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बॉलीवुड में हर साल कई नए आइटम नम्बर रिलीज़ होते हैं. फ़िलहाल, हिट आइटम नम्बर- ‘हुस्न परचम’, चर्चा में हैं. यह गाना ‘ज़ीरो’ फ़िल्म का है और इसमें कटरीना कैफ़ का डान्स हैं. इस गाने में रैप है जिसके बोल है- बैंग लाइक ए ड्रम वर्क माई बॉडी, आज रात आई ऐम इंचार्ज, सो डान्स टू माई बीट, धिन-तक-धिन डू इट स्लोली, वन नाइट ओन्ली.
कुछ गाने जैसे दिलबर(सत्यमेव जयते), एक दो तीन(बाग़ी २) में, ९० के दशक वाले गानों का आज के सिज़्लिंग आइटम नम्बर में, रीमेक किया गये है. हर बार की तरह, इस बार भी बॉलीवुड को आलोचना का सामना करना पड़ा. हालाँकि #मीटू के चलते, इंडस्ट्री में कई परिवर्तन आए है. सोच बदलीं है और तरीके भी. हमने देखा है कि आइटम नम्बर भी कम बन रहे है. मगर इस नए गाने की चर्चा और प्रशंसा ने फिर कई सवाल उठाए.
हमारा सिर्फ़ बॉलीवुड को ब्लेम करना सही है? क्या हम लोगों ने ही इस सोच और चलन को बढ़ावा नहीं दिया? आम लोग तो ऐसे गानों पर झूमते है और इन्हें लूप पर सुनते है. ये गाने वाइरल हो जाते है. ग़लती हमारी है. जिस दिन हम लोग ऐसी नग्नता के मज़े लेना बंद करेंगे, तभी कुछ होगा. यह ही नहीं, इन गानों को यूट्यूब पर लोकप्रिय भी हम लोग ही करते है. हम आम जनता इस बीमारी वाली सोच को बढ़ावा देने वाले है.
पिछले साल, करन जौहर ने हमसे बात करते हुए कहा कि, “जिस पल आप एक नग्न महिला को हज़ारों मर्दों की हवस भरी आँखों के सामने रख देते, आप ग़लत करते है. एक फ़िल्म मेकर होने के नाते, मैंने भी ग़लतियाँ की है जो फिर नहीं करूँगा.”
ऐसे आपत्तिजनक गानों का बहिष्कार करना ही समाधान है. आइटम नम्बर में कटौती और बेहतर गानों से अवश्य कुछ बदलेगा. महिलाओं के बाथ टब सीन या सजेस्टिव बोल या नग्नता को बंद करना होगा.
गाने के बोल से ही आज कल की मानसिकता को माप सकते है.
कुछ गाने जैसे दिलबर(सत्यमेव जयते), एक दो तीन(बाग़ी २) में, ९० के दशक वाले गानों का आज के सिज़्लिंग आइटम नम्बर में, रीमेक किया गये है. हर बार की तरह, इस बार भी बॉलीवुड को आलोचना का सामना करना पड़ा. हालाँकि #मीटू के चलते, इंडस्ट्री में कई परिवर्तन आए है. सोच बदलीं है और तरीके भी. हमने देखा है कि आइटम नम्बर भी कम बन रहे है. मगर इस नए गाने की चर्चा और प्रशंसा ने फिर कई सवाल उठाए.
हमारा सिर्फ़ बॉलीवुड को ब्लेम करना सही है? क्या हम लोगों ने ही इस सोच और चलन को बढ़ावा नहीं दिया? आम लोग तो ऐसे गानों पर झूमते है और इन्हें लूप पर सुनते है. ये गाने वाइरल हो जाते है. ग़लती हमारी है. जिस दिन हम लोग ऐसी नग्नता के मज़े लेना बंद करेंगे, तभी कुछ होगा. यह ही नहीं, इन गानों को यूट्यूब पर लोकप्रिय भी हम लोग ही करते है. हम आम जनता इस बीमारी वाली सोच को बढ़ावा देने वाले है.
पिछले साल, करन जौहर ने हमसे बात करते हुए कहा कि, “जिस पल आप एक नग्न महिला को हज़ारों मर्दों की हवस भरी आँखों के सामने रख देते, आप ग़लत करते है. एक फ़िल्म मेकर होने के नाते, मैंने भी ग़लतियाँ की है जो फिर नहीं करूँगा.”
ऐसे आपत्तिजनक गानों का बहिष्कार करना ही समाधान है. आइटम नम्बर में कटौती और बेहतर गानों से अवश्य कुछ बदलेगा. महिलाओं के बाथ टब सीन या सजेस्टिव बोल या नग्नता को बंद करना होगा.