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एक महिला भी अपने घर के कामों में उतना ही हाथ बता सकती है जितना कि एक पुरुष। इसके कई उदाहरण कुछ महिलाओं ने प्रस्तुत किये है जिन्हें अपने परिवार के लिए कुछ करने का जोश था और भारत में खेती को एक नया मोड़ देने का भी जोश है। यह वह औरतें है जो कि इस देश के उन जगहों से आती है जहां पर महिला अक्सर खेती में भाग नहीं लेती। आइए जानते हैं एक ऐसे ही महिला की कहानी जिसने खेती में अपना एक पाऊं जमाया।
अलका बाबाराव पांडे की कहानी
मध्यप्रदेश में फतेहपुर अमरावती से आई अलका बाबाराव पांडे एक किसान परिवार से आती हैं और खेती में अपने पति की मदद करती है। आठवीं पास होने के बाद उन्होंने खेती में तपास सोयाबीन और टूर उगाने सीखी। उनका खर्चा खेती पर ही चलता है और इसके साथ साथ वह घर में खाने के लिए पापड़,मुंगवादी और पापड़ा जैसी चीज़े बनाती है।
अधिक पैसे कैसे कमाए?
अलका के अनुसार,“अधिक पैसे कैसे कमाने है , इसका कोई रास्ता हमारे पास नही था और खेती के अलावा हम और कुछ करना नही चाहते। 3 साल पहले टाटा ट्रस्ट के अंतर्गत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने एस.बी.आई बचत गत की सुविधा प्रतप्त करवाई और मैं और 9 और महिलाये इसकी सदस्य बानी। ये ट्रस्ट के जुड़ने में बाद ही उन्होंने हमें प्रशिक्षण दिया और हर महीने एक मीटिंग करवाते थे। इसके द्वारा उद्यमती में आने के और इच्छा हुई”
कस्तूरी संस्था से परिचय
जैसे ही मैं टाटा संस्था के संपर्क में आई, मुझे कस्तूरी संस्था के बारे में पता लगा। कस्तूरी प्रकल्प की प्रमुख मुग्धा शाह उनके गांव आयी और उन्हें ये बताया कि वो घर बैठे बैठे भी नौकरी कर सकती है। उन्हें ये बताया गया कि बड़े बड़े शहरों में उनके बनाये गए खाद्य समान की कद्र है और लोग उन्हें खरीदना चाहते है। अगर वो ये सारी चीज़ें अच्छे से पैक कर कस्तूरी संस्था को देती है तो वो उसकी बिक्री करेंगे जिस से की उन्हें भी लाभ होगा और अलका को भी।
अब तक का सफर
मुझे अब काफी अच्छे पैसे मिलते हैं और मैंने इसकी शुरुआत ज्वार के पापड़ और ऐसी सामग्री बेचकर की अब मैं एक उद्यमती हूं और मेरे परिवार का खर्चा बहुत अच्छे से चल जाता है अमरावती शहर में आयोजित प्रदर्शन में मैंने अपना सामान बेचा और मुझे ₹2000 भी मिलें। टाटा ट्रस्ट और कस्तूरी संस्था से मिले सहायता के लिए अलका उनका धन्यवाद करना चाहती है और ये बताना चाहती है वो काफी खुश है।