स्वयं सहायक किताबें पढ़ने से न शर्माएं

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Swati Bundela
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जब भी आप दूसरों को बताते हैं कि आप स्वयं सहायक किताबें पढ़ते हैं तो आपका आलोचन किया जाता है। ये समझा जाता है कि वो कमज़ोर हैं, या वो एक लूज़र हैं। जब भी आप एक कॉउंसिल्लोर से बात करते हैं या वर्कशॉप में जाते हैं तो ये माना जाता है कि वो अपनी इस दिक्कत को सुधार रहें हैं या ज़िम्मेदार हैं। लोग ये समझते हैं कि आप एक हारे हुए इंसान हैं जो कि छोटी छोटी बातों पे सहायता ढूंढते रहते हैं और आप पागल बनाते हैं। आप बस ये किताबें इक्कठा करते हैं और कहीं नही जाते। इसी कारण लोगों को ये बताने में की हम इस तरह की किताबें पढ़ते हैं, हम शर्माते हैं।

अगर आप एक ऐसी किताब पढ़ते हैं जो आपके कमज़ोरी से खेलती है और आपको उसी तरिके की किताबें पढ़ने के लिए मजबूर करती है तो आप एक्शन लेने की बजाए बस एक सेल्फ हेल्प जंकी बन जाएंगे। थोड़ी सी छान बीन होगी पर इसका मतलब ये नही की आप ये किताबें पढ़ना छोड़ दे। इस दुनिया में जहाँ हर कोई इंटरनेट पे वीडियो देखता है या क्लास लेता है वहां अगर आप किताब पढ़ें तो शायद वो आपकी ज़िंदगी पूरी तरह न बदले पर एक फर्क लाएगा।

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हम सबकी कुछ न कुछ दिक्कतें हैं और कमज़ोरियाँ हैं। इस आज़ाद दुनिया में आपको ये मानने में कोई झिझक नही होना चाहिए कि आप इस तरह की किताबें पढ़ते हैं। ऐसी किताबें आपको नई बातें बताती हैं और आपको एक नई राह पे लेके जाती हैं। जहाँ लोग बस काउन्सलिंग को इन सब चीज़ों से निकलने का एक मात्र ज़रिया समझते हैं, वहाँ ये किताबें पढ़के भी एक प्रभाव देखने को मिलता है। एक शब्द या वाक्य आपकी ज़िंदगी में फर्क ला सकता है और किसी को कोई हक नहीं कि वो आपकी इसपे आलोचना करें।

ये एक बहुत ज़रूरी बात है कि आप अपनी कमजोरियों को समझ रहे हैं और उनपे काम करना चाहते हैं। आप बेशक को बड़ी आविष्कार नहीं करेंगे पर आप खुद का सफर शुरू करेंगे। हर किसी को एक कॉउंसिल्लोर कि सहायता नहीं चाहिए। कई कई बार लोग किताबों में अपनी खुशी ढूंढ लेते हैं। जब तक आपको पता है कि ये आपको सही रास्ते पे लेके जा रहा है, आपको डरने की कोई ज़रूरत नहीं। आपको क्या पता, हो सकता है आने वाले सालों में आप लोगों को खुश कर रहे हो या उन्हें शशक्त बना रहे हों।
#फेमिनिज्म