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मिलिए उस डॉक्टर से जिसने अपनी नौकरी और देश छोड़ विकलांग लड़कियों की सेवा की

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Swati Bundela
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इस नेक काम की शुरुआत


न्यू जर्सी में रहते हुए, उनका जीवन सेट था। उनके करियर में वह सब कुछ शामिल था, जो वह अपने जीवन में  चाहती थी । वह एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ-सह-मनोचिकित्सक थीं और जॉनसन एंड जॉनसन इंस्टीट्यूट फॉर चिल्ड्रन में कार्यकारी निदेशक थीं। इसके साथ, उन्होंने  हार्वर्ड, रटगर्स और पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी जैसी कई प्रमुख यूनिवर्सिटियों में पढ़ाया है।
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हैरिसन एक कैंसर सर्वाइवर है और टूटी फूटी बंगाली भी बोलती है।

लेकिन, फिर उन्होंने  एक फैसला लिया जिसने  कई ज़िन्दगियों को प्रभावित किया । उन्होंने न्यू जर्सी को छोड़कर  कोलकाता आने का फैसला किया और वह कई लड़कियों के लिए एक माँ की तरह थी ।
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'शिशुर सेवय' बनाने का मकसद


यह सब उनके दूसरे बच्चे, सीसिलिया देवयानी हैरिसन को गोद लेने के साथ शुरू हुआ, वर्ष 1984 में। वर्ष 2004 में, वह अपनी बेटी को कोलकाता ले गई। "मैं उसके  जैविक माता-पिता के साथ उसे मिलवाना चाहती थी ," हैरिसन ने कहा।
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"छल, झूठ और इन बच्चों की डरावनी  हालत  ने मुझे  उनके लिए कुछ करने का मन बनाने में मदद की।"


वर्ष 2001 में, वे उस स्थान पर गई  जहां से उन्होंने सेसिलिया को गोद लिया था - इंटरनेशनल मिशन ऑफ़ होप (आईएमएच ) में, उनसे मिलने के लिए एक मासी आई थी। उस वक़्त को याद करते हुए उन्होंने कहा: "हमें बताया गया था कि वह सीसिलिया की जैविक माँ थी। उन्होंने एक जुड़वां बहन, एक जैविक पिता और एक दादी से  भी  मिलवाया , जो उसे ढूंढ रहे थे। ”
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जितने भी गोद लिए गए बच्चे अपने जैविक माता-पिता और परिवार को जानना चाहते हैं, उनके लिए उन पर विश्वास करने के आलावा कोई चारा नहीं था। हालांकि, जब सीसिलिया ने कुछ सुना जो उसे लगा "यह अनुचित हैं ," हैरिसन ने सोचना शुरू कर दिया कि क्या गलत था। इसलिए, उसने सीसिलिया का डीएनए टेस्ट करवाया और पता लगाया कि यह उनमें से किसी के साथ मेल नहीं खाती।
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इसके अलावा, हैरिसन को पता चला कि ऐसे कई घरों में जो बच्चे अलग-अलग हैं, उन्हें अपने बिस्तर से बांध कर रखा जाता है। "छल, झूठ और इन बच्चों की डरावनी  स्थिति के साथ उनकी कोशिश ने उनके बारे में कुछ करने का मन बनाने में मदद की।"

कैंसर के साथ उनकी सफल लड़ाई के बाद, उन्होंने न्यू जर्सी में अपना घर बेच दिया और कोलकाता आ गई । उन्होंने यहाँ पर  'शिशुर सेवय' बनाया । यह एक आश्रय है और अलग-अलग लड़कियों के लिए एक सुविधा केंद्र है। जो की न्यू अलीपुर के सहापुर में स्थित हैं , इस जगह पर हर तरह की बीमारी से पीड़ित लड़कियों को जैसे ऑटिज्म, माइक्रोसेफली और सेरेब्रल पाल्सीकी देखभाल की जाती  है।
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वर्ष 2013 में, उन्होंने "इछे दाना" नामक एक अध्ययन केंद्र स्थापित किया। लड़कियां यहां हर रोज क्लास अटेंड करती हैं। यहाँ से तीन लड़कियां अगले साल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ओपन स्कूलिंग की परीक्षा में भी शामिल होंगी।

हैरिसन स्वीडन में बना टोबी आई ट्रैकर को यहाँ लाने में सक्षम रही। यह विकलांग लड़कियों को स्क्रीन पर अपनी आंखों का उपयोग करके अपने विचारों और जरूरतों के लिए बातचीत करने में मदद करता है।


इसके अलावा, हैरिसन स्वीडन में बना टोबी आई ट्रैकर को  खरीदने में भी सक्षम रही। यह विकलांग लड़कियों को स्क्रीन पर अपनी आंखों का उपयोग करके अपने विचारों और जरूरतों के लिए बातचीत करने में मदद करता है। यह भारत में पहली बार पेश किया गया था और इस प्रणाली का उपयोग कक्षा में और अनौपचारिक बातचीत के लिए किया जाता है। यह बड़ी लड़कियों को अपनी बहनों के साथ बात करने में भी मदद करता है।

चुनौतियां


यह नहीं है कि हैरिसन को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। उनको  जबरन वसूली से निपटना पड़ा और तो  और उन्होंने  रियलटर्स से आने वाले खतरे को नाकाम कर दिया है। हालाँकि, उनकी  प्रमुख चिंता यह हैं की उनके बच्चों की सुरक्षा और उनकी मृत्यु के बाद शिशुर शिवा की फंडिंग का ध्यान कौन रखेगा ।

अपनी बेटियों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “मेरी बेटियाँ मेरी ताकत हैं। दोनों मुझसे मिलने आती रहती  हैं। ”उनकी एक बेटी वकील हैं और सेसिलिया ड्रमर हैं।
इंस्पिरेशन
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