Advertisment

मिलिए असम की आई पी एस संजुक्ता पराशर से

author-image
Swati Bundela
New Update

Advertisment

2006 बैच के एक अधिकारी, पराशर ने मीडिया के साथ बातचीत की। उन्होंने शीदपीपल.टीवी  के साथ इस विशेष इंटरव्यू में भारतीय पुलिस में  अपनी यात्रा और विचारों के बारे में बताया है। आगे पढ़िए क्योंकि उन्होंने अपनी यात्रा में अब तक के सबसे कठिन मामले का भी खुलासा किया है।

पुलिस में जाने की प्रेरणा

Advertisment

मैं असम में पली-बढ़ी हूं। जब तक मैंने बारहवीं कक्षा पास नहीं की तब तक वह असम में थी लेकिन मैं वास्तव में दिल्ली में बढ़ी हूं। दिल्ली विश्वविद्यालय में मेरे अंडरग्रेजुएशन के पहले तीन साल सबसे अच्छे थे। मुझे अपने बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला और जो मैं करने में सक्षम थी मुझे पता चला। मैंने स्वतंत्र होना सीखा। मैंने खुद की देखभाल करना सीखा और साथ ही दूसरों की देखभाल करना भी सीखा। लेकिन उन सभी वर्षों में, मैंने कभी खुद को पुलिस अधिकारी बनने की कल्पना नहीं की।

पुलिस अफसर बनने की सोच

Advertisment

मैं 23 साल की थी जब मैंने आखिरकार यूपीएससी परीक्षा में बैठने का मन बनाया। मुझे यकीन है कि आप जानते हैं कि हम वास्तव में आईपीएस में पुलिस में शामिल होने का निर्णय नहीं लेते हैं। यह सेवा वह है जिसे हम रैंक, बहादुरी, जाति, राज्य में रिक्तियों आदि जैसे पैमानों  के आधार पर एक ही परीक्षा में पास करने के बाद सोचते है।

हाँ मै मानती हूँ की महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले दुगना काम करना पड़ता है । यह एक कहावत है कि हमारी संस्कृति में पुरुष प्रधान है पर उनमे ज़्यादा काम करने की शक्ति के कारण महिलाओं को पुरुषों की तुलना में दो गुना अच्छा माना जाता है। - संजुक्ता पराशर

Advertisment

सबसे मुश्किल केस


एक व्यवसायी की हत्या का मामला जिसमे एक व्यवसायी का एक गिरोह द्वारा अपहरण कर लिया गया था। उस केस में बंदूक चलाने वाले, हिटमैन और कॉल गर्ल्स शामिल थी । उसमे यह पता लगाना सबसे मुश्किल था क्योंकि इसके बारे में हमे कुछ नहीं पता था। इस केस में फर्जी नामों में सिम कार्ड जारी करने का खतरा एक बाधा थी जिसने हमारी सारी शक्ति और बुद्धि को खत्म कर दिया था। इससे भी कठिन बात यह थी कि हमारी पूरी कोशिशों के बावजूद, हमने उस व्यक्ति को खो दिया जिसका अपहरण कर लिया गया था। उनके परिवार से बात करते हुए, अभी भी मुझे बहुत परेशानी होती है क्योंकि यह अभी भी मुझे एक  बड़ी असफलता की तरह महसूस होता है।
Advertisment

महिलाओं के लिए ज़्यादा मेहनत


हाँ मै मानती हूँ की महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले दुगना काम करना पड़ता है । यह एक कहावत है कि हमारी संस्कृति में पुरुष प्रधान है पर उनमे ज़्यादा काम करने की शक्ति के कारण महिलाओं को पुरुषों की तुलना में दो गुना अच्छा माना जाता है।
इंस्पिरेशन
Advertisment