कि कुछ लंबे समय से कुछ गलत हो रहा था, मुझे कैंसर के ठीक होने से ज़्यादा कुछ भी नहीं चाहिए था" वह शुरुआत में सदमे में थी, जिसके बाद उन्होने डरना छोड़ दिया था लेकिन उसने कभी भी उम्मीद नहीं खोई और अनुभव को किसी ऐसी चीज में बदलने की कोशिश की जो दूसरों की मदद कर सके।“मेरे पिता का प्यार और समर्थन हमेशा मेरे साथ था। वह मेरे अस्पताल के कमरे में एक बेड में सोते थे जब मैं अपने स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के लिए जा रही थी। मैं अपने पिता की सबसे बड़ी शुक्रगुज़ार हूं।
सोशल सर्विस
रे दुनिया भर में लड़कियों के अधिकारों के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करने में शामिल रही हैं। उसने "बिकॉज़ आई ऍम ऐ गर्ल " अभियान जैसी कई संगठनों के लिए अभियान शुरू किए हैं। अपने ठीक होने के बाद, रे ने "मेक मायलोमा मैटर" मीडिया अभियान शुरू किया, जिसने दुनिया भर में बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद की। उन्होंने स्टेम सेल ट्रांसप्लांट और इसके लाभों की सक्रिय रूप से वकालत की। उसी वर्ष वह हिलबर्ग एंड बर्क ज्वैलरी का चेहरा बनीं, जिसमें अपनी आय का एक हिस्सा उन्होंने मल्टीपल मायलोमा कनाडा में दिया ।
कैंसर की लड़ाई जीतने के बाद
कैंसर को हराने के बाद लीसा अब अपने करियर पर फोकस कर रही है । उनका कहना है की कैंसर ने उन्हें जीवन जीने का एक नया नजरिया दिया है । उन्होंने हाली में एक किताब भी लिखी है "क्लोज टू द बोन" जिसमें उन्होंने अपनी कैंसर जर्नी के बारें में बताया है.